मकर संक्रांति : सच हुई आडवाणी की भविष्यवाणी, भाजपा की संक्रांति आयी पर वे खुद पीछे छूट गये

नयी दिल्ली : 2009 के लोकसभा चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई व राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली भारतीय जनता पार्टीबड़ेअंतर से सोनिया गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस से लोकसभा चुनाव हार गयी थी. इस पराजय से भाजपा के अंदर भयंकर निराशा का माहौल था. नेताओं में आरोप-प्रत्यारोप का दौरा तेज था और लोग आडवाणी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 13, 2018 6:04 PM

नयी दिल्ली : 2009 के लोकसभा चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई व राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली भारतीय जनता पार्टीबड़ेअंतर से सोनिया गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस से लोकसभा चुनाव हार गयी थी. इस पराजय से भाजपा के अंदर भयंकर निराशा का माहौल था. नेताओं में आरोप-प्रत्यारोप का दौरा तेज था और लोग आडवाणी पर यह चुटकी ले रहे थे कि मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री कह कर मैदान में उतरे थे, लेकिन उन्होंने ही इन्हें चुनावी अखाड़े में पटक दिया. चुनाव परिणाम के सात महीने बाद 2010 का मकर संक्राति का त्यौहार आया था. इन महीनों में पार्टी में स्थितियां कुछ हद तक अनुकूल हुई थीं. तब 2010 की मकर संक्रांति त्यौहार में आडवाणी ने उम्मीद जतायी थी कि भाजपा की संक्रांति आएगी और पार्टी मजबूत बन कर उभरेगी.

आडवाणी का यह आशावाद सच में बदला.

संक्रांति शब्द का अर्थ होता है – सूर्य का एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश करना यानी. सूर्य इस दिन मकर राशि में प्रवेश करता है, इसलिए इस त्यौहार को मकर संक्रांति कहा जाता है. भाजपा के मुख्य शिल्पकार आडवाणी के कहने का ताथ्पर्य था कि उस समय की लुंजपुंज भाजपा मजबूत स्वरूप में फिर उभरेगी.

उनकी यह बात चार साल बाद 2014 मेंसच हो गयी, लेकिन खुद आडवाणी जी काफी पीछे छूट गये. भाजपा को संक्रांति में लाने के लिए बुजुर्ग आडवाणी जी को पीएम के चेहरे से सलाहकार मंडल में डाला गया और नरेंद्र मोदी 2013 में पार्टी के चेहरा बन गये और 2014 आते-आते वे पार्टी के सर्वोच्च नेता बन गये. मोदी के सत्ता में आने के साथ भाजपा में एक और ताकतवर शख्स – अमित शाह का उदय हुआ, जो हमेशा से नरेंद्र मोदी के सबसे विश्वस्त राजनीतिक सहयोगी रहे हैं.

इन सालों में आडवाणी जी की गढ़ी गयी भाजपा काफी आगे निकल चुकी है. आडवाणी जी 2017 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में भी उम्मीदवार नहीं बनाये गये. वे राजनीतिक रूप से सिर्फ औपचारिक कार्यक्रमों में दिखते हैं और निजी तौर पर देश के उन हिस्सों की यात्रा करते हैं, जहां उनकी गढ़ी भाजपा के झंडे लहर रहे होते हैं. आडवाणी जी की 2010 की भविष्यवाणी सही हुई कि भाजपा की संक्रांति आएगी, लेकिन खुद उनकी निजी राजनीति की संक्रांति न 2014 में आयी न 2017 में.

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