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मेघालय : 1971 में बैठी थी पहली विधानसभा, दसवें चुनाव में शाह व राहुल की परीक्षा

मेघालय राज्य दो अप्रैल 1970 को अस्तित्व में आया. पहले यह असम का हिस्सा होता था. 1970 में अस्तित्व में आने के बाद पहली बार दो अप्रैल 1970 को तुरामें मेघालय विधानसभा की बैठक हुई थी. जब राज्य का गठन हुआ था तब यहां 37 विधानसभा की सीटें थी और आज वह 60 हो गयी […]

मेघालय राज्य दो अप्रैल 1970 को अस्तित्व में आया. पहले यह असम का हिस्सा होता था. 1970 में अस्तित्व में आने के बाद पहली बार दो अप्रैल 1970 को तुरामें मेघालय विधानसभा की बैठक हुई थी. जब राज्य का गठन हुआ था तब यहां 37 विधानसभा की सीटें थी और आज वह 60 हो गयी हैं. हालांकि मेघालय को पूर्ण राज्य का दर्जा 1971 के संसद के एक विधेयक के जरिये मिला और शिलांग इसकी राजधानी बना. इस प्रकार 21 जनवरी 1972 को मेघायल राज्य पूर्ण रूप से अस्तित्व में आया और विधानसभा का पुनर्गठन हुआ.

मेघालय तीन प्रमुख क्षेत्रों में बंटा है. खासी हिल्स में विधानसभा की 29 सीटें हैं, जयंती हिल्स में सात सीटें हैं, जबकिगारो हिल्स में 24 सीटें हैं. मेघालय विधानसभा के लिए अगले महीने 27 फरवरी को होने जा रहा चुनाव राज्य का दसवां विधानसभा चुनाव होगा.


पिछले बार का चुनावी परिदृश्य

मेघालय में पिछला विधानसभा चुनाव 14 फरवरी 2013 को हुआ. इस चुनाव में कांग्रेस में 29 विधायक चुन कर आये थे, 13 निर्दलीय विधायक चुने गये थे जबकि यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के आठ और अन्य दलों के 10 लोग चुन कर आये थे.


भाजपा के लिए क्यों हैं यह राज्य अहम?

भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में देश भर में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गंठबंधन काम कर रहा है. लेकिन, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले साल पूर्वोत्तर के लिए एक अलग गंठबंधन बनाया जिसे उन्होंने नार्थ इस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस नाम दिया. इस गंठबंधन के माध्यम से अमित शाह व भाजपा प्रमुख रूप से विकास के मुद्दों को उठा रहे हैं.

मेघालय में वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है और डॉ मुकुल संगमा राज्य के मुख्यमंत्री हैं. वहीं, भाजपा के चुनाव अभियान समिति के प्रमुख एलेक्जेंडर एल हेक हैं. एलेंक्जेंडर इसी महीने दो जनवरी को कांग्रेस छोड़ भाजपा में आये हैं. वे कांग्रेस को और दूसरे विधायकों को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं और सभी 60 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा कर रहे हैं. दो दिन पहले भी उन्होंने दावा किया है कि कांग्रेस के पांच एमएलए टूट कर भाजपा के पक्ष में आयेंगे. भाजपा ने अपने तेज-तर्रार महासचिव राम माधव को पूर्वोत्तर का प्रभार सौंपा है और उसे लगता है कि अमित शाह का चुनावी प्रबंधन और राम माधव का जमीनी काम पार्टी को जीत दिलाएगा. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी इस राज्य में अपनी सक्रियता दिखायेंगे और इस तरह यह दो राष्ट्रीय दलों के अध्यक्षों का मुकाबला भी होगा.

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