अगरतला : 2013 के विधानसभा चुनाव में क्लिन स्वीप करते हुए वाम दलों ने 60 में से 50 सीटें अपने नाम कर ली थीं. टीएमसी खाता भी नहीं खोल पायी थी और कांग्रेस को 10 सीटें मिली थीं. वहीं 2016 में बंगाल में हुए चुनाव में कांग्रेस और वामदलों के गंठबंधन से नाराज कांग्रेस के 6 विधायक भाजपा में शामिल हो गये. इस प्रकार भाजवा बिना चुनाव के ही 6 विधायक हासिल कर दूसरी बड़ी पार्टी बन गयी है.
त्रिपुरा में 18 फरवरी को 12वीं विधानसभा के लिए चुनाव होंगे. मतगणना 3 मार्च को होगा. नार्थ ईस्ट में अपनी पैठ बनाने के लिए भाजपा जी जान से जुटी हुई है. 2018 विधानसभा चुनाव की बागडोर नरेंद्र मोदी थामने वाले हैं. पीएम वहां दर्जनों रैलियां करेंगे. अमित शाह भी त्रिपुरा में कैप कर सकते हैं.
आपको बता दें कि त्रिपुरा विधानसभा की स्थापना 1963 में हुई थी. वर्त्तमान में यहां वामदलों की सरकार है. जबर्दस्त प्रदर्शन करते हुए 60 में से 50 सीटें जीती थीं. वहीं कांग्रेस के पाले में 10 सीटें आयी थीं. बंगाल चुनाव के समय मतभेद के कारण कांग्रेस के 6 विधायकों ने पार्टी छोड़कर टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस) का दामन थाम लिया था. लेकिन राष्ट्रपति चुनाव के समय क्रॉस वोटिंग का आरोप लगाकर टीएमसी से सभी 6 विधायकों को पार्टी से निकाल दिया था.
बाद में सभी 6 विधायकों को भाजपा में जगह मिली. इस प्रकार त्रिपुरा में कांग्रेस के पास केवल 4 ही विधायक बचे और भाजपा 6 विधायकों के साथ राज्य की दूसरी बड़ी पार्टी बन गयी. इसी आधार पर भाजपा ने विपक्षी दल का भी तमगा पा लिया. सुदीप राय बर्मन विपक्ष के नेता बन गये.
त्रिपुरा के वर्त्तमान मुख्यमंत्री मानिक सरकार हैं. रमेंद्र देबनाथ विधानसभा अध्यक्ष हैं. भाजपा अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में सरकार में भागीदार है. त्रिपुरा में भी वह तेजी से पांव जमा रही है. भाजपा का दावा है कि इस राज्य में उसके दो लाख सदस्य हैं. इनमें से 10 हजार पिछले साल बने. त्रिपुरा को भाजपा पूरी गंभीरता से ले रही है. इसी का नतीजा है कि उसने आरएसएस सदस्य बिप्लब कुमार देब को राज्य का अध्यक्ष बनाया है.