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बढ़ रही है धरती की तपिश, कहीं ये खतरे की घंटी तो नहीं

नयी दिल्ली : मानवीय गतिविधियां धरती की जलवायु का स्वभाव भी तय कर रही हैं. वैज्ञानिकों ने इस बाबत चेतावनी जारी की है. उन्होंने कहा है कि प्रकृति के साथ मनुष्य लगातार छेड़छाड़ कर रहे हैं जिसकी वजह से धरती का तापमान बढ़ता जा रहा है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और ब्रिटेन के मौसम विभाग […]

नयी दिल्ली : मानवीय गतिविधियां धरती की जलवायु का स्वभाव भी तय कर रही हैं. वैज्ञानिकों ने इस बाबत चेतावनी जारी की है. उन्होंने कहा है कि प्रकृति के साथ मनुष्य लगातार छेड़छाड़ कर रहे हैं जिसकी वजह से धरती का तापमान बढ़ता जा रहा है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और ब्रिटेन के मौसम विभाग की मानें तो पिछला साल यानी कि साल 2017, अल नीनो के बिना सबसे गर्म साल रहा है. इन दोनों संगठनों ने जो आंकड़े जारी किये हैं उसके अनुसार कुल मिलाकर 2017 अब तक का दूसरा या तीसरा सबसे गर्म साल था. यह रिपोर्ट करीब 167 साल के आंकड़ों को खंगाल कर तैयार की गयी है जो चिंता करने वाली है.

इन आंकड़ों की खास बात यह है कि साल 2017 में अल नीनो का असर नहीं था, बावजूद इसके ये सबसे गर्म सालों में से एक दर्ज किया गया. इसका अर्थ यह निकाला जा रहा है कि प्राकृतिक जलवायु प्रक्रियाओं पर अब मानवीय गतिविधियां भारी पड़ती जा रही है. यहां एक बात और गौर करने वाली है कि पिछला साल 1998 के मुकाबले भी गरम था, जबकि 1998 में धरती पर तपिश के लिए अल नीनो को जिम्मेदार ठहराया गया था. यहां चर्चा कर दें कि कुछ दिन पूर्व ही नासा ने अपने एक अध्ययन में दावा किया था कि अल नीनो अंटार्कटिका की सालाना दस इंच बर्फ़ पिघला रहा है.

वैज्ञानिकों ने कहा था कि अल नीनो समंदर के गरम पानी का बहाव अंटार्कटिका की ओर कर रहा है, जिससे वहां की बर्फ़ पिघल रही है. अल-नीनो की बात करें तो यह एक ऐसी मौसमी परिस्थिति है जो प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग यानी दक्षिणी अमरीका के तटीय भागों में महासागर के सतह पर पानी का तापमान बढ़ने की वजह से पैदा होती है जिसके कारण मौसम का सामान्य चक्र गड़बड़ा जाता है और बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं से लोगों को रूबरू होना पड़ता है. चिंता इसलिए भी जायज है क्योंकि साल 1850 के बाद के सबसे गरम 18 सालों में से 17 साल इसी सदी के हैं.

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