नयीदिल्ली : अन्ना हजारे की अगुवाई में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन छेड़कर कांग्रेस को दिल्ली की सत्ता से बेदखल करने वाले अरविंद केजरीवाल की सरकार भी संकटों में घिरी है. इसके लिए केजरीवाल की कुछ गलतियां तो जिम्मेवार हैं हीं, एक ऐसा शख्स भी है, जिसने आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो की उन खामियों की उन गलत क्रिया-कलापों की नब्ज पकड़ ली. फलस्वरूप केजरीवाल की पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता खत्म होने की कगार पर पहुंच गयी है.
आम आदमी पार्टी को इस स्थिति में लाने में उत्तर प्रदेश के एक वकील की अहम भूमिका है. उनका नाम है प्रशांत पटेल. प्रशांत ने ही इन विधायकों के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर करके उन्हें लाभ का पद दिये जाने को चुनौती दी थी. उन्होंने19जून, 2015 को आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों के खिलाफ 100 पन्ने की एक रिपोर्ट चुनाव आयोग और राष्ट्रपति को भेजी थी. अरविंद केजरीवाल की सरकारद्वारा 21 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त करने का आदेश पारित करने के 98 दिनों बाद प्रशांत पटेल ने यह नोटिस चुनाव आयोग व राष्ट्रपति को भेजी थी.
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प्रशांत पटेल ने जब अपनी रिपोर्ट में कहा कि यह सभी लाभ के पद हैं और इसलिए इन विधायकों की सदस्यता रद्द की जानी चाहिए, तो केजरीवाल सरकार ने रिमूवल ऑफ डिसक्वालिफेकशन संशोधन बिल विधानसभा में पेश किया, लेकिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस बिल को पास नहीं किया और इसे चुनाव आयोग के पास भेज दिया.
प्रशांत पटेल कहते हैं कि वह राजनीतिक दल से नहीं हैं. दिल्ली के नागरिक की हैसियत से यह याचिका दायर की थी. उन्होंने कहा, ‘मुझे अंदाजा था कि कुछ गलत हो रहा है. मैंने इसकी खोजबीन की. इस दौरान मुझे पता चला कि यह फैसला असंवैधानिक है.फिर मैंने राष्ट्रपति के सचिव के पास यह याचिका भेजी.’
उन पर आरोप लगा कि वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से जुड़े हैं.इसके जवाब में प्रशांतने कहा कि वह एक साधारण व्यक्ति हैं और बतौर आम नागरिक यह याचिका दायर की थी. ये आरोप नये नहीं हैं. बात कानून के उल्लंघन का है और आज यह साबित हो गया. उन्होंने कहा, ‘मैं बतौर वकील अपनी प्रैक्टिस कर रहा हूं और आगे भी इसे जारी रखूंगा.’