नयी दिल्ली : राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने आम आदमी पार्टी को बड़ा झटका देते हुए लाभ के पद को लेकर इसके 20 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया है. राष्ट्रपति के फैसले के बाद आप में जहां भूचाल आ गयी, वहीं भाजपा और कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर अरविंद केजरीवाल सरकार पर बड़ा हमला किया और मुख्यमंत्री से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा मांगा. इधर आप ने इस कदम को ‘असंवैधानिक’ और ‘लोकतंत्र के लिए खतरनाक’ करार दिया.
अब इस मामले पर भाजपा के वरिष्ठ नेता और देश के पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने ट्वीट कर राजनीति को और भी गरम कर दिया है. सिन्हा ने आप के खिलाफ राष्ट्रपति के इस फैसले को तुगलकी करार दिया और सबसे खराब फैसला बताया.
उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि आप के 20 विधायकों को अयोग्य करारा देने वाला राष्ट्रपति का फैसला पूरी तरह से न्याय की हत्या करने जैसा है. अयोग्य विधायकों को सुनवाई का कोई मौका नहीं दिया गया और न ही दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार किया गया. सिन्हा ने आगे लिखा, यह तुगलकशाही है.
गौरतलब हो कि कोविन्द ने निर्वाचन आयोग द्वारा की गई सिफारिश को कल मंजूर कर लिया. निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को सिफारिश की थी कि 13 मार्च 2015 और आठ सितंबर 2016 के बीच लाभ का पद रखने को लेकर 20 विधायक अयोग्य ठहराए जाने के हकदार हैं.
President's order disqualifying the 20 AAP MLAs is complete miscarriage of natural justice. No hearing, no waiting for High Court's order. It is Tughluqshahi of the worst order.
— Yashwant Sinha (@YashwantSinha) January 21, 2018
संबंधित आप विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त किया गया था और याचिकाकर्ता प्रशांत पटेल ने कहा था कि यह उनके पास लाभ का पद है. मुद्दे पर राष्ट्रपति को राय देते हुए निर्वाचन आयोग ने कहा था कि विधायकों ने ससंदीय सचिव का पद लेकर लाभ का पद हासिल किया और वे विधायक के रूप में अयोग्य ठहराए जाने के हकदार हैं.
राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग की सिफारिश को मानने के लिए बाध्य होते हैं. नियमों के तहत जनप्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराए जाने की मांग को लेकर राष्ट्रपति को भेजी जाने वाली याचिकाएं निर्वाचन आयोग को भेज दी जाती हैं. निर्वाचन आयोग याचिकाओं पर फैसला करता है और अपनी सिफारिश राष्ट्रपति भवन को भेजता है जो मान ली जाती है.
निर्वाचन आयोग ने राष्ट्रपति को भेजे गए अपने मत में कहा था कि ‘संसदीय सचिव रहने वाले व्यक्ति ने लाभ लिया हो या न लिया हो या सरकार के अधिशासी कार्य में भागीदारी की हो या नहीं की हो, कोई फर्क नहीं पड़ता’ जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने जया बच्चन के मामले में कहा था कि यदि पद लाभ के पद के तहत आता है तो अयोग्यता आसन्न होती है.
आयोग ने कहा था कि वह अपना मत विगत की न्यायिक घोषणाओं, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम और संविधान के आधार पर दे रहा है.
अयोग्य ठहराए गए 20 विधायकों में आदर्श शास्त्री (द्वारका), अल्का लांबा (चांदनी चौक), अनिल बाजपेई (गांधीनगर), अवतार सिंह (कालकाजी), कैलाश गहलोत (नजफगढ़), जो मंत्री भी हैं, मदनलाल (कस्तूरबा नगर), मनोज कुमार (कोंडली), नरेश यादव (महरौली), नितिन त्यागी (लक्ष्मीनगर), प्रवीण कुमार (जंगपुरा), राजेश गुप्ता (वजीरपुर) राजेश रिषि (जनकपुरी), संजीव झा (बुराड़ी), सरिता सिंह (रोहतास नगर), सोमदत्त (सदर बाजार), शरद कुमार (नरेला), शिवचरण गोयल (मोती नगर), सुखबीर सिंह (मुंडका), विजेंद्र गर्ग (राजेंद्र नगर) और जरनैल सिंह (तिलक नगर) शामिल हैं.
आप ने दिल्ली उच्च न्यायालय से भी संपर्क किया था और निर्वाचन आयोग की अधिसूचना पर रोक लगाने का आग्रह किया था. अदालत ने मामले को सोमवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को आप विधायकों को अयोग्य किए जाने से बचाने के आग्रह पर कोई अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया था.
बीस अयोग्य विधायकों में से एक मदनलाल ने कहा कि सभी को अब न्यायपालिका से उम्मीद है और पार्टी कल कुछ राहत की उम्मीद कर रही है. यदि आप अदालत से राहत पाने में विफल रहती है तो दिल्ली में 20 विधानसभा सीटों पर उपचनुाव होगा. अब केवल तकनीकी पहलू यह होगा कि दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष को 20 रिक्तियां अधिसूचित करनी होंगी जिससे कि निर्वाचन आयोग उपचुनाव की घोषणा कर सके.
विधानसभा द्वारा रिक्तियां घोषित किए जाने के बाद आप के विधायकों की संख्या 70 सदस्यीय विधासभा में 66 से घटकर 46 रह जाएगी. हालांकि सरकार चलाने के लिए इसके पास बहुमत बरकरार रहेगा. बीस अयोग्य विधायकों में शामिल अल्का लांबा ने कहा कि फैसला ‘दुखद’ है और किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले राष्ट्रपति को उन्हें सुनना चाहिए था. याचिका 21 विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए दायर की गई थी, लेकिन एक ने कुछ महीने पहले इस्तीफा दे दिया था.