नयी दिल्ली : देश की राजधानी दिल्ली में हजरत निजामुद्दीन दरगाह पर धूमधाम से वसंत पंचमी मनायी गयी. हजरत निजामुद्दीन औलिया चिश्ती घराने के चौथे संत थे. हजरत निजामुद्दीन के एक मशहूर शिष्य हुए अमीर खुसरो. खुसरो को पहले उर्दू शायर के तौर पर ख्याति प्राप्त है. दिल्ली में इन दोनों गुरु-शिष्य की दरगाह और मकबरा आमने-सामने ही बनाये गये हैं.
यहां हर साल वसंत पंचमी बड़े ही धूमधाम से मनायी जाती है. साल के दूसरे दिनों में हरे रंग की चादर चढ़ाने वाले इन जगहों पर वसंत पंचमी के दिन पीले फूलों की चादर चढ़ायी जाती है. लोग यहां बैठकर वासंती गीत गाते हुए बसंत पंचमी के रंग में रंग जाते हैं.
ये भी पढ़ें… आ गया वसंत, कहां गया हमारा एक महीने के प्रेम का उत्सव ‘मदनोत्सव’!
वसंत पंचमी मनाने के पीछे है ये कहानी
बताया जाता है कि इस शुरुआत के पीछे एक दिलचस्प घटना है. हजरत निजामुद्दीन को अपनी बहन के लड़के सैयद नूह से अपार स्नेह था. नूह बेहद कम उम्र में ही सूफी मत के विद्वान बन गये थे और हजरत अपने बाद उन्हीं को गद्दी सौंपना चाहते थे. लेकिन नूह का जवानी में ही देहांत हो गया. इससे हजरत निजामुद्दीन को बड़ा सदमा लगा और वह बहुत उदास रहने लगे.
#VasantaPanchami being celebrated at Hazrat Nizamuddin Dargah in Delhi pic.twitter.com/wNcRk9WniO
— ANI (@ANI) January 22, 2018
ये भी पढ़ें… #Saraswati Puja: सरस्वती पूजा में ढोंग नहीं भावना जरूरी
अमीर खुसरो अपने गुरु की इस हालत से बड़े दुखी थे और वह उनके मन को हल्का करने की कोशिशों में जुट गये. इसी बीच वसंत ऋतु आ गयी. एक दिन खुसरो अपने कुछ सूफी दोस्तों के साथ सैर के लिए निकले. रास्ते में हरे-भरे खेतों में सरसों के पीले फूल ठंडी हवा के चलने से लहलहा रहे थे.
उन्होंने देखा कि प्राचीन कालिका देवी के मंदिर के पास हिंदू श्रद्धालु मस्त हो कर गाते-बजाते नाच रहे थे. इस माहौल ने खुसरो का मन मोह लिया. उन्होंने भक्तों से इसकी वजह पूछी तो पता चला कि वह ज्ञान की देवी सरस्वती की आराधना कर रहे हैं और माता सरस्वती को खुश करने के लिए उन पर पर सरसों के फूल चढ़ाने जा रहे हैं.
ये भी पढ़ें… ऐसे करें मां सरस्वती की आराधना, ये है मां का प्रभावशाली मंत्र
तब खुसरो ने कहा, मेरे देवता और गुरु भी उदास हैं. उन्हें खुश करने के लिए मैं भी उन्हें वसंत की भेंट, सरसों के ये फूल चढ़ाऊंगा. खुसरो ने सरसों और टेसू के पीले फूलों से एक गुलदस्ता बनाया. इसे लेकर वह निजामुद्दीन औलिया के सामने पहुंच कर खूब नाचे-गाये. उनकी मस्ती से हजरत निजामुद्दीन की हंसी लौट आयी. तब से जब तक खुसरो जीवित रहे, वसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता रहा.खुसरो के देहांत के बाद भी चिश्ती सूफियों द्वारा हर साल उनके गुरु निजामुद्दीन की दरगाह पर वसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाने लगा.