नगालैंड चुनाव का भाजपा सहित 11 दलों ने किया बहिष्कार, आखिर क्या है नगा समस्या?
कोहिमा : नागालैंड की राजनीतिक समस्या के समाधान की मांग को लेकर राज्य के सभी 11 राजनीतिक दलों ने 27 फरवरी को प्रस्तावित चुनाव नहीं लड़ने का एलान किया है. इस फैसले में भारतीय जनता पार्टी की राज्य इकाई व कांग्रेस जैसे दल भी शामिल हैं. यह फैसला सोमवार को नगालैंड के जनजातीय व सामाजिक […]
कोहिमा : नागालैंड की राजनीतिक समस्या के समाधान की मांग को लेकर राज्य के सभी 11 राजनीतिक दलों ने 27 फरवरी को प्रस्तावित चुनाव नहीं लड़ने का एलान किया है. इस फैसले में भारतीय जनता पार्टी की राज्य इकाई व कांग्रेस जैसे दल भी शामिल हैं. यह फैसला सोमवार को नगालैंड के जनजातीय व सामाजिक संगठनों की केंद्रीय समिति की बैठक में लिया गया. इस फैसले में राजनीतिक दलों के साथ सात नगा राष्ट्रवादी राजनीतिक समूह भी शामिल हैं. केंद्रीय समिति के सदस्य थेजा थेरी ने कहा है कि अगर निर्वाचन आयोग इस संबंध में चुनाव की अधिसूचना जारी करता है, तो एक फरवरी से हम राज्यव्यापी बंद बुलायेंगे. इस बीच मंगवार को राज्य के निर्वाचन पदाधिकारी अभिजीत सिन्हा कोहिमा में एक बैठक कर हालात की समीक्षा करते हुए आगे का निर्णय लेंगे.
नागालैंड का यह उदाहरण दुर्लभ है, जब राजनीति दल चुनावी प्रक्रिया में शामिल होने का विरोध कर रहे हों. चुनाव का विरोध करने वालों में नगा पिपल्स फ्रंट, भाजपा, कांग्रेस, नगालैंड कांग्रेस, नैशनलिस्ट डेमोक्रेटिक पिपल्स पार्टी, यूनाइटेड नगालैंड डेमोक्रेटिक पार्टी, आम आदमी पार्टी, नेशनल कांग्रेस पार्टी, लोक जन पार्टी, नेशन पिपल्स पार्टी व जनता दल यूनाइटेड शामिल हैं. इन दलों ने कहा है कि वे वर्तमान तय शिड्यूल के अनुसार न तो नामांकन करेंगे और न ही चुनाव लड़ेंगे.राजनीतिकदलों ने यह भी तयकियाहै कि वे चुनाव में अपने उम्मीदवार घोेषित नहीं करेंगे. ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर नागा समस्या क्या है, जिसके समाधान की मांग लंबे समय से उठती रही है?
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नगासमस्या क्या है?
पूर्वोत्तर की नगा समुदाय लंबे समय से नगा बहुल इलाकों को मिला कर ग्रेटर नागालिम बनाने की मांग करता रहा है. ग्रेटर नागालिम राज्य में मणिपुर, असम और अरुणाचल प्रदेश के नागा बहुल इलाकों को मिला कर राज्य गठन की मांग की जाती रही है. इस मुद्दे पर अगस्त 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नगासमाज में सक्रिय नागिरक समूहों के बीच दिल्ली में एक बड़ा समझौता हुआ था. इस समझौते के तथ्यों को हालांकि गोपनीय रखा गया लेकिन इस समझौते में मुद्दों के समाधान के लिए एक फ्रेमवर्क की बात कही गयी थी.
अब नागा नागरिक समूहों का मानना है कि इस दिशा में कोई काम नहीं हुआऔर जब चुनावकाएलान हो गया तो यहअपनीमांगों के लिए नरेंद्र मोदी सरकार पर दबाव बनाने का उनकेपासमाकूलमौका बन गया है.
इस मुद्दे पर केंद्र की ओर से आरएन रवि को वार्ताकार बनाया था. हालांकि मणिपुर में भाजपा की सरकार बनने के बाद इस समस्या के समाधान के हल की उम्मीद प्रबल हुई थी. लेकिन, नागा समुदाय की मांग पर अगर अमल किया जाये तो मणिपुर का 60 प्रतिशत भूभाग ग्रेटर नागालिम में शामिल करना पड़ जायेगा.
ऐसे में केंद्र सरकार यह चाहती है कि एनएससीएन मोइवा यह मांग छोड़ दे. केंद्र सरकार दूसरे राज्यों को संतुष्ट करने के लिए यह कहती रही है कि नागा समस्या के हल के लिए पूर्वोत्तर के राज्यों का पुनर्गठन नहीं होगा. बीजेपी के लिए इस समस्या का समाधान इसलिए मुश्किल है क्योंकि वह पूर्वोत्तर के हर राज्य में अपना विस्तार कर रही है और उसने बढ़त भी हासिल की है, ऐसे में किसी एक पक्ष को तुष्ट करने से दूसरे पक्ष असंतुष्ट हो जायेंगे.
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