मालदीव का संकट : भारत के लिए क्यों इतना खास है एशिया का यह सबसे छोटा देश?

नयी दिल्ली : मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के अपने विराेधियों पर कड़े रुख के कारण इसका संकट लगातार गहरा होता जा रहा है. भारत ने सोमवार की शाम इस पर प्रतिक्रिया दी. भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि मालदीव में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की गिरफ्तारी चिंता की बात है और राजनीतिक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 7, 2018 11:42 AM

नयी दिल्ली : मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के अपने विराेधियों पर कड़े रुख के कारण इसका संकट लगातार गहरा होता जा रहा है. भारत ने सोमवार की शाम इस पर प्रतिक्रिया दी. भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि मालदीव में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की गिरफ्तारी चिंता की बात है और राजनीतिक आंकड़े चिंता का कारण हैं, सरकार इस संकट पर सावधानीपूर्वक नजर रखे हुए है. चीन की ओर झुकाव रखने वाले अब्दुल्ला का रुख भारत के सामरिक व कूटनीतिक हितों के खिलाफ रहा है.भारत की कूटनीतिक सक्रियता व सैन्य हलचलों की खबर के बीच चीन की सरकारी मीडिया ने भारत को इस मामले से दूर रहने को कहा है.

मालदीव के विपक्ष के नेता भी अब्दुल्ला यामीन को चीन समर्थक मानते हैं और वे भारत से हस्तक्षेप चाहते हैं. लेकिन, मालदीवकाआंतरिक मामला होने के कारण भारत वहां सीधा हस्तक्षेप नहीं करना चाहता है. वहां के विपक्षी नेताओं ने इस बात पर दु:ख जताया है कि भारत ने अबतक अपना विशेष दूत क्यों नहीं भेजा है. भारत के दक्षिण पश्चिम में हिंद महासागर में स्थित एशिया का यह सबसे छोटा देश हमारे लिए बहुत अहम है.
श्रीलंका के दक्षिण पश्चिम तट से 700 किमी दूरी पर स्थित यह 26 प्रवाल दीपों वाला देश है, जो नब्बे हजार वर्ग किमी में फैला है, लेकिन इसका वास्तविक क्षेत्रफल मात्र 298 वर्ग किलोमीटर है. सवा चार लाख की आबादी वाला यह देश क्षेत्रफल व जनसंख्या दोनों हिसाब से एशिया का सबसे छोटा राष्ट्र है, लेकिन सामारिक दृष्टि से यह हर किसी के लिए महत्वपूर्ण है. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में लिखा है कि नयी दिल्ली को इससे दूर रहना चाहिए. उसने लिखा है कि राजनीतिक संकट किसी भी देश का आंतरिक मामला है और नयी दिल्ली के इसमें हस्तक्षेप का औचित्य नहीं है. उसने लिखा है कि मालदीव बेहद गहराई तक भारत के दबाव में है.
भारत और मालदीव में समुद्री सहयोग संधि है और भारतीय नौसेना मालदीव के चारों ओर पेट्रोलिंग करती है. ऐसे में भारत स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर एसओपी का पालन कर सकता है, जिसके तहत सैन्य दस्ते को तैयार रखना शामिल है. दक्षिण भारत में एक सैन्य बेस पर कुछ सक्रियता देखे जाने की भी बात कही जा रही है. इसके तहत ही भारत ने अपने नागरिकों को मालदीव न जाने की सलाह दी है.
कैसे शुरू हुआ था संकट?
मालदीव का संकट बीते सप्ताह गुरुवार को तब शुरू हुआ, जब वहां के सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद नौ नेताओं को रिहा करने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, उन पर चलाया जा रहा मुकदमा राजनीति से प्रेरित है और गलत है. इनमेंपूर्वराष्ट्रपतिमोहम्मद नशीद भी शामिल हैं. राष्ट्रति यामीन ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद लोगों ने वहां राजधानी माले में सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया. बढ़ते दबाव के मद्देनजर यामीन ने सोमवार को देश में इमरजेंसी लगाने का एलान कर दिया. राष्ट्रपति यामीन ने न्यायाधीशों पर आरोप लगाया कि वह उन्हें अपदस्थ करने की साजिश रच रहे थे और इस साजिश की जांच करने के लिए ही आपातकाल लगाया गया है. कल उनके आपातकाल लगाने के आदेश के कुछ घंटे बाद मुख्य न्यायाधीश अब्दुल्ला सईद और एक अन्य न्यायाधीश अली हमीद को गिरफ्तार कर लिया गया था.
राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल लगाये जाने से बने दबाव का यह असर हुआ कि शेष तीन जजों वाली सुप्रीम कोर्ट ने नौ हाइदप्रोफाइल राजनीतिक कैदियों के रिहाई के आदेश को वापस ले लिया. जजों ने एक बयान में कहा कि वे राष्ट्रपति द्वारा उठाई गयी चिंताओं के मद्देनजर कैदियों की रिहाई के आदेश को वापस ले रहे हैं.
पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को भारत से क्यों हैं उम्मीदें?
पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को मौजूदा संकट के मद्देनजर भारत से बहुत उम्मीदें हैं. नशीद का आरोप है कि राष्ट्रपति यामीन ने गलत ढंग से देश में मार्शल लॉ लागू किया है. उन्होंने कहा है कि मौलिक अधिकारों व आजादी पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. नशीद ने राष्ट्रपति यामीन को सत्ता से हटाने की अपील की है. उन्होंने कहा है कि मालदीव के लोगों को दुनिया और खास कर भारत और अमेरिका की सरकारों से इस संबंध में प्रार्थना है. उन्होंने भारत से सैन्य हस्तक्षेप की भी मांग की है. उन्होंने अमेरिका से यह पक्का करने को भी कहा कि सभी अमेरिकी वित्तीय संस्थाएं यामीन सरकार के नेताओं के साथ हर तरह का लेन-देन बंद कर दें.
नशीद की मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) कोलंबो से अपना कामकाज संचालित कर रही है. नशीद ने अपने ट्वीट में कहा, ‘‘हम चाहेंगे कि भारत सरकार अपनी सेना द्वारा समर्थित एक दूत भेजे ताकि न्यायाधीशों और पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम सहित सभी राजनीतिक बंदियों को हिरासत से छुड़ाया जा सके और उन्हें उनके घर लाया जा सके’ लोकतांत्रिक तौर पर चुने गए मालदीव के पहले राष्ट्रपति नशीद को 2012 में अपदस्थ करने के बाद इस देश ने कई राजनीतिक संकट देखे हैं. भारत के लोकतंत्र के कारण नशीद का हमेशा भारत के प्रति गहरा भरोसा रहा है.
अमेरिका ने क्या कहा है?
अमेरिका ने मालदीव में राष्ट्रपति यामीन की ओर से आपातकाल घोषित करने पर ‘‘निराश’ व्यक्त की है. अमेरिका ने यामीन से कहा कि वह कानून के शासन का पालन करें और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अमल में लाएं. अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता हीथर नॉअर्ट ने कहा है कि, ‘‘अमेरिका राष्ट्रपति यामीन, सेना और पुलिस से अपील करता है कि वे कानून के शासन का पालन करें, सुप्रीम कोर्ट और फौजदारी अदालत के फैसले पर अमल करें, संसद का उचित एवं पूर्ण संचालन सुनिश्चित करें और मालदीव के लोगों एवं संस्थाओं को संवैधानिक तौर पर मिले अधिकारों की बहाली सुनिश्चित करें.’

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