बनारस आर मोदी

ज्ञानदत्त पांडेय पच्चीस अप्रैल को बनारस में था मैं. एक दिन पहले बड़ी रैली थी नरेन्द्र मोदी की. उनका चुनाव पर्चा भरने का रोड शो. सुना और टेलीविजन पर देखा था कि बनारस की सड़कें पटी पड़ी थीं. रोड शो का दृष्य अभूतपूर्व लग रहा था. इस लिये पच्चीस अप्रैल को उत्सुकता थी वहां का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 6, 2014 11:57 AM

ज्ञानदत्त पांडेय

पच्चीस अप्रैल को बनारस में था मैं. एक दिन पहले बड़ी रैली थी नरेन्द्र मोदी की. उनका चुनाव पर्चा भरने का रोड शो. सुना और टेलीविजन पर देखा था कि बनारस की सड़कें पटी पड़ी थीं. रोड शो का दृष्य अभूतपूर्व लग रहा था. इस लिये पच्चीस अप्रैल को उत्सुकता थी वहां का हाल चाल और लोगों का विचार जानने की.

सवेरे-सवेरे पहले बनारसी से सम्पर्क बना अपने टैक्सी चालक से. नाम था धनुरधारी. यहीं भदोही के चौरीबाजार का रहने वाला. पूछते ही बोला- पचास परसेंट में मोदी हैं और बचे पचास में बाकी सब. फिर सोच कर परिवर्तन किया, यह तो कल से पहले की बात थी. कल के बाद तो साठ परसेंट में? मोदी और बकिया चालीस में और सब. अजय राय का कुछ बोट होगा. केजरीवाल का नावैं नहीं है.

धनुरधारी के अनुसार भाजपा नहीं है. जो है सो मोदी है. रास्ते भर जो कुछ धनुरधारी ने कहा; उससे प्रमाणित था कि वे मोदी के फैन हैं. एक ऑटो के पीछे मोदी का पोस्टर था. दिल्ली में ऐसे पोस्टर झाडू दल के दिखते थे. झाडू देखने में उतना सुंदर नहीं लगता. दिल्ली में झाडू लगाने का मौका भी मिला था, पर उसकी सीकें ही बिखर गयीं. पोस्टर में मोदी के दाढ़ी के बाल और कमल का फूल भव्य लग रहे थे. कई होर्डिंग्स में अजय राय नाव पर बैठे, आधे ध्यानमग्न और आधा काइयां माफिया की छवि प्रस्तुत करते अपने को बनारसी विरासत का लंबरदार घोषित करते दिखा रहे थे. कहीं-कहीं ढेर सारे नेताओं की फोटो युक्त समाजवादी नेता के होर्डिंग थे. धनुरधारी ने बताया कि ये सिर्फ होर्डिंग भर में ही हैं. समाजवादी का होर्डिंग सन 1995 के जमाने के होर्डिंग जैसा पुरनिया डिजाइन का था.

दुर्गा कुंड के पास नारियल चुनरी बेचने वाले एक फुटपथिया दुकानदार से मैने पूछ लिया मोदी का हाल. उनके मुंह में पान या खैनी था. जिसे उन्होने बडे इत्मीनान से गटका और थूंका. फिर बताया-फंस गये हैं मोदी.

कैसे?

यहीं दुर्गाकुंड के पासई में केजरीवाल आसन जमाये है. झाडू से डंडा किये है. गांव देस में अजय राय के लाठी-बंदूक वाले कब्जियाये हैं. मोदी तो बाहर से आ कर फंस गये हैं. पार न पायेंगे.

पर केजरीवाल और अजय राय एक साथ तो होंगे नहीं?

मेरा प्राइमरी की गणित का सवाल उस दुकानदार को पसंद नहीं आया. एक थूक और निगल-थूंक कर उसने कहा- कुच्छो हो, आप देखियेगा सोरह को मोदी का हाल.

मेरे साथ मेरे साले थे, विकास दूबे. आजकल भाजपाई हैं. उनके अनुसार सब सनाका खा गये हैं मोदी का रोड शो देख कर. कह रहे हैं कि भीड़ शहर की नहीं बाहर से बुलाई थी. इतनी भीड़ के लिये न कोई स्पेशल ट्रेन चली, न ट्रेनों में भीड़ नजर आयी. न कहीं बसों का जमावड़ा हुआ. तो क्या हेलीकाप्टर से आयी भीड़ बाहर से. सब बनारसी लोग थे. अपने से निकले. पूरा शहर मोदी मय है. सभी आलोचकों का फेचकुर निकल रहा है! (फेचकुर देशज शब्द है. बदहवासी में जो मुंह से झाग/लार निकलता है, वह फेचकुर कहलाता है.)

दुर्गाकुंड के आसपास का नजारा देखा मैने. कुंड में पानी था. पर गंदा. मंदिर औसत सफाई वाला. इससे ज्यादा साफ करने के लिये बनारसी कल्चर में आमूलचूल बदलाव जरूरी है, बहुत कुछ वैसा बदलाव जैसी आशा मोदी से बदहाल यूपी कर रहा है. ढेरों औरतें बच्चे भीख मांग रहे थे. भीख मांगने में उनका पेशा ज्यादा नजर आ रहा था. चेहरे पर लाचारी नहीं झलक रही थी. कई औरतें भीख मांग रही थीं, कई के गोद में बच्चे थे और कोख में भी. दुर्गामाई लगता है पर्याप्त देती हैं. एक ने उनसे पूछा, मजूरी क्यों नहीं करती? उसने उत्तर देने का कष्ट नहीं किया.

उत्तरप्रदेश/बनारस में बहुत कुछ बदलाव की आशा लगाये है. पर बदलाव कोई और आ कर करे. वे खुद जस हैं, तस रहना चाहते हैं. अपने में बदलाव कोई नहीं करना चाहता. मोदी चुनाव जीत भी गये तो उत्तरप्रदेश बदलना उनके लिये आसान न होगा. ऐसा मुङो लगा.

– मानसिक हलचल ब्लॉग से साभार

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