न पीएम बनूंगा न मंत्री :राजनाथ सिंह
हवा के लिहाज से संतुलन साधने की कला में भाजपा के 62 वर्षीय राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह का कोई सानी नहीं है. शतरंज की बिसात बिछाने और तिरछी चालें चलने में भी वह माहिर हैं. अचानक कड़ा फैसला लेकर दूसरों को अचरज में डालना उनकी आदत में शुमार है. यूपी के मुख्यमंत्री रहते हुए फैशन […]
हवा के लिहाज से संतुलन साधने की कला में भाजपा के 62 वर्षीय राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह का कोई सानी नहीं है. शतरंज की बिसात बिछाने और तिरछी चालें चलने में भी वह माहिर हैं. अचानक कड़ा फैसला लेकर दूसरों को अचरज में डालना उनकी आदत में शुमार है.
यूपी के मुख्यमंत्री रहते हुए फैशन शो पर प्रतिबंध लगाना और यूपी की शिक्षा प्रणाली में नकल पर अंकुश लगाने को लेकर शिक्षामंत्री के रूप में लिए गए उनके फैसलों पर जमकर विवाद हुआ पर उन्होंने अपना फैसला नहीं बदला. भाजपा से प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेद्र मोदी के साथ बेहतर ट्यूनिंग रखने वाले राजनाथ गाजियाबाद छोड़कर इस बार लखनऊ संसदीय सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. बीते तीन माह से वह लगातार भाजपा की रणनीति तैयार करने के साथ ही साथ देश भर में चुनावी सभाएं भी कर रह हैं. यूपी के चंदौली जिले में पैदा हुए और मिर्जापुर में भौतिक शास्त्र के व्याख्याता रहे राजनाथ ने लखनऊ से चुनाव लड़ने का फैसला क्यों किया? और भाजपा की आगामी योजना क्या है? इसे लेकर राजनाथ सिंह से लखनऊ में राजेंद्र कुमार की बातचीत के अंश :
गाजियाबाद छोड़कर आप लखनऊ से चुनाव लड़ने क्यों आए?
मुङो लखनऊ से चुनाव लडने का निर्णय पार्टी ने लिया था. इसलिए मैं वहां से चुनाव लड़ने आ गया. रही बात यहां क्या करना चाहूंगा तो लखनऊ को लेकर दिमाग में काफी योजनाएं हैं. जब यूपी का मुख्यमंत्री था, तो लखनऊ के नियोजित विकास की एक योजना मैंने तैयार कराई थी. उसपर अमल कराऊंगा. लखनऊ वैसे भी मेरा घर है. यहां मेरा पहला एजेंडा तो चुनाव जीतना है. इसके बाद जब सरकार बनेगी तो इस शहर का देश का सबसे नियोजित शहर बना दूंगा. यकीनन यहां काफी विकास होगा.
इस वक्त नरेन्द्र मोदी की पार्टी में जो स्थिति है, उससे लगता है कि पूरी पार्टी सिर्फ एक ही नेता के कंधे पर टिकी है?
ऐसा नहीं है. मोदी लोकप्रिय नेता हैं और पूरा देश उन्हें पसंद करता है. वर्कर भी उनकी वजह से उत्साहित हैं. इसमें कुछ गलत नहीं है. पहले अटल जी और आडवाणी जी को कैंडिडेट बनाकर चुनाव लड़ा जाता था, तब उनकी भी यही स्थिति होती थी.
क्या आपको लगता है कि एनडीए पूर्ण बहुमत तक पहुंच पाएगा ? आपका क्या अनुमान है और यूपी से बीजेपी को कितनी सीटें मिल सकती हैं?
देखिए तीन सौ से ज्यादा सीटें एनडीए जीत रहा है. इसमें अब कोई संदेह नहीं रह गया है. पहले चार चरणों में ही हम बहुमत के नजदीक पहुंच गए हैं. अब बाकी के चरणों में रही सही कमी भी पूरी हो जाएगी. जहां तक बात यूपी की है तो हम लोग यहां की 80 में से लगभग 60 सीटें जीतने की स्थिति में पहुंच गए हैं. यूपी में भाजपा की लहर है. सपा और बसपा से ऊब चुकी जनता बदलाव के लिए भाजपा को समर्थन दे रही है.
इस विश्वास की वजह क्या है?
कांग्रेस के कुशासन से देश में नाराजगी है. लोग बदलाव चाहते हैं. जनता के सामने भाजपा एक बेहतर विकल्प के रूप में मौजूद है. जनता का स्नेह हमें मिल रहा है. इसी आधार पर हमारा अनुमान है कि राजग तीन सौ से अधिक सीटों पर जीत हासिल करेगा.
देश के लोग भाजपा को क्यों चुने, जब कांग्रेस की नीतियों को ही आप लोग भी आगे बढ़ाने वाले हैं?
भाजपा को कांग्रेस की नीतियों को आगे बढ़ाने वाली पार्टी कहना गलत है. भाजपा में संगठन ही सर्वोपरि है जबकि कांग्रेस एक परिवार की पार्टी है. जहां तक भाजपा को चुनने की बात है तो भाजपा सबकी चिंता करने वाली पार्टी है. अटलजी की सरकार ने यह करके दिखाया था. देश के लोग अभी तक अटल सरकार के कामकाज को भूले नहीं है. वर्ष 1998 से 2004 तक के अटलजी के कार्यकाल के सुशासन को अभी भी लोग याद करते हैं.
दूसरे दलों की तरह ही भाजपा में भी सामूहिक नेतृत्व की जगह अब व्यक्ति आधारित नेतृत्व स्थापित कर दिया गया है? मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ना क्या यह साबित नहीं करता?
नहीं ऐसा नहीं है. भाजपा में चुनाव संबंधी सारे फैसले केंद्रीय चुनाव समिति ने किए हैं. सभी कुछ सर्वसम्मति से तय किया गया है. कोई व्यक्तिगत फैसला नहीं हुआ है, जैसा कांग्रेस और दूसरी पार्टियों में होता है. क्या कांग्रेस में सोनिया गांधी के खिलाफ कोई बोल सकता है? सपा में मुलायम सिंह और बसपा में मायावती का क्या कोई विरोध कर सकता है? पर भाजपा में लोग अपनी बात पार्टी मंच पर खुल कर रख सकते है.
मुसलिम मतदाताओं को लुभाने के प्रयास में सभी दल जुटे हैं. आप भी मुस्लिम मौलाना कल्बे जव्वाद और मौलाना खालिद रशीद के अलावा इसाई धर्मगुरु ओं से मिलने गए. परन्तु जब सोनिया गांधी दिल्ली के इमाम से मिली तो आपकी पार्टी ने आलोचना की.
देखिए दोनों में फर्क है. सोनिया जी ने शाही इमाम से वोटों के लालच और पार्टी के प्रचार के लिए भेंट की, जबकि हमने शिष्टाचार के नाते मुलाकात की क्योंकि हम लखनऊ से चुनाव लड रहे हैं. मैं जिन धर्मगुरुओं से मिला वे सब इसी क्षेत्र के वोटर हैं.
लखनऊ से अटल जी पांच बार जीते और दो बार यहीं से जीत कर प्रधानमंत्री बने. क्या आप यहां से इस बार इसीलिए लड़ रहे हैं कि नरेंद्र मोदी के विवादित व्यक्तित्व पर यदि एक राय नहीं बनी तो आपको पीएम पद के लिए आगे किया जा सकता है?
यह कपोल कल्पना है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही बनेंगे. मैं सरकार में शामिल नहीं होऊंगा. ना ही सरकार में कोई पद लूंगा.
कल्बे जव्वाद ने कहा आपमें अटल जी की छवि दिखती है.
लखनऊ हमारी कर्मस्थली रही है. और जहां तक अटल जी की बात है तो उनके कद के बराबर होने की हम तो सोच तक नहीं सकते. उनका व्यक्तित्व विशालकाय है. मुख्यमंत्री रहते हुए मैं जव्वाद साहब से मिलता रहता था. उनके कहे पर मुङो कुछ नहीं कहना.
हमेशा पर्दे के पीछे से रणनीति तैयार करने वाली आरएसएस के प्रचारक इंद्रेश कुमार यहां आपके पक्ष में प्रचार कर रहे हैं?
हम भी आरएसएस के स्वयं सेवक ही हैं. जहां तक बात है आरएसएस के लोगों के प्रचार करने की तो आज देश के सामने हर मोर्चे पर जबर्दस्त चुनौतियां मौजूद हैं. ऐसे में आरएसएस और हर राष्ट्रवादी चाहेगा कि देश में एक मजबूत सरकार के लिए भाजपा का समर्थन किया जाए.
लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज और मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्ठ नेता पार्टी में नरेंद्र मोदी के बढते वर्चस्व से खुश नहीं हैं.
ऐसा कुछ भी नहीं है, बीजेपी के सभी निर्णय केंद्रीय स्तर पर सामूहिक रूप से होते हैं. जिन नेताओं का आपने नाम लिया है, वह भी इन फैसलों में शामिल होते हैं. रही बात नरेन्द्र मोदी जी की तो वह मुरली मनोहर जोशी और सुषमाजी का बहुत आदर करते हैं. कानपुर में मोदीजी ने मुरली मनोहर जोशी को देखते ही उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया. यह सभी ने देखा भी.
आखिर नरेंद्र मोदी को दो दो जगहों से चुनाव लड़ने की जरूरत क्यों पड़ी. क्या आपने ही मोदी को वाराणसी से लड़ने का सुझाव दिया था?
उनका दो जगहों से चुनाव लड़ना पार्टी की जरूरत थी. खासतौर से वाराणसी सीट से. उनके यहां से चुनाव लड़ने का प्रभाव पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की सीटों पर पड़ेगा. निश्चित तौर पर हमें इसका फायदा मिलेगा. इसलिए वे गुजरात के अलावा वाराणसी से भी चुनाव लड़ रहे हैं. और मोदीजी के दो जगहों से चुनाव लड़ने का निर्णय केन्द्रीय चुनाव समिति ने किया था. मैंने उन्हें इस मामले में कोई सुझाव नहीं दिया था.
अगर भाजपा की सरकार केंद्र में बनती है तो मुसलमानों की जगह क्या होगी? आप मुस्लिमों को लेकर क्या सोचते हैं.
मुसलिम समाज में भाजपा को लेकर भ्रम फैलाने का काम कुछ राजनीतिक दल और उसके नेता कर रहे हैं. भाजपा धर्म के आधार पर किसी के साथ व्यवहार नहीं करती. आपको बताऊं भभौरा गांव में मेरा पड़ोसी मुसलिम है, मेरी शादी भी एक मुसलिम परिवार ने तय कराई थी क्योंकि मेरे पिताजी के वे अभिन्न मित्र थे. उनके हां कहने के बाद ही पिताजी ने हां कही. अभी भी वे सब हमारे परिवार का हिस्सा हैं. मैं चाहता हूं, ऐसा माहौल हर जगह दिखे. इसके लिए प्रयास भी करूंगा.
क्या भाजपा चुनाव के बाद अपना कुनबा बढ़ाने के लिए उन दलों के साथ गठबंधन करेगी, जो राजग में नहीं हैं?
भाजपा की अगुआई वाले एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिलेगा और हम ज्यादा साङोदारों की जरूरत नहीं होगी. फिर भी कोई हमारे साथ कोई आना चाहेगा तो उसको निराश नहीं करेंगे.
सत्ता में आने पर प्रियंका गांधी के पति के खिलाफ कार्रवाई करने की बात भाजपा के कई वरिष्ठ नेता कर रहे हैं. क्या वास्तव में राजग सरकार बदले की भावना के तहत कांग्रेस के नेता और गांधी परिवार के खिलाफ कार्रवाई करेगी?
देखिए नरेन्द्र मोदी जी इस प्रकरण पर अपना विचार रख चुके हैं. मैंने भी कहा कि भाजपा किसी के खिलाफ बदले की भावना के तहत कार्रवाई नहीं करेगी. यदि किसी के गलत किया है तो उसके खिलाफ कानून के तहत ही कार्रवाई होगी और हमारी सरकार किसी एजेंसी पर दबाव नहीं बताएगी. सभी को स्वतंत्र रूप से कार्य करने की आजादी होगी.
क्या रिजर्व बैंक के गवर्नर को राजग के सत्ता में आने पर हटाया जाएगा.
बिल्कुल नहीं. आरबीआई गवर्नर अपने पद पर बने रहेंगे. हम बदले की भावना से काम नहीं करते.