नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश एएम खानविलकर ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील 64 करोड़ रुपये के बोफोर्स भुगतान मामले की सुनवाई से मंगलवारको स्वयं को अलग कर लिया.
न्यायमूर्ति खानविलकर, प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षतावाली पीठ का हिस्सा थे. उन्होंने मामले की सुनवाई से अलग रहने का विकल्प चुनने का कोई कारण नहीं बताया. इस पीठ में न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे. पीठ ने कहा कि मामले की 28 मार्च को सुनवाई के लिए नयी पीठ का गठन किया जायेगा. दिल्ली उच्च न्यायालय ने 31 मई 2005 को फैसला सुनाते हुए मामले के सभी आरोपियों के खिलाफ सभी आरोप खारिज कर दिये थे. भाजपा नेता अजय अग्रवाल ने अदालत के इस आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी, जिसकी सुनवाई इस पीठ को करनी थी.
गौरतलब है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो ने राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील बोफोर्स तोप सौदा दलाली कांड में आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ सारे आरोप निरस्त करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के 2005 के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी. बोफोर्स तोप सौदा दलाली कांड में जांच ब्यूरो द्वारा याचिका दायर करना एक महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि हाल ही में अटाॅर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ 12 साल बाद अपील दायर नहीं करने की उसे सलाह दी थी.
सूत्रों के अनुसार, गहन विचार-विमर्श के बाद विधि अधिकारियों ने अपील दायर करने की हिमायत की क्योंकि जांच ब्यूरो ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने के लिए ‘कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज और साक्ष्य’ उनके समक्ष पेश किये थे. दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आरएस सोढी (अब सेवानिवृत्त) ने 31 मई, 2005 को अपने फैसले में 64 करोड़ रुपये की दलाली मामले में हिंदुजा बंधुओं सहित सारे आरोपियों को आरोप मुक्त कर दिया था. इससे पहले, अटाॅर्नी जनरल ने जांच ब्यूरो को सलाह दी थी कि उच्च न्यायालय के 2005 के फैसले को चुनौती देनेवाली भाजपा नेता अजय अग्रवाल की याचिका में ही बतौर प्रतिवादी अपना मामला बनाये.
भारत और स्वीडन की हथियारों का निर्माण करनेवाली एबी बोफोर्स के बीच सेना के लिए 155एमएम की 400 हाॅवित्जर तोपों की आपूर्ति के बारे में 24 मार्च, 1986 में 1437 करोड़ रुपये का करार हुआ था. इसके कुछ समय बाद ही 16 अप्रैल, 1987 को स्वीडिश रेडियो ने दावा किया था कि इस सौदे में बोफोर्स कंपनी ने भारत के शीर्ष राजनीतिकों और रक्षाकार्मिकों को दलाली दी.
इस मामले में 22 जनवरी, 1990 को केंद्रीय जांच ब्यूरो ने आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोप में भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत एबी बोफोर्स के तत्कालीन अध्यक्ष मार्टिन आर्दबो, कथित बिचौलिये विन चड्ढा और हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ प्राथिमकी दर्ज की थी. इस मामले में जांच ब्यूरो ने 22 अक्तूबर, 1999 को चड्ढा, ओतावियो क्वोत्रोक्कि, तत्कालीन रक्षा सचिव एस के भटनागर, आर्दबो और बोफोर्स कंपनी के खिलाफ पहला आरोप पत्र दायर किया था. इसके बाद, नौ अक्तूबर, 2000 को हिंदुओं बंधुओं के खिलाफ पूरक आरोप पत्र दायर किया गया. दिल्ली में विशेष सीबीआई अदालत ने चार मार्च, 2011 को क्वोत्रोक्कि को यह कहते हुए आरोप मुक्त कर दिया था कि देश उसके प्रत्यपर्ण पर मेहनत से अर्जित राशि खर्च करना बर्दाश्त नहीं कर सकता, क्योंकि इस मामले में पहले ही 250 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. क्वोत्रोक्कि 29-30 जुलाई 1993 को देश से भाग गया ओर कभी भी मुकदमे का सामना करने के लिये देश की अदालत में पेश नहीं हुआ. बाद में 13 जुलाई, 2013 को उसकी मृत्यु हो गयी. यह मामला लंबित होने के दौरान ही पूर्व रक्षा सचिव भटनागर और विन चड्ढा का भी निधन हो चुका है.