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त्रिपुरा में लाल किला ध्वस्त, जानिए भाजपा के जीत के पांच कारण

अगरतला : त्रिपुरा में पांच साल में भाजपा शून्य से शिखर तक पहुंची है. 2013 के चुनाव में भाजपा को सिर्फ 1.54 फीसदी वोट मिले थे जबकि सीटें एक भी नहीं प्राप्त हुई थी. पांच साल बाद यानी 2018 में भाजपा को अकेले 43 फीसदी वोट और 35 सीटें मिली हैं. माकपा को करीब सात […]

अगरतला : त्रिपुरा में पांच साल में भाजपा शून्य से शिखर तक पहुंची है. 2013 के चुनाव में भाजपा को सिर्फ 1.54 फीसदी वोट मिले थे जबकि सीटें एक भी नहीं प्राप्त हुई थी. पांच साल बाद यानी 2018 में भाजपा को अकेले 43 फीसदी वोट और 35 सीटें मिली हैं. माकपा को करीब सात फीसदी वोट और 33 सीटों का नुकसान हुआ है. हालांकि भाजपा और माकपा के बीच वोट फीसदी का अंतर सिर्फ 0.3 फीसदी का है. इस जीत के साथ ही इसबार त्रिपुरा में भाजपा की सरकार बनेगी. 25 साल में वाम दल की यह सबसे बड़ी हार है. सात फीसदी वोट से वाम की माणिक सरकार चली गयी. आइए जानते हैं आखिर हार के क्या कारण हो सकते हैं….

भाजपा के जीत के पांच कारण

1. भाजपा ने दो सालों से इन चुनावों को लेकर तैयारी शुरू कर दी. नेताओं ने पार्टी कार्यकर्ताओं को लोगों के बीच भेजा. कई वरिष्ठ नेताओं ने वहीं पर डेरा जमा लिया.

2. भाजपा ने एंटी लेफ्ट वोट पर ध्यान केंद्रित किया. नीचे के स्तर पर काम करके लेफ्ट के वोटों में सेंधमारी की. हाल ही में हुए निकाय चुनाव में पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया.

3. लेफ्ट सरकार को लेकर लोगों में नाराजगी थी. आरोप लगते रहे हैं कि सरकार ने पार्टी काडर और अपने लोगों को ही केवल फायदा पहुंचाया. बाकी सब को अलग कर दिया जाता है.

4. कांग्रेस अक्सर गठबंधन बना कर चुनाव लड़ती रही है. इस बार भी बहुत मजबूती से चुनाव नहीं लड़ी. भाजपा ने भरपूर फायदा उठाया. वहां के कांग्रेस वोटों को सीधे अपने खाते में शिफ्ट किया.

5. त्रिपुरा में चौथा पे कमीशन है. बीजेपी ने सातवें वेतन आयोग की बात कही. यही वादा कांग्रेस ने भी किया है. लेकिन लोगों को भाजपा पर भरोसा जताया. गौरतलब है कि वहां पर सरकारी कर्मचारी अच्छे खासे वोटर हैं.

तीनों राज्यों के सीएम जीते
नगालैंड के सीएम एवं एनपीएफ उम्मीदवार टीआर जेलियांग ने एनडीपीपी के इहेरी नदांग को 5,432 वोटों से हराकर पेरेन सीट बरकरार रखी. उन्हें कुल 14,064 वोट मिले.

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने धानपुर सीट पर भाजपा प्रत्याशी प्रतिमा भौमिक को 5,441 मतों से पराजित किया. सरकार को 22,176 वोट मिले.

दोनों सीटों से जीते मेघालय के मुख्यमंत्री मुकुल संगमा अम्पति सीट से मुकुल संगमा ने भाजपा प्रत्याशी को 6000 वोट और सोंगसाक सीट पर एनपीएफ प्रत्याशी को 1300 मतों के अंतर से हराया. उनकी पत्नी दिक्कांची डी शिरा भी महेंद्रगंज सीट से जीत गयीं.

त्रिपुरा और नगालैंड में सीएम कौन

जिम इंस्ट्रक्टर से नेता बने बिप्लव

प्रदेश अध्यक्ष अध्यक्ष बिप्लव देब ने कहा कि वह सीएम की जिम्मेदारी को तैयार हैं, लेकिन इस बारे में फैसला भाजपा संसदीय बोर्ड को लेना है. जिम इंस्ट्रक्टर से नेता बने देब ने भारी समर्थन के लिए त्रिपुरा के लोगों का आभार जताया. मुझे पहले ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की बड़ी जिम्मेदारी मिली हुई है, जिसे मैं बखूबी निभा रहा हूं.

दूसरी बार निर्विरोध चुने गये रियो

तीन बार मुख्यमंत्री रहे और नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के उम्मीदवार नेफियू रियो कोहिमा जिले के उत्तर अंगामी-2 विधानसभा से निर्विरोध जीत गये हैं. पहली बार नहीं है जब रियो बिना चुनाव लड़े विस पुहंचे हैं. 1998 में वह कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में निर्विरोध चुने गेय थे, उस वक्त अन्य दलों ने बहिष्कार किया था. रियो नगालैंड से सांसद थे. संसद से भी इस्तीफा दे दिया.

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