…तो क्या टीडीपी आैर एनडीए की ”अलगौझी” से आंध्र में भाजपा के लिए खड़ा हो जायेगा संकट?
नयी दिल्ली/अमरावती : केंद्र सरकार की आेर से विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिये जाने के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री आैर तेलगू देशम पार्टी (टीडीपी) के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से (एनडीए) से अलगौझी करने के मूड में दिखायी दे रहे हैं. इस मसले को भाजपा की आेर से जितना अधिक सुलझाने […]
नयी दिल्ली/अमरावती : केंद्र सरकार की आेर से विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिये जाने के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री आैर तेलगू देशम पार्टी (टीडीपी) के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से (एनडीए) से अलगौझी करने के मूड में दिखायी दे रहे हैं. इस मसले को भाजपा की आेर से जितना अधिक सुलझाने का प्रयास किया जा रहा है, टीडीपी एनडीए से उतनी ही अधिक दूरी बनाती जा रही है. नये घटनाक्रम में यह बात भी सामने आयी है कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बातचीत के दौरान नायडू ने एनडीए से अलगौझी करने के फैसले पर पीएम की आेर से पुनर्विचार किये जाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है. इस वजह से राजनीति के बाजार में अटकलों का बाजार गर्म होने के साथ ही इस बात का भी विश्लेषण किया जा रहा है कि यदि टीडीपी ने एनडीए से अलगौझी कर ली, तो क्या आंध्र प्रदेश में भाजपा के लिए संकट खड़ा हो जायेगा?
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कहा जा रहा है कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने केुद्र की एनडीए सरकार से हटने के टीडीपी के फैसले पर ‘पुनर्विचार’ करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुरोध को ठुकरा दिया. उन्होंने कहा कि चीजें समझौता करने के स्तर से काफी आगे बढ़ चुकी हैं. सूत्रों का कहना है कि मोदी ने गुरुवार की शाम फोन पर नायडू से बात की और आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे पर बुधवार की देर रात किये गये टीडीपी के फैसले पर चर्चा की.
पीएम ने फोन पर नायडू को दिल्ली आने का दिया न्योता, टीडीपी ने किया इनकार
टेलीफोन पर बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने नायडू से नयी दिल्ली आकर व्यक्तिगत बातचीत करने को कहा, लेकिन नायडू ने इस पर कुछ नहीं कहा. राज्य के एक मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री ने हमारे नेता से व्यक्तिगत रूप से आकर सभी मुद्दों पर चर्चा करने को कहा, लेकिन चंद्रबाबू ने कहा कि वह अब नहीं जा सकते. नायडू ने मोदी से फोन पर बातचीत के बाद गुरुवार की रात को ही अपने आवास पर अपने मंत्रियों के साथ बैठक की. टीडीपी प्रमुख ने अपनी पार्टी के सहयोगियों को एनडीए सरकार से हटने के फैसले पर फिर से विचार करने के मोदी के आग्रह के बारे में बताया. बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री ने टीडीपी नेता से कहा कि अगर हमने बैठकर बात की होती, तो मुद्दा सुलझ सकता था. बताया जाता है कि नायडू ने कहा कि हमने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य के दर्जे के लिए चार साल धैर्यपूर्वक इंतजार किया, लेकिन अंतत: हमें जनता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए एनडीए छोड़ने का फैसला करना पड़ा.
…तो क्या नायडू के इस फैसले से आंध्र में भाजपा की बढ़ सकती हैं मुश्किलें?
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने मोदी कैबिनेट से टीडीपी के बाहर होने का कदम बहुत ही नाप-तौल पर उठाया है और इससे आंध्र प्रदेश में भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. अगर टीडीपी ने भाजपा के साथ चुनावी गठबंधन भी तोड़ा, तो दोनों ही पार्टियों को आंध्र प्रदेश में नये चुनावी साझीदार खोजने पड़ेंगे और 2019 में सूबे में नया राजनीतिक समीकरण उभरता दिख सकता है. भाजपा भले ही देशभर में मजबूती हासिल करती जा रही हो, लेकिन अगर विश्लेषकों की मानें, आंध्र प्रदेश में उसकी राह आसान नहीं है. भाजपा के लिए सूबे में अपने दम पर पांव जमाना मुश्किल होगा.
भाजपा का ही एक धड़े ने टीडीपी के साथ गठबंधन का किया था विरोध
भाजपा के सूत्रों के मुताबिक, पार्टी के भीतर एक काफी मुखर धड़ा था, जिसने टीडीपी के साथ गठबंधन का विरोध किया था. इनमें संघ की पृष्ठभूमि वाले नेता शामिल हैं, जिनकी अगुआई विधायक सोमा वीरा राजू कर रहे हैं. इस गुट में डी पुरंदेश्वरी, कन्ना लक्ष्मीनारायण और कावुरी संबाशिवा राव जैसे कांग्रेस से भाजपा में आये नेता भी शामिल हैं. इसके साथ ही, भाजपा की आंध्र इकार्इ के सामने खुद के दम पर 2019 में अपने सांसदों की संख्या को बढ़ाने की कड़ी चुनौती है. 2014 में भाजपा को आंध्र प्रदेश से 2 लोकसभा सीटें और 4 विधानसभा सीटें मिली थीं.
अपने दम पर चुनाव लड़ने से भाजपा ने अब तक नहीं छोड़ी कोर्इ छाप
अविभाजित आंध्र प्रदेश के समय से भी सूबे में भाजपा की पैठ की बात करें, तो इस राज्य में भाजपा ने जब कभी भी अपने दम पर चुनाव लड़ा, तो वह कोई छाप नहीं छोड़ पायी है. ताजा राजनीतिक घटनाक्रम के बाद टीडीपी के साथ-साथ जगन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस भी भाजपा को खलनायक के तौर पर प्रचारित कर रही है. इसका कारण यह है कि राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने के मामले में सूबे की विपक्षी पार्टियां भी टीडीपी के साथ खड़ी नजर आ रही हैं. ऐसे में भाजपा के लिए चुनावों के दौरान आत्मविश्वास हासिल करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.
भाजपा के पास आंध्र प्रदेश में वेंकैया को छोड़ नहीं है कोर्इ कद्दावर नेता
भाजपा के सामने एक और बड़ी चुनौती यह भी है कि उसके पास आंध्र प्रदेश में एन चंद्र बाबू नायडू या जगन रेड्डी के कद से मेल खाने वाला कोई दिग्गज नेता नहीं है. सिर्फ एम वेंकैया नायडू ही एक एेसे नेता हैं, जो यहां पर जननेता के रूप में जनता के रूप में पैठ बनाये हुए हैं. अब उपराष्ट्रपति बनाये जाने के बाद वे सक्रिय राजनीति से करीब-करीब दूर हो गये हैं. भाजपा अगर वाईएसआर के साथ गठबंधन करने में कामयाब हो जाती है, तो उसकी किस्मत बदल सकती है. हालांकि, सूत्रों का कहना है कि इनका गठबंधन दोनों के लिए तभी फायदेमंद हो सकता है, जब दोनों ही पार्टियां गठबंधन के बाद भी अपने-अपने वोटबैंक को बरकरार रख सकें. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो अल्पसंख्यकों से जगन को तगड़ा झटका लग सकता है और भाजपा को भी हिंदू मतों का थोड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है.