आज से रामजन्म भूमि मामले का सुप्रीम कोर्ट में रोज होगी सुनवार्इ, जानिये 2010 में इलाहाबाद हार्इकोर्ट ने क्या दिया था फैसला…?

नयी दिल्ली : अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर सुप्रीम कोर्ट बुधवार से रोजाना सुनवाई करेगा. इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट इस बात को साफ कर चुका है कि इस मामले को आस्था की तरह नहीं, बल्कि जमीनी विवाद के तौर पर देखेगा. सुप्रीम कोर्ट की पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 14, 2018 7:51 AM

नयी दिल्ली : अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर सुप्रीम कोर्ट बुधवार से रोजाना सुनवाई करेगा. इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट इस बात को साफ कर चुका है कि इस मामले को आस्था की तरह नहीं, बल्कि जमीनी विवाद के तौर पर देखेगा. सुप्रीम कोर्ट की पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 13 अपीलों पर सुनवाई करेगी. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ के इस विवादित स्थल को इस विवाद के तीनों पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और भगवान राम लला के बीच बांटने का आदेश दिया था.

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सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सबसे पहले यह तय करेगा कि मामले के सभी पक्षकारों को किन-किन बिंदुओं पर बहस करनी है और बहस की रूपरेखा क्या होगी. जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी. आठ मार्च को सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार के सामने हुई मीटिंग में सभी पक्षों ने कहा कि कागजी कार्रवाई और अनुवाद का काम लगभग पूरा हो गया है. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कागजी कार्रवाई और अनुवाद का काम पूरा करने के आदेश दिये थे. रामायण, रामचरितमानस व गीता आदि के जो दस्तावेज हाईकोर्ट में सुनवाई में थे उनका भी अंग्रेज़ी में अनुवाद का काम हो चुका है.

करीब नौ हजार से ज्यादा पन्नों के हिंदी, पाली, उर्दू, अरबी, पारसी, संस्कृत आदि सात भाषाओं के अदालती दस्तावेजों का अंग्रेजी में अनुवाद पूरा हो चुका है. कोर्ट के आदेश पर अनुवाद का यह काम उत्तर प्रदेश सरकार ने किया है. सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल के अलावा अन्य याचिकाकर्ताओं ने मांग करते हुए कहा था कि कम से कम 7 जजों की बेंच इस मामले पर सुनवाई करे. उत्तर प्रदेश के सेन्ट्रल शिया वक्फ बोर्ड ने इस विवाद के समाधान की पेशकश करते हुए न्यायालय से कहा था कि अयोध्या में विवादित स्थल से ‘उचित दूरी’ पर मुस्लिम बाहुल्य इलाके में मस्जिद का निर्माण किया जा सकता है.

राम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था. इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दिया था. फैसले में कहा गया था कि विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया जाए, जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला को विराजमान कर दिया जाए. सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए, जबकि बाकी का एक तिहाई जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दी जाए.

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. वहीं, दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल कर दी. इसके बाद इस मामले में कई और पक्षकारों ने याचिकाएं लगायी. सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई, 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी. सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट में इसके बाद से यह मामला लंबित है.

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