नयी दिल्ली : वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शुक्रवार को कहा कि केंद्र सरकार आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य के दर्जे के बराबर विशेष पैकेज देने को लेकरवचनबद्ध है और इसका तौर तरीका तय करने के बारे में केंद्र ने राज्य सरकार के जवाब का लंबा इंतजार किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. जेटली ने यह बात आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी तेलुगू देशम (टीडीपी)के केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग होने के एक दिन बाद कही है.
तेलुगू देशम पार्टी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने का वादा नहीं निभानेका आरोप लगाते हुए राजग से अलग हो गयी है. जेटली ने कहा कि राज्य को विशेष पैकेज देने और उसके तौर तरीकों को लेकर सितंबर 2016 में ही सहमति बन गयी थी, लेकिन राज्य सरकार ने इस साल जनवरी में कोष प्राप्ति के तरीके में बदलाव लाने की सलाह दी. इसके लिए भी केंद्र राजी था, लेकिन इसके बाद राज्य की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. वित्त मंत्री ने कहा, ‘एक समाधान उनके समक्ष रखा गया था. अब यह आंध्र प्रदेश पर निर्भर है कि वह संसाधन लेना चाहते हैं या फिर वह (इसमें) एक मुद्दा खड़ा करना चाहते हैं.’
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्ववाली तेलुगू देशम पार्टी के 545 सवस्योंवाली लोकसभा में 16 सांसद हैं. पार्टी ने पहले केंद्र सरकार से अपने दोनों मंत्रियों को वापस बुलाया और गुरुवार को पार्टी ने राजग से भी नाता तोड़ लिया. तेलुगू देशम पार्टी आंध्र प्रदेश के लिए वृहद वित्तीय सहायता की मांग करती रही है. आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद राज्य को हुए नुकसान की भरपाई के लिए वह केंद्र से यह सहायता मांगती रही है.
जेटली ने कहा, केंद्र सरकार वादे के मुताबिक आंध्र प्रदेश को धन देने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है, उसकी तरफ से इस मामले में कोई देरी नहीं है. उन्होंने कहा कि 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद अक्षरक्ष: आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता. वित्त आयोग केंद्र सरकार के वित्तीय संसाधनों में से राज्यों को दिये जानेवाले हिस्से को लेकर अपनी सिफारिशें देता है. संविधान के तहत अधिकार प्राप्त इस आयोग ने पिछली बार अपनी सिफारिशों में केंद्रीय करों में राज्यों का हिस्सा पहले के 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत कर दिया. इसके साथ ही यदि किसी राज्य को अतिरिक्त क्षतिपूर्ति की आवश्यकता पड़ती है तो उसका राजस्व घाटा भी पूरा करने को कहा है.
वित्त मंत्री ने बताया कि विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त राज्य को केंद्र प्रायोजित योजनाओं में केवल 10 प्रतिशत हिस्सा देना होता है, जबकि सामान्य श्रेणीवाले राज्य को 40 प्रतिशत हिस्से की भरपाई करनी होती है. विशेष श्रेणी का दर्जाप्राप्त राज्य के मामले में शेष 90 प्रतिशत राशि और सामान्य श्रेणी के राज्य के मामले में 60 प्रतिशत राशि केंद्र को उपलब्ध करानी होती है. उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश को विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त राज्य के बराबर 30 प्रतिशत अतिरिक्त लाभ पांच साल के लिए देने पर सहमति बनी थी. ‘इस बारे में हमारे बीच 16 सितंबर 2016 को समाधान तय हो गया था कि विशेष श्रेणी के राज्य का दर्जा देने के बजाय हम विशेष पैकेज देंगे.’ उन्होंने कहा कि इसके तहत 30 प्रतिशत की अतिरिक्त राशि को अन्य तरीके से राज्य को उपलब्ध कराया जाना था.
जेटली ने बताया कि आंध्र प्रदेश ने सुझाव दिया कि उसको यह मदद बाह्य सहायता प्राप्त परियोजना के रूप में मिलनी चाहिए. इन परियोजनाओं में 90 प्रतिशत राशि का भुगतान केन्द्र सरकार द्वारा किया जाता है, जबकि दस प्रतिशत राज्य सरकार देती है. वित्त मंत्री ने कहा, ‘हम इस पर सहमत हो गये’, लेकिन इस साल जनवरी में आंध्र प्रदेश ने अपना फैसला बदला और कहा कि यह राशि नाबार्ड के जरिये आनी चाहिए. केंद्र ने इस पर राज्य सरकार से कहा कि इस तरीके से उसका राजकोषीय घाटा बढ़ेगा और उसकी उधार लेने की गुंजाइश भी कम होगी. इसके बाद यह तय हुआ कि एक विशेष उद्देशीय निकाय (एसपीवी) बनाया जाये जिसमें की नाबार्ड कोष स्थानांतरित करेगा. इस प्रकार के कोष का भुगतान 90 प्रतिशत तक केंद्र करेगा. ‘सात फरवरी को उनके अधिकारी ने कहा कि वह इसका पूरा ब्योरा तैयार करेंगे और फिर लौटेंगे. आज तक कोई नहीं आया.’
जेटली ने कहा, ‘हम एक तरह से उनकी प्रतीक्षा करते रहे.’ केंद्र सरकार हमेशा से ही यह देने के लिए तैयार है और हमारी तरफ से इसमें कोई देरी नहीं है. ‘इसमें जो भी बदलाव किया गया वह आंध्र प्रदेश की तरफ से किया गया हमारी तरफ से नहीं.’ आंध्र प्रदेश में से तेलंगाना को अलग करने के बाद राज्य के राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए 14वें वित्त आयोग ने 2015 से 2020 तक के लिए कोष की पहले ही गणना कर रखी है जिसका भुगतान केंद्र करेगा. इससे पहले के दस माह के लिए घाटे की गणना 2013-14 वित्त वर्ष के आधार पर की जा सकती है या फिर 2015-16 के अतिरिक्त राजस्व के आधार पर हो सकती है. पहले मामले में केवल 138 करोड़ रुपये ही देने होंगे, जबकि दूसरा फार्मूला अपनाने पर 1,600 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा. ‘हमने कहा यही ले लीजिये.’ जेटली ने कहा, ‘हम विभिन्न मुद्दों के समाधान पर उनके जवाब की अंतहीन प्रतीक्षा करते रहे.’