बेंगलुरु : चुनावी राज्य कर्नाटक में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए कांग्रेस नीत राज्य सरकार ने लिंगायत और वीरशैव लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक दर्जा देने की सिफारिश करने का सोमवार को फैसला किया. ये समुदाय राज्य में संख्या बल के अनुसार मजबूत हैं और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली हैं.
मुख्यमंत्री सिद्दरमैया की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक के बाद कानून मंत्री टीबी जयचंद्र ने संवाददाताओं से कहा कि इस मुद्दे पर राज्य सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें स्वीकार कर ली गयी हैं. उन्होंने कहा, ‘गहन चर्चा के बाद यह फैसला लिया गया.’ विशेषज्ञ समिति के मुताबिक लिंगायत और वीरशैव लिंगायत समुदाय वे हैं, जो 12वीं सदी के समाज सुधारक संत बासव के दर्शन में यकीन रखते हैं. जयचंद्र ने कहा कि कैबिनेट का फैसला मौजूदा अल्पसंख्यकों के अधिकारों और हितों को प्रभावित नहीं करेगा. लिंगायत और वीरशैव का कर्नाटक की राजनीति में व्यापक प्रभाव है. भाजपा और अन्य हिंदू संगठनों ने राज्य सरकार के इस फैसले की कड़ी आलोचना की है. उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले सिद्दरमैया सरकार पर राजनीतिक लाभ लेने के लिए समाज को बांटने का आरोप लगाया है.
लगभग 40 साल पहले लिंगायतों ने रामकृष्ण हेगड़े पर भरोसा जताया था. जब इन लोगों को लगा कि जनता दल स्थायी सरकार देने में विफल है, तो उन्होंने कांग्रेस के वीरेंद्र पाटिल का समर्थन किया. 1989 में कांग्रेस की सरकार बनी और पाटिल सीएम चुने गये. लेकिन, एक विवाद के चलते राजीव गांधी ने पाटिल को पद से हटा दिया. इसके बाद लिंगायत समुदाय ने फिर से हेगड़े का समर्थन किया. हेगड़े के निधन के बाद लिंगायतों ने भाजपा के बीएस येद्दुरप्पा को अपना नेता चुना. 2008 में वे राज्य के मुख्यमंत्री बने. जब येद्दुरप्पा को सीएम पद से हटाया गया, तो 2013 चुनाव में लिंगायतों ने भाजपा से मुंह मोड़ लिया. आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा की कमान येद्दुरप्पा के हाथों में होगी. लिंगायत समाज में उनका मजबूत जनाधार है. अब लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देकर सिद्दरमैया ने येद्दुरप्पा के जनाधार को कमजोर करने की कोशिश की है.