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आखिर कौन है इराक में 39 भारतीयों की जान लेने वाला, कैसे पनपा आैर उसके खात्मे में कहां रह गयी चूक…?

विश्वत सेन मंगलवार को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में इस बात की घोषणा की है कि करीब चार साल पहले इराक में अपहृत 39 भारतीयों के मारे जाने की पुष्टि हो गयी है. भारत के करीब चार राज्यों के 40 लोगों को जून, 2014 में इराक के मोसुल से अपहरण कर लिया गया […]

विश्वत सेन

मंगलवार को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में इस बात की घोषणा की है कि करीब चार साल पहले इराक में अपहृत 39 भारतीयों के मारे जाने की पुष्टि हो गयी है. भारत के करीब चार राज्यों के 40 लोगों को जून, 2014 में इराक के मोसुल से अपहरण कर लिया गया था. आरोप है कि भारत से काम करने इराक गये इन लोगों को अल-कायदा के खात्मे के बाद दुनिया में आतंकी दहशत पैदा करने वाले आर्इएसआर्इएस ने अपहरण कर मौत के घाट उतारने का काम किया है. आज भले ही दुर्दांत आतंकी संगठन आर्इएसआर्इएस अवसान के कगार पर है, लेकिन जिस समय उसने इन भारतीयों को अपहरण किया था, उस समय वह दहशत आैर मौत का पर्याय बना हुआ था. हमें आर्इएसआर्इएस के दहशत से डरने के पहले इस बात पर गौर करना होगा कि आखिर वह कैसे पनपा, उसने दहशत के जरिये दुनिया में वर्चस्व स्थापित करने के लिए आतंक का जाल कैसे बिछाया आैर उसके खात्मे में दुनिया के शक्तिशाली देशों ने कहां आैर कैसे चूक की?

आर्इएसआर्इएस के खौफ से न सिर्फ सीरिया, इराक, फ्रांस और खाड़ी के देश भयभीत थे, बल्कि दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका भी अपने यहां उसकी धमक को लेकर दहशत मे था. वह भी इसे सबसे खतरनाक मानता है. डर तो इस बात का भी है कि आर्इएसआर्इएस के निशाने पर अमेरिका भी है और वह लंबे अरसे से अपने मंसूबे को कामयाब करने की तैयारी में जुटा हुआ है. यही वजह है कि पेरिस हमले के तुरंत बाद आैर 2016 में अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के दौरान वहां की राजनीतिक हवा में इसका खौफ समाया हुआ था. अमेरिका में आज भी कहीं न कहीं इस बात का अंदेशा हमेशा जाहिर किया जाता है कि आर्इएसआर्इएस का हमला क्षेत्र विशेष से निकल कर वैश्विक स्तर पर बढ़ता जा रहा है, जो सही मायने में पूरी दुनिया के लिए खतरा है. यह बहुत ही चिंता का विषय है.

आर्इएसआर्इएस का कैसे हुआ उदय

अमेरिका समेत पश्चिम के देशों में आज भी इस बात की चर्चा की जाती है कि आखिर यहां पर इसलामिक कट्टरपंथ को उसके वास्तविक नाम से पुकारा जाना क्यों महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह कोई शब्दों का खेल भर नहीं है. यहां पर यह इसलाम के साथ जुड़नेवाली एक बहुत बड़ी समस्या है. बीती सदियों से ही यह वहावी स्टाइल में एक वैचारिक संघर्ष हैं. यदि हम सही मायने में इस लड़ाई की सच्चाई को जानने की कोशिश करेंगे, तो हमें अपने दोस्त और दुश्मनों का साफ पता चल जायेगा. जो कोई भी हमारे दुश्मन हैं, वे वहावी स्टाइल में इसलामी कट्टरपंथ के जरिये इसे पालित-पोषित कर रहे हैं. इसी शुरुआत एक दशक पहले सऊदी अरब से स्थानीय मौलवियों की ओर से की गयी. सऊदी अरब के लोग इरान के शिया समुदाय के साथ मिल कर सुन्नियों के खिलाफ आर्इएसआर्इएस का साथ लिया. अभी हाल के महीनों में खाड़ी देशों के साथ गंठजोड़ करके यमन में शिया मुसलमानों की सफाई पर ध्यान केंद्रित कर दिया, जो फिलहाल पूरी दुनिया को उड़ाने की धमकी दे रहा है. हालांकि आयोस की इस बहस में न तो सऊदी अरब चर्चा की गयी और न ही कट्टरपंथियों की. फिर भी यह जरूरी तब नहीं था, जब आइएसआइएस के खात्मे को लेकर विश्व समुदाय के साथ मिल कर अमेरिका काम नहीं कर रहा होता. डेमोक्रेटस के द्वारा अब भी एक सवाल अनुत्तरित है कि अमेरिका अथवा नाटो की रणनीतियों में बदलाव होने के बाद आइएसआइएस के खिलाफ साक्ष्य कैसे जुटाये जायेंगे.

वर्चस्व के लिए तबाही

आतंकी संगठन आर्इएसआर्इएस अमेरिका, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों में भी तबाही मचाना शुरू कर दिया है. इसका साफ मकसद अपना वर्चस्व स्थापित करना है. उसके इसी वर्चस्व के खिलाफ अमेरिका, रूस जैसे संपन्न देश आइएसआइएस का खात्मा करना चाहते तो हैं, मगर यह कैसे संभव हो सकता है, जब इस मुहिम में नेतृत्व करनेवाले का ही अभाव हो.

2015 में रूसी विमान को गिरा और पेरिस में हमला करके फैलाया दहशत

वर्ष 2015 के अक्तूबर महीने में रूस का एक यात्री विमान जब मिस्र के रास्ते बेरुत जा रहा था, तब उसे आत्मघाती दस्ते ने मार गिराया. ऐसा बीते 25 वर्षों के इतिहास में पहली बार हुआ, जब किसी रूसी यात्री विमान को रास्ते में मार गिराया गया. अभी रूसी विमान के नाम गिराये जाने का मामला थमा भी नहीं था कि नवंबर, 2015 में एक शुक्रवार की रात फ्रांस के पेरिस शहर में एक खूनी खेल खेला गया. फ्रांस में इस तरह का खूनी खेल द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार खेला गया. इस प्रकार खूनी खेल तीन देशों के बीच खेला गया. इस घटना में करीब चार सौ लोग मारे गये और सैकड़ों घायल हो गये. इस घटना की जिम्मेदारी एक आतंकवादी संगठन ने ली.

आर्इएसआर्इएस के हमलों से पश्चिमी देशों में एेसे मची अफरा-तफरी

इन घटनाओं से पूरा यूरोप थर्रा गया और आनन-फानन में सीमा पार से आतंकवादी कार्रवाई से निपटने के लिए यूरोपीय यूनियन की बैठक 13 नवंबर, 2015 को बुलायी गयी. इसी दौरान इन दोनों घटनाओं की जिम्मेदारी लेते हुए आतंकी संगठन आर्इएसआर्इएस के एक प्रवक्ता की ओर से बयान जारी किया गया कि यह उसका हमला था, मगर अभी तो यह शुरुआत भर है. इसी दौरान सेंट्रल इंटेलीजेंसी एजेंसी (सीआर्इए) के एक पूर्व प्रमुख ने खुलासा किया कि आर्इएसआर्इएस अमेरिका की ओर बढ़ रहा है. 18 नवंबर, 2015 को हमले की जांच के दौरान पेरिस की उपनगरी में छापा मारा गया, जिसमें दो लोगों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन इनमें से एक महिला सदस्य ने खुद को पुलिस की पकड़ में आने से पहले ही उड़ा लिया. संभवत: ये दोनों आतंकी पेरिस में दोबारा आतंकी वारदात को अंजाम देने की फिराक में थे. इस छापे के प्रत्यक्षदर्शी पेरिस के एक निवासी जिन्बाबे हैदरी ने बताया कि इस घटना से हम सभी डरे-सहमे हुए थे. हम सभी इन पागलों के कभी भी शिकार हो सकते थे.

आर्इएसआर्इएस के महत्वाकांक्षी कदम

आइएसआइएस के इतिहास में दुनिया भर में आतंक का पर्याय बनने की दिशा में ये दोनों घटनाएं उसके लिए दूसरा महत्वपूर्ण महत्वाकांक्षी कदम साबित हो सकते थे. इससे पहले इस दुर्दांत आतंकवादी संगठन ने इराक के फैजुल्लाह में अपना वर्चस्व स्थापित करने के दौरान कई बड़े हमले किये थे. वर्ष 2014 के आरंभिक महीनों में जब उसने इराक में तेल की लड़ाई के दौरान सौ से भी अधिक अमेरिकी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था और फैजुल्लाह के तेल कूपों पर उसने अपना वर्चस्व स्थापित करते हुए आर्इएसआर्इएस के शासन को स्थापित किया था, तब वह उसका पहला बड़ा महत्वपूर्ण महत्वाकांक्षी कदम था. 2015 के आखिरी महीनों में उसके द्वारा अंजाम दी गयी ये दोनों वारदात भी उसी दिशा में आगे बढ़ते रहने के लिए अहम कदम थे. यह एक बेहद ही घिनौनी सोच के साथ उठाये गये घातक कदम थे.

वर्ष 2014-15 में वर्चस्व स्थापित करने के लिए आर्इएसआर्इएस की आेर से की गयीं वारदातें

  • 19 अप्रैल, 2014 : आइएसआइएस के हवाई हमले में अमेरिकी पत्रकार जेम्स फोली की हत्या
  • 02 सितंबर, 2014 : सितंबर महीने में अमेरिकी पत्रकार स्टीवन सॉटलफ, ब्रिटिश विज्ञापन कार्यकर्ता डेविड हेंस, एलेन हेनिंग्स और फ्रांस के टूरिस्ट हर्व गॉर्डेल की गला रेत कर हत्या
  • 15 दिसंबर, 2014 : आइएसआइएस के विचारों से प्रभावित एक बंदूकधारी ने स्पेन के एक कैफे में 17 लोगों को बंधक बना लिया, जिसमें दो लोगों की हत्या कर दी गयी.
  • 07 जनवरी, 2015 : फ्रांस की एक मैग्जिन चार्ली आब्दो के दफ्तर और सुपर मार्केट में आतंकी हमले, जिसमें 17 लोगों की मौत
  • 27 जनवरी, 2015 : ट्रिपोली के एक लक्जरी होटल पर हमला, जिसमें 10 लोग मारे गये
  • 27 जनवरी, 2015 : जापानी पत्रकार केनजी गोटो की गला रेत कर हत्या
  • 18 मार्च, 2015 : ट्यूनिशिया के एक म्यूजियम पर हमला, जिसमें 22 लोगों की मौत
  • 20 मार्च, 2015 : यमन के एक मस्जिद पर आत्मघाती हमले, जिसमें 130 लोगों की मौत हो गयी
  • 19 अप्रैल, 2015 : लीबिया में एक चर्च पर हमला, 30 इथोपियन क्रिश्चियन की मौत
  • 22 मई, 2015 : सऊदी अरब की एक मस्जिद में आत्मघाती हमला, 21 नमाजियों की मौत, अन्य आत्मघाती हमले में तीन लोग मारे गये
  • 17 जून, 2015 : यमन में आइएसआइएस के आत्मघाती दस्ते के हमले में 30 से अधिक लोगों की मौत
  • 26 जून, 2015 : ट्यूनिशिया के बीच पर हमले में 38 से अधिक टूरिस्टों की मौत
  • 10 अक्तूबर, 2015 : टर्की के अधिकारियों ने एक रैली के दौरान 100 से अधिक लोगों के मारे जाने का आरोप
  • 31 अक्तूबर, 2015 : रूस के यात्री विमान पर मिस्र में हवाई हमला, सभी 224 विमान मारे गये
  • 12 नवंबर, 2015 : लेबनान से शॉपिंग सेंटर पर आत्मघाती हमले में 40 लोगों की मौत
  • 13 नवंबर, 2015 : पेरिस में सीरियल आतंकी हमले, 129 की मौत और 350 से अधिक घायल
  • 2 दिसंबर, 2015 : कैलिफोर्निया के सैन बर्नाडिनो में स्थानीय स्वास्थ्य कर्मचारियों पर हमला. इस हमले में तशफीन मलिक आैर उसके पति सैयद रिजवान फारुक पर 14 लोगों को गोलियों से भूनकर मारने आैर 21 लोगों के घायल करने का आरोप.
  • 8 जनवरी, 2016 : फिलाडेल्फिया में एक पुलिस अफसर हमला.
  • 12 जून, 2016 : अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित ओरलैंडो के एक नाइट क्लब में एक बंदूकधारी ने 49 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी. हालांकि, तीन घंटे बाद पुलिस ने 27 वर्षीय हमलावर ओमर मतीन को मारकर अफगानिस्तानी मूल के बंधक बनाये गये अमेरिकी नागरिकों को नाइटक्लब से मुक्त करा लिया. हालांकि, अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने बाद में कहा कि इस बात के पक्के सबूत नहीं हैं कि हमलावरों को किसी आतंकी संगठन से निर्देश मिल रहे थे.

पनपने के साथ ही आर्इएसआर्इएस के खात्मे में कहां रह गयी चूक

  1. अमेरिका : अगस्त 2014 में वाशिंगटन से आइएसआइएस के खिलाफ इराक और सितंबर में सीरिया पर हवाई हमले किये गये, लेकिन अमेरिका ने ट्रेन और फौज के जिरये सीरिया पर आक्रमण करने में पूरी तरह नाकाम रहा.
  2. फ्रांस : फ्रांस आइएसआइएस के खिलाफ छेड़े गये युद्ध में प्रमुख यूरोपीय देशों में से एक है. उसने सौ से अधिक हवाई हमले किये, लेकिन इसके पास सैन्य क्षमता काफी सीमित है, यहां तक कि पेरिस हमले के दौरान भी इसके पास माकूल सैन्य क्षमता नहीं थी.
  3. सीरिया : सीरिया के राष्ट्रपति बशर असद सीरियाई दुश्मनों के खात्मे की शर्त पर आइएसआइएस से लाभ उठाने में कामयाब रहे हैं. आइएसआइएस की इजाजत से उन्होंने अपनी ताकत बढ़ायी है और दुश्मनों से लड़ने के लिए उन्होंने खुद को तैयार भी किया है.
  4. इजरायल : इरान, हिज्बुल्लाह और हमास की ओर से धमकी दिये जाने के बाद इजरायल आइएसआइएस के खिलाफ हमलों को रोके हुए है.
  5. सऊदी अरब : सऊदी अरब आइएसआइएस की जन्मभूमि है और वह सीरिया में आइएसआइएस के खिलाफ सीमित हवाई हमला करता है. यहां के लोग ज्यादातर ध्यान इरान में संघर्ष करने और यमन के साथ गृह युद्ध की ओर लगाते हैं.
  6. इराक : मुख्य रूप से इराकी सैनिक आइएसआइएस के वर्चस्व में थे और इरानी सैनिकों ने उन्हें देश से सुन्नी मुसलमानों के खिलाफ संघर्ष में सहयोग किया था.
  7. यमन : यह देश पहले से ही दो तरफ से गृह युद्ध की आग में झुलस रहा है. ऊपर से आइएसआइएस ने शिया विरोधी होने के नाम पर हौथी विद्रोहियों के साथ मिल कर यहां की सरकार और पड़ोसी देश सऊदी अरब की शिया मसजिदों को ध्वस्त कर दिया. इस मसजिद से हौथी विद्राेहियों के खिलाफ लड़ाई की जा रही थी.
  8. इरान : यह शिया मुसलमान बहुल और आइएसआइएस द्वारा शियाओं के खिलाफ छेड़ी गयी लड़ाई में स्वधर्मी देश है. आइएसआइएस इराक के खिलाफ लड़ाई में इरान का सहयोग करता है, लेकिन इरान क्षेत्रीय और धार्मिक व सांप्रदायिक संघर्ष के कारण सऊदी अरब के साथ युद्ध करने में ज्यादा विश्वास रखता है.
  9. रूस : रूस 2015 में सीरियों के युद्ध में कूदा था, क्योंकि उसे अपने समर्थक बशर असद में अधिक रुचि है. रूस की ओर से अभी तक जितने भी हमले किये गये हैं, उनमें से ज्यादातर हमले उन समूहों पर किये गये हैं, सीरिया या फिर बशर असद के दुश्मन हैं, न कि यह हमले आइएसआइएस पर किये गये. ऐसा भी हो सकता है कि शायद पिछले साल आइएसआइएस द्वारा उसके विमान पर हमला किये जाने के बाद रणनीति में बदलाव भी करे.
  10. कुर्द : तुर्की, सीरिया, इराक और इरान के मिश्रित भू-भाग पर रहनेवाले कुर्द आइएसआइएस के साथ जमीनी स्तर पर टक्कर लेने में समर्थ हैं. अभी हाल ही में उन्होंने इराकी शहर सिंजर को अपने कब्जे में ले लिया, लेकिन इनकी रुचि कुर्दिस्तान के सीमांकन के प्रति ज्यादा है. इसलिए वे इस स्तर पर आइएसआइएस से मात खा सकते हैं.

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