पटना : भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन से उपजा राजनीतिक आंदोलन और उससे जुड़े व्यक्तित्व धूमिल पड़ते जा रहे हैं. अन्ना राजनीतिक जानकारों के मुताबिक अन्ना आंदोलन के तमाम लक्ष्य मसलन लोकपाल और भ्रष्टाचार के खिलाफ रचनात्मक आंदोलन शिथिल पड़ गये हैं. हालात ये हैं कि सरकारी और सियासी भ्रष्टाचार से संघर्ष के नाम पर सत्ता के गलियारों में दस्तक देने वाले लोग अब जनता के बीच उतने लोकप्रिय नहीं रहे. वे भी सत्ता की दौड़ के सियासी व्यक्ति ही नजर आ रहे हैं. हालात ये हैं कि महज वैचारिक विरोध से आगे आये अन्ना आंदोलन के नेता रचनात्मक कार्यक्रम से दूर हो गये. परिणाम आंदोलन निष्प्रभावी साबित हो गया है.
राजनीतिक पार्टियां कर रहीं खानापूर्ति
अलबत्ता इसमें कोई शक नहीं कि जात-पात, ऊंच-नीच जैसी रूढ़िवादी और पूर्वाग्रहों से मुक्त जब भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में अन्ना ने आंदोलन का बिगुल फूंका, तो देश के कोने-कोने से हर वर्ग के लोगों ने आंदोलन को सफल बनाने का प्रयास किया था. दरअसल अब लोगों ने यह मान लिया है कि भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर बस राजनीतिक पार्टियां खानापूर्ती कर रही हैं. इस मुद्दे पर प्रभात खबर की आेर से कुछ राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों से बात की गयी, तो उन्होंने इसे मात्र एक आंदोलन कहा. इसे जनता और जन भागीदारी से दूर रखने की बात कही.
वैकल्पिक कार्य करते रहना था जरूरी
आंदोलन को सफल बनाने के लिए उसके साथ फॉलोअर्स भी जरूरी हैं. तभी उसे सही दिशा दी जा सकती है. अन्ना जी का आंदोलन सही और सफल भी रहा. पर उनके साथ जनभागीदारी नहीं रही. गांधीजी के अांदोलन को सफलता उनके वैकल्पिक कार्यों से मिली. उन्होंने किसानों के हित में आंदोलन किये, तो वहीं, बीच-बीच में महिलाओं के शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करते रहे. किसानों के उत्थान के साथ-साथ महिलाओं के उत्थान को लेकर किये गये कार्य ने उन्हें आंदोलन में सफलता दिलायी. अन्ना के अांदोलन के साथ कुछ ऐसी छवि के लोग सामने तो आये, पर बाद में उनके पीछे होते ही आंदोलन एक तेज आंधी की तरह सब कुछ सफाया कर चला गया.
– डॉ राकेश कुमार, राजनीति शास्त्र के विशेषज्ञ
अन्ना का हुआ राजनीतिक इस्तेमाल
अन्ना का आंदोलन जनता से जुड़ नहीं पाया था. अन्ना राजनीति के हथकंडे के रूप में अपनाये गये. अपोजीशन पार्टी के लोगों ने उन्हें जिस भ्रष्टाचार को मुद्दा बना आंदोलन को सफल बनाया. उसके बाद खुद सत्ता में आने के बाद उसे तूल नहीं दिया. आंदोलन को सफल बनाने के लिए शुरुआत में राजनीतिक पार्टियों की साजिश तो सफल हो गयी और जनता भी उसे भली भांति जान गयी. यही कारण है कि अब जनता भी उनके आंदोलनों को महत्व नहीं दे रही है. आंदोलन कभी भी राजनीतिक हथकंडे के रूप में नहीं, बल्कि जनता के हित में किया जाये, तभी सफल हो पाता है.
– अनिल सुलभ, सहित्यकार
बोलने-सुनने से नहीं खत्म होगा भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार किसी के बोलने और सुनने से समाप्त नहीं होगा. जनता इस बात को भली भांति जान चुकी है. जब तक पूंजी और पूंजीपतियों का राज रहेगा. तब तक भ्रष्टाचार रहेगा. ऐसे में आंदोलन की प्रासंगिकता तो तब बनी रहती, जब पैतृक संपत्तियों में उत्तराधिकार की व्यवस्था को समाप्त करने के लिए आवाज उठायी जाती. देश के गरीब आदमी के चुनाव लड़ने के लिए आवाज उठायी जाती तो यह निश्चित सफल होता. पर केवल भ्रष्टाचार को मिटाने की बात कह देश के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव लाने की बातें बेमानी ही साबित होंगी.
– अरुण कमल, साहित्यकार
लीडरशिप सही तो आंदोलन भी सही
लीडरशिप सही होगा, तो आंदोलन भी सही होगा. अन्ना आंदोलन के प्रणेता जरूर रहें, पर लीडरशिप दूसरे की रही. एेसे में जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आंदोलन किया गया, उसे लोग भूल भी गये. क्योंकि अपोजिशन पार्टियों के बीच भ्रष्टाचार एक ऐसे मुद्दे के रूप में सामने आया, जो सत्ता परिवर्तन का सूचक रहा. पर यदि यही आंदोलन लोगों की जनभागीदारी से जुड़ा होता, तो सफलता निश्चित मिलती. इसे पार्टी पॉलिटिक्स से अलग रखा जाता, तो भ्रष्टाचार के खिलाफ कामयाबी मिलती.
– डॉ शशि शर्मा, प्राचार्य मगध महिला कॉलेज