नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका पर जवाबी हलफनामे में एक वकील ने कहा है कि निर्वाचन आयोग( ईसी) और विधि आयोग के प्रयासों के बावजूद केंद्र सरकार राजनीतिक दलों के पंजीकरण और गैर पंजीकरण के संबंध में कानून सख्त बनाने में नाकाम रहा है. याचिका में किसी अभियुक्त द्वारा अपनी अयोग्यता के दौरान राजनीतिक दलों के गठन किये जाने और पद संभालने पर रोक लगाने की मांग की गयी है.
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केंद्र की ओर से 21 मार्च को दायर हलफनामे के जवाब में वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने जवाबी हलफनामे में यह कहा है. केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि राजनीतिक दल के पदाधिकारी की नियुक्ति स्वायत्त मामला है और चुनाव आयोग इस वजह से किसी पार्टी को पंजीकरण से रोक नहीं सकता कि उसके किसी पदाधिकारी को चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिया गया है. उपाध्याय ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा है कि भ्रष्टाचार चार दशकों तक चिंता का कारण रहा है और सरकार चुनाव आयोग की ओर से1998 से2016 के बीच विधि मंत्री और प्रधानमंत्री को उसके पत्र में रखे गए प्रस्ताव पर कार्रवाई करने में नाकाम रही.
उन्होंने कहा है कि हलफनामे में कहा गया है कि सरकार राजनीतिक दलों के पंजीकरण और गैर पंजीकरण के संबंध में मौजूदा प्रावधानों को मजबूत करने की दिशा में विधि मंत्री को संबोधित मुख्य चुनाव आयुक्त( सीईसी) के 15 जुलाई, 1998 की तारीख वाले पत्र में दिये गये प्रस्तावों पर कार्रवाई करने में नाकाम रही. हलफनामे में कहा गया कि पिछले चार दशकों से चिंता का कारण रहे भ्रष्टाचार/ अपराधीकरण से ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी वार्षिक अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में भारत का स्थान गिरता चला गया.
हलफनामे में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि निर्वाचन और राजनीतिक दलों संबंधी सुधार के मुद्दे पर सरकार को सलाह देने के लिए विभिन्न उच्चाधिकार प्राप्त समितियों और आयोगों की ओर से कई सिफारिशों की गयीं. याचिका में संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए बने राष्ट्रीय आयोग (एनसीआरडब्ल्यूसी) द्वारा प्रस्तावित निर्वाचन व्यवस्था को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने और पार्टी के भीतर लोकतंत्र के लिए दिशा- निर्देश तय करने की दिशा में चुनाव आयोग को निर्देश देने की भी मांग की गयी है.