नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने फेकन्यूज/फर्जी खबरों को लेकर सोमवार को जारी की गयी अपनी विज्ञप्ति को वापस ले लिया.
फर्जी खबरों को लेकर मंत्रालय के इस दिशा निर्देश की पत्रकारों एवं विपक्षी दलों ने व्यापक आलोचना की और इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर आघात बताया. मंत्रालय की ओर से जारी इस विज्ञप्ति को लेकर सरकार की चौतरफा आलोचनाओं के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार सुबह ही इन दिशा-निर्देशों को वापस लेने को कहा.
सरकार के यूटर्न पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया और नरेंद्र मोदी पर चुटली लिया. उन्होंने कहा, फर्जी खबर संबंधी दिशानिर्देश को लेकर बढ़ते क्रोध को भांपते हुए प्रधानमंत्री ने अपने स्वयं के आदेश पर पलटी मार ली. स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि नियंत्रण हट रहा है और घबराहट बढ़ रही है. उन्होंने इस ट्वीट को ‘बस एक और साल’ हैशटैग के साथ किया है.
Sensing mounting anger on the “fake news” notification, the PM orders a U-Turn on his own order.
One can clearly see a loss of control and panic setting in now. #BasEkAurSaal
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) April 3, 2018
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों ने पुष्टि करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय से उन्हें निर्देश प्राप्त हुए हैं और इसी आधार पर उन्होंने विज्ञप्ति वापस ले ली है। संक्षिप्त बयान में मंत्रालय ने कहा है, फेकन्यूज को नियमित करने के संबंध में दो अप्रैल, 2018 को पत्र सूचना कार्यालय से पत्रकारों के मान्यता पत्र के लिए संशोधित दिशा-निर्देश शीर्षक से जारी प्रेस विज्ञप्ति वापस ली जाती है.
* मोदी ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को विज्ञप्ति वापस लेने का दिया था निर्देश
सुबह प्रधानमंत्री कार्यालय ने मंत्रालय को विज्ञप्ति वापस लेने का निर्देश देते हुए कहा था कि फेकन्यूज से निपटने की जिम्मेदारी पीसीआई और एनबीए जैसी संस्थाओं की होनी चाहिए. प्रधानमंत्री कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, प्रधानमंत्री ने निर्देश दिया है कि फर्जी खबरों से जुड़ी प्रेस विज्ञप्ति को वापस लिया जाए और ऐसे मामलों से निपटने के विषय को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया पर छोड़ दिया जाए. अधिकारी ने बताया कि प्रधानमंत्री का यह भी मत है कि सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.
* सूचना प्रसारण मंत्रालय की गाइडलाइंस क्या थीं?
फर्जी खबरों पर अंकुश लगाने के उपाय के तहत सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने सोमवार को जारी दिशानिर्देशों में कहा था कि अगर कोई पत्रकार फर्जी खबरें करता हुआ या इनका दुष्प्रचार करते हुए पाया जाता है तो उसकी मान्यता स्थायी रूप से रद्द की जा सकती है.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने जारी विज्ञप्ति में कहा था कि पत्रकारों की मान्यता के लिये संशोधित दिशानिर्देशों के मुताबिक अगर फर्जी खबर के प्रकाशन या प्रसारण की पुष्टि होती है तो पहली बार ऐसा करते पाये जाने पर पत्रकार की मान्यता छह महीने के लिये निलंबित की जायेगी और दूसरी बार ऐसा करते पाये जाने पर उसकी मान्यता एक साल के लिये निलंबित की जायेगी.
इसके अनुसार, तीसरी बार उल्लंघन करते पाये जाने पर पत्रकार (महिला/पुरूष) की मान्यता स्थायी रूप से रद्द कर दी जायेगी. मंत्रालय ने कहा था कि अगर फर्जी खबर के मामले प्रिंट मीडिया से संबद्ध हैं तो इसकी कोई भी शिकायत भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) को भेजी जायेगी और अगर यह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से संबद्ध पाया जाता है तो शिकायत न्यूज ब्रॉडकास्टर एसोसिएशन (एनबीए) को भेजी जायेगी ताकि यह निर्धारित हो सके कि खबर फर्जी है या नहीं. मंत्रालय ने कहा था कि इन एजेंसियों को 15 दिन के अंदर खबर के फर्जी होने का निर्धारण करना होगा.
* कांग्रेस सहित विपक्षी दलों का मोदी सरकार पर हमला
कांग्रेस ने इसकी आलोचना करते हुए कहा कि फासीवाद चरम पर पहुंच गया है क्योंकि ‘भ्रामक नियमों’ के माध्यम से स्वतंत्र आवाज को दबाने का प्रयास किया जा रहा है.
आम आदमी पार्टी और माकपा ने इसकी तुलना आपातकाल से की. प्रेस क्लब आफ इंडिया के अध्यक्ष गौतम लाहिरी ने कहा कि सरकार के पास प्रेस पर नियंत्रण करने का अधिकार नहीं है.
फर्जी खबरों को लेकर मीडिया भी चिंतित है लेकिन ऐसी शिकायतों से निपटने का उचित मंच प्रेस परिषद है. वरिष्ठ पत्रकार एच के दुआ ने कहा कि प्रेस विज्ञप्ति पूरी तरह से फर्जी है और यह खतरनाक बात है. इसका अर्थ यह है कि सरकार प्रेस को नियंत्रण में लेना चाहती है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने सरकार के इस कदम पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या यह संवाददाताओं को ऐसी खबरों की रिपोर्टिंग करने से रोकना है जो सरकारी प्रतिष्ठानों के लिये असहज हो.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर लगाम लगाने का निरंकुश कदम करार दिया और कहा कि इससे स्पष्ट होता है कि सरकार राह भटक चुकी है. माकपा नेता सीताराम येचूरी ने 1975 से 1977 के बीच 21 महीने के दौरान लगाये गए आपातकाल के दिनों को याद करते हुए कहा कि उनकी पार्टी इसकी निंदा करता है.