भोपाल : नर्मदा सेवा यात्रा में विशेष योगदान देने वाले 5 संतों को राज्यमंत्री का दर्जा देने पर मध्यप्रदेश में राजनीति शुरू हो गयी है. इस संबंध में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किसी सवाल का जवाब देने से बच रहे हैं, तो कांग्रेस ने सरकार पर हमला शुरू कर दिया है. मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस सरकार के इस फैसले को आगामी विधानसभा चुनावों से जोड़ रही है. सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा जा रहा कि शिवराज सिंह चौहान ने अपने खिलाफ आंदोलित हो रहे संत समाज को शांत करने के लिए यह फैसला किया है.
मध्यप्रदेश सरकार ने जिन 5 साधु-संतों को राज्यमंत्री का दर्जा दिया है, उनके नाम नर्मदानंद महाराज, हरिहरनंद महाराज, कंप्यूटर बाबा, भय्यू महाराज और पंडित योगेंद्र महंत शामिल हैं. सरकार ने नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए एक कमेटी बनायी है, जिसमें शामिल इन पांचों संतों को राज्यमंत्री का दर्जा दिया है. इस संबंध में पंडित योगेंद्र महंत ने एक न्यूज चैनल से कहा कि उन्होंने कहा कि सरकार ने समाज में जन-जागृति फैलाने के लिए साधु-संतों को कमेटी का सदस्य बनाया है.
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उन्होंने बताया कि सभी संतों को जिम्मेदारी दीगयी है कि नर्मदा नदी के लिए विशेष रूप से काम करें, जिससे यहां के लोग जागरूक हों. चुनाव से 6 महीने पहले मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार के इस कदम पर पंडित योगेंद्र ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार पहले भी नदियों के संरक्षण के लिए काम करती रही है. संत समाज को इससे जोड़कर विशेष रूप से काम किया जा सकता है.समाज में इसका अच्छा संदेश जायेगा.
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि इन्हीं बाबाओं के नेतृत्व में 28 मार्च को इंदौर में संत समाज की बैठक हुई थी. इसमें फैसला लिया गया था कि प्रदेश के 45 जिलों में उन 6.5 करोड़ पौधों की गिनती करायी जायेगी, जिन्हें पिछले साल 2 जुलाई को राज्य सरकार द्वारा नर्मदा किनारे रोपित करने का दावा किया गया था.
संतों ने इस सरकारी दावे को ‘महाघोटाला’ करार दिया था और 1 अप्रैल से 15 मई तक ‘नर्मदा घोटाला रथ यात्रा’ निकालने का एलान किया था. तय हुआ कि इसका नेतृत्व कंप्यूटर बाबा करेंगेऔरआयोजक पंडित योगेंद्र महंत होंगे. महंत ने तब भोपाल सचिवालय पर संतों के धरना का भी एलान किया था. आंदोलित संत समाज को समझाने के लिए मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों उनके साथ बैठक की. बैठक के बाद संतो ने आंदोलन का फैसला वापस ले लिया.
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ज्ञात हो कि समिति में शामिल बाबाओं में भय्यू जी महाराज की पहचान राजनीतिक संत के तौर पर होती है. उनका असली नाम उदय सिंह देशमुख है. वह प्रदेश के शाजापुर जिले के मूल निवासी हैं. इंदौर में उनका एक भव्य आश्रम है. उनके पहले ससुर महाराष्ट्र के बड़े कांग्रेस नेता हैं. एक जमाने में इंदौर का उनका आश्रम नेताओं का सबसे ‘सिद्ध’ स्थान माना जाता था. वह महाराष्ट्र में कई सामाजिक संगठन चला रहे हैं. पिछले दिनों चर्चा मेंआये थे, जब उन्होंने अपनी जान को खतरा होने की बात कही थी.