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SC ने कहा- महाकालेश्वर मंदिर की पूजा पद्धति में दखल नहीं, हमारा सरोकार लिंगम के संरक्षण तक सीमित

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय नेगुरुवारको कहा कि यह निर्णय करना अदालत का काम नहीं है कि मंदिर में किस तरह से पूजा की जायेगी. न्यायालय ने इसके साथ ही जोर देकर कहा कि उसका सरोकार मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित प्राचीन महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग मंदिर में लिंगम के संरक्षण के बारे में ही है. […]

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय नेगुरुवारको कहा कि यह निर्णय करना अदालत का काम नहीं है कि मंदिर में किस तरह से पूजा की जायेगी. न्यायालय ने इसके साथ ही जोर देकर कहा कि उसका सरोकार मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित प्राचीन महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग मंदिर में लिंगम के संरक्षण के बारे में ही है.

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति उदय यू ललित की पीठ ने कहा कि वह इन मुद्दों पर गौर नहीं करेगा कि किस धार्मिक पद्धति का अनुसरण करना चाहिए और वहां किस तरह से पूजा-अर्चना की जानी चाहिए. इस बारे में चर्चा करना और निर्णय लेना मंदिर प्रबंधन और अन्य संबंधित पक्षकारों का काम है. पीठ ने कहा, ‘हमारा सरोकार सिर्फ लिंगम के बारे में है.’ इसके साथ ही पीठ ने कहा कि शिव के प्रतीक ज्योर्तिलिंगम की खराब हो रही स्थिति के संरक्षण के मुद्दे पर बाद में आदेश सुनाया जायेगा. शीर्ष अदालत इस लिंगम के संरक्षण के मुद्दे पर विचार कर रहा है.

न्यायालय ने इससे पहले मंदिर में लगाये गये कुछ सूचनापट्टों पर कड़ी आपत्ति की थी जिनमें कहा गया था कि उच्चतम न्यायलाय के निर्देशों पर पूजा के नये नियम बनाये गये हैं. शीर्ष अदालत ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा था कि न्यायालय ने पूजा के नये तरीके लागू करने के लिये कभी कोई निर्देश नहीं दिये और ये वास्तव में न्यायालय द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति के साथ परामर्श के बाद महाकालेश्वर मंदिर प्रबंधन समिति ने पेश किये थे. नये नियमों के अनुसार मंदिर में जलाभिषेक के लिए एक निश्चित मात्रा में ही छोटे पात्र में जल ले जाने की अनुमति है. शीर्ष अदालत ने पिछले साल 25 अगस्त को महाकालेश्वर मंदिर का सर्वेक्षण और विश्लेषण करके रिपोर्ट तैयार करने के लिये एक विशेषज्ञ समिति गठित की थी. इस रिपोर्ट में समिति को लिंगम के क्षरण की गति और इसकी रोकथाम के उपाय बताने थे.

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