अयोध्या मामले को फौरन संविधान पीठ के पास भेजने के लिए सुप्रीम कोर्ट सहमत नहीं
नयी दिल्ली : अयोध्या भूमि विवाद को फौरन ही एक बड़ी पीठ के पास भेजने की मांग करनेवाली एक याचिका से उच्चतम न्यायालय शुक्रवार को सहमत नहीं हुआ. दरअसल, अयोध्या विवाद के मूल वादकार ने एक याचिका में कहा था कि यह मुद्दा मुसलमानों में प्रचलित बहुविवाह प्रथा से ज्यादा महत्वपूर्ण है, जिसके लिए एक […]
नयी दिल्ली : अयोध्या भूमि विवाद को फौरन ही एक बड़ी पीठ के पास भेजने की मांग करनेवाली एक याचिका से उच्चतम न्यायालय शुक्रवार को सहमत नहीं हुआ.
दरअसल, अयोध्या विवाद के मूल वादकार ने एक याचिका में कहा था कि यह मुद्दा मुसलमानों में प्रचलित बहुविवाह प्रथा से ज्यादा महत्वपूर्ण है, जिसके लिए एक संविधान पीठ बनायी गयी है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षतावाली एक विशेष पीठ ने एम सिद्दीक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन को यह स्पष्ट कर दिया कि वह सभी पक्षों को सुनने के बाद ही इस विषय (अयोध्या भूमि विवाद) को संविधान पीठ के पास भेजने के बारे में कोई फैसला करेगी. सिद्दीक बाबरी मस्जिद राम जन्म भूमि विवाद में एक मूल वादियों में से एक हैं. हालांकि, उनकी मृत्यु हो चुकी है. पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एसए नजीर भी शामिल हैं.
धवन ने पीठ से कहा, ‘आपने (सीजेआई) बहुविवाह प्रथा को खत्म करने के लिए याचिकाओं को फौरन ही संविधान पीठ के पास भेज दिया, लेकिन आप बाबरी मस्जिद मामले को संविधान पीठ के पास भेजने को अनिच्छुक हैं. क्या बहुविवाह प्रथा मस्जिद में नमाज अदा करने के मुसलमानों के अधिकार से ज्यादा महत्वपूर्ण है.’ वहीं, हिंदू संगठन की ओर से पेश हुए पूर्व अटाॅर्नी जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरन ने याचिका का विरोध किया. उन्होंने कहा कि यह फैसला करना शीर्ष न्यायालय का विशेषाधिकार है कि मामले की सुनवाई कौन सी पीठ करेगी.
इस संवेदनशील विषय की सुनवाई दोपहर में धवन और अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल (एएसजी) मनिंदर सिंह तथा तुषार मेहता के बीच तीखी बहस के साथ शुरू हुई, जब धवन ने जोर से कहा, ‘बैठ जाइये, मि मनिंदर सिंह.’ इस पर, एएसजी ने कहा कि ‘तमीज से पेश आइये, मि धवन.’ यह विशेष पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 30 सितंबर, 2010 के बहुमत के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई कर रही है. इससे पहले, न्यायालय ने श्याम बेनेगल और तीस्ता सीतलवाड़ जैसे लोगों की इस मामले में हस्तक्षेप करने की उम्मीदों पर यह कहते हुए पानी फेर दिया था कि सबसे पहले मूल विवाद के पक्षकारों को ही बहस करने की अनुमति दी जायेगी. इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने बहुमत के फैसले में विवादास्पद भूमि का सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बंटवारा करने का आदेश दिया था.