नयी दिल्ली : उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने सोमवार को कहा कि राजनीतिक नेताओं और देश के मीडिया को सुरक्षा बलों का मनोबल नहीं गिराना चाहिए और कोई भी प्रतिकूल बात कहने से पहले उनके कामकाज के मुश्किल हालात को देखना चाहिए. नायडू ने यहां सीआरपीएफ के एक समारोह में कहा, ‘असहमति से सहमत हुआ जा सकता है लेकिन देश में अलगाव को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जा सकता. उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि मानवाधिकार मानवों के लिए होते हैं, दानवों के लिए नहीं.
नायडू ने कहा, ‘हमारे बलों के बारे में दिल्ली से लेख लिखने वाले लोगों, उनके बारे में नकारात्मक बोलने वाले नेताओं को उन प्रतिकूल हालात और माहौल को समझाना चाहिए जिसमें ये सुरक्षा बल काम कर रहे हैं.’ उपराष्ट्रपति ने कहा कि कुछ कहने या करने से पहले इन मुश्किल हालात को ध्यान में रखना होगा. उन्होंने कहा, ‘कुछ लोगों के लिए यह फैशन बन गया है कि हालात की हकीकत जाने बिना वे बलों की निंदा करते हैं.’
नायडू ने कहा कि देश में ऐसा हो रहा है कि कई बार कुछ लोगों की सेना या बीएसएफ या सीआरपीएफ जैसे बलों की निंदा करने की आदत होती है. उन्होंने कहा, ‘अगर कुछ गलत होता है तो उनके पास उसे सुधारने का तंत्र है. हमें उनका मनोबल नहीं गिराना चाहिए.’ उपराष्ट्रपति ने कहा कि नेता चाहे किसी पार्टी के हों, उन्हें देश, उसकी अखंडता और एकता के पक्ष में बोलना चाहिए और उन्हें बलों के लिए बोलना चाहिए.
उन्होंने कहा कि मीडिया की देश के हितों के संरक्षण की पवित्र जिम्मेदारी है. आपको असहमति जताने का पूरा अधिकार है लेकिन देश की एकता सर्वोपरि है. उन्होंने जम्मू कश्मीर में प्रतिकूल हालात के लिए पड़ोसी देश पाकिस्तान पर निशाना साधा और कहा कि वह भारत में विनाश पैदा करने के लिए आतंकवादियों की मदद कर रहा है, उन्हें पैसा दे रहा है.
नायडू ने कहा, ‘मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है और मुझे पता है कि मैं भारत के उपराष्ट्रपति पद के संवैधानिक पद पर बैठा हूं, लेकिन मैं इस देश का नागरिक भी हूं. बल इस देश की एकता और अखंडता के लिए लड़ रहे हैं और उन्हें हम सभी के नैतिक समर्थन की जरूरत है.’ उपराष्ट्रपति ने माओवादियों से भी इस बारे में कुछ आत्मनिरीक्षण करने का आग्रह किया कि इतने साल के सशस्त्र आंदोलन के बाद उन्होंने क्या हासिल कर लिया.
नायडू ने कहा, ‘वे बेगुनाह लोगों को मार रहे हैं और विकास को बाधित कर रहे हैं. जो लोग हथियार उठाकर बेगुनाह लोगों की जान लेते हैं, उनके साथ किसी को सहानुभूति नहीं रखनी चाहिए.’ उन्होंने कहा कि जो लोग संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू की तरफदारी करते हैं, उनके साथ किसी तरह की सहानुभूति की जरूरत नहीं है. ऐसे लोग संविधान का उल्लंघन करते हैं और संविधान की शरण लेते हुए कहते हैं कि यह कहना उनका अधिकार है.