बड़ोदरा : दलितों के सबसे बड़े मसीहा भीम राव आंबेडकर की 127वीं जयंती पर दलित समुदाय ने एक नया बखेड़ा खरा कर दिया. केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी एवं भाजपा के अन्य नेताओं ने आंबेडकर की जिस प्रतिमा पर माल्यार्पणकरउन्हें श्रद्धांजलि दी, दलित समुदाय के कार्यकर्ताओं ने भाजपा नेताओं के जाने के तुरंत बाद ‘साफ’ किया. एक दलित नेता ने दावा किया कि उनकी मौजूदगी से वहां का माहौल दूषित हो गया था.
बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कर्मचारी संघ के महासचिव ठाकोर सोलंकी ने दावा किया कि आंबेडकर को श्रद्धांजलि देने के लिए दलित कार्यकर्ता भाजपा नेताओं से पहले वहां पहुंचे थे. दलित समुदाय के कार्यकर्ताओं ने रेस कोर्स स्थित जीइबी सर्किल इलाके में महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी और पार्टी के अन्य नेताओं के खिलाफ नारेबाजी की.
मेनका शहर में आयोजित कई कार्यक्रमों में शामिल होने यहां आयी थीं. भाजपा सांसद रंजनबेन भट्ट, शहर के महापौर भरत डांगर, भाजपा विधायक योगेश पटेल एवं अन्य के साथ मेनका आंबेडकर की प्रतिमा पर पहुंचीं. सोलंकी के नेतृत्व में दलित समुदाय के कार्यकर्ताओं ने उनके खिलाफ नारे लगाने शुरू कर दिये. इस पर कार्यकर्ताओं एवं पुलिसकर्मियों के बीच विवाद हुआ. हालांकि, इस दौरान कोई अप्रिय घटना नहीं हुई.
मेनका गांधी एवं अन्य नेताओं ने सुबह करीब नौ बजे प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की और कार्यक्रम स्थल से रवाना हो गये. इसके बाद दलित कार्यकर्ताओं ने यह कहकर प्रतिमा को दूध एवं पानी से धोकर साफ किया कि भाजपा नेताओं की मौजूदगी ने माहौल को ‘दूषित’ कर दिया. सोलंकी ने कहा, ‘हमने पुलिस से कहा कि भाजपा नेताओं के आने से पहले हमलोग यहां पहुंचे हैं. इसलिए प्रतिमा पर पहले श्रद्धांजलि अर्पित करने का अधिकार हमारा है. हालांकि, पुलिस ने प्रोटोकॉल का हवाला देकर हमें प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने से रोका और कहा कि पहले पुष्पांजिल अर्पित करने का अधिकार महापौर का है.’
उन्होंने कहा, ‘मेनका गांधी एवं अन्य भाजपा नेताओं के पहुंचने के बाद जीइबी सर्किल इलाके में प्रतिमा एवं माहौल दूषित हो गया. इसलिए भाजपा नेताओं के वहां से जाने के बाद हमने आंबेडकर की प्रतिमा को दूध एवं पानी से धोया. मेनका गांधी के पहुंचने से पहले भाजपा की प्रांतीय इकाई के अजा/अजजा प्रकोष्ठ के महासचिव जीवराज चौहान का भी दलित कार्यकर्ताओं ने घेराव किया. कार्यकर्ताओं ने चौहान के खिलाफ नारेबाजी की, जिसके चलते उन्हें वहां से जाना पड़ा.