ASG सत्यपाल ने कहा, CJI के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव राजनीति से प्रेरित, जानें क्या है पूरी प्रक्रिया
नयी दिल्ली : चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्षी दलों द्वारा महाभियोग लाने के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल सत्य पाल जैन ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण और राजनीति से प्रेरित है. यह नोटिस न्यायपालिका को डराने का प्रयास है और यह बताने की कोशिश है कि अगर फैसला हमारे […]
नयी दिल्ली : चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्षी दलों द्वारा महाभियोग लाने के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल सत्य पाल जैन ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण और राजनीति से प्रेरित है. यह नोटिस न्यायपालिका को डराने का प्रयास है और यह बताने की कोशिश है कि अगर फैसला हमारे अनुकूल नहीं हुआ तो हम न्यायाधीशों की चरित्र हत्या करेंगे.
‘ सुप्रीम कोर्ट के किसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जायेगा जब तक साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर उसे हटाये जाने के लिए संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो – तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित समावेदन (सहमति), राष्ट्रपति के समक्ष उसी सत्र में रखे जाने पर राष्ट्रपति ने आदेश नहीं दे दिया है. ‘ सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के किसी न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए प्रस्ताव लोकसभा के कम से कम 100 सदस्यों या राज्यसभा के 50 सदस्यों द्वारा पेश किया जाना चाहिए. अगर प्रस्ताव को लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति स्वीकार कर लेते हैं तो वे एक जांच समिति का गठन करते हैं..इस जांच समिति में तीन सदस्य होते हैं – सुप्रीम कोर्ट का कोई न्यायाधीश , किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और कोई जाने – माने विधिवेत्ता इसके सदस्य होते हैं. समिति आरोप तय करती है और संबंधित न्यायाधीश को लिखित में जवाब देने को कहा जाता है. न्यायाधीश को गवाहों का परीक्षण करने का भी अधिकार होता है. जांच के बाद समिति इस बात पर फैसला करती है कि आरोप सही हैं या नहीं और तब वह आखिरकार अपनी रिपोर्ट सौंपती है. अगर जांच समिति न्यायाधीश को दोषी नहीं पाती है तो आगे कोई कार्रवाई नहीं की जाती है.
अगर वे उसे दोषी पाते हैं तो संसद के जिस सदन ने प्रस्ताव पेश किया था वह प्रस्ताव को आगे बढ़ाने पर विचार कर सकती है. प्रस्ताव पर तब चर्चा होती है और न्यायाधीश या उनके प्रतिनिधि को अपना पक्ष रखने का अधिकार होता है. उसके बाद प्रस्ताव पर मतदान होता है। अगर प्रस्ताव को सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत का तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो – तिहाई बहुमत का समर्थन मिल जाता है तो उसे पारित मान लिया जाता है. यह प्रक्रिया फिर दूसरे सदन में भी दोहराई जाती है. उसके बाद सदन राष्ट्रपति को समावेदन (सहमति) भेजकर उनसे न्यायाधीश को पद से हटाने को कहता है.