उर्दू साहित्य पर भी है रवींद्रनाथ ठाकुर का असर
नयी दिल्ली : विख्यात साहित्यकार रवींद्रनाथ ठाकुर की रचनाओं का उर्दू साहित्य पर अमिट प्रभाव है और उनकी कृतियां वर्षों से इस भाषा लेखकों के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं. द्विभाषी आलोचक शफी किदवई ने उर्दू लिटरेचर एंड जर्नलिज्म: क्रिटिकल पर्सपेटिक्वज नाम की एक पुस्तक में यह बात की गयी है. इससे उर्दू साहित्य का […]
नयी दिल्ली : विख्यात साहित्यकार रवींद्रनाथ ठाकुर की रचनाओं का उर्दू साहित्य पर अमिट प्रभाव है और उनकी कृतियां वर्षों से इस भाषा लेखकों के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं. द्विभाषी आलोचक शफी किदवई ने उर्दू लिटरेचर एंड जर्नलिज्म: क्रिटिकल पर्सपेटिक्वज नाम की एक पुस्तक में यह बात की गयी है.
इससे उर्दू साहित्य का नया पहलू सामने आता है. इसमें प्रकाशित कुछ लेख पहले प्रकाशित हो चुके हैं जबकि कुछ संगोष्ठियों और सम्मेलनों में दिए गए व्याख्यान भी शामिल हैं. किदवई का संकलन इस पारंपरिक धारणा को तोड़ता हैं कि उर्दू साहित्य भावनाओं से प्रभावित रहता है.
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में किदवई ने विभिन्न विचारों को शामिल किया है और इससे साहित्य की विभिन्न शैलियां प्रतिबिंबित होती हैं जिससे समकालीन उर्दू साहित्य की बदलती तस्वीर सामने आती है.
उर्दू साहित्य के टैगोर के प्रभावित लेखों में से एक लेख में लेखक कहता है मनुष्य की मुक्ति की अवधारणा और मानव चिंताओं की बेहिचक प्रतिबद्धता ठाकुर की कविताओं की विशेषता है लेकिन कवि उन्हें ऐसा साहित्यकार समझते हैं जिन्होंने बड़े पैमाने पर भावनात्मक छाप छोड़ी.
किदवई ने कहा कि प्रेमचंद भी कुछ हद तक ठाकुर से प्रभावित थे.उन्होंने लिखा है, प्रेमचंद ने अपने पत्रों में ठाकुर की रचनाओं का कम से कम 12 बार जिक्र किया है और उन्होंने ठाकुर की शैली में लिखने का गर्व हासिल किया. इससे कोई भी आसानी से इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि प्रेमचंद कुछ तक ठाकुर से प्रभावित थे.