नयी दिल्ली : देश में प्रदूषण के बढ़ते प्रकोप का असर पेयजल की गुणवत्ता पर भी पड़ रहा है, जिसकी वजह से देश की 47.41 करोड़ आबादी फ्लोराइड, आर्सेनिक, लौह तत्व और नाइट्रेट सहित अन्य लवण एवं भारी धातुओं के मिश्रण वाला पानी पीने को मजबूर है. पेयजल की उपलब्धता और इसकी गुणवत्ता से जुड़े सरकार के आंकड़े बताते हैं कि सेहत के लिये खतरनाक रासायनिक तत्वों की मिलावट वाले दूषित पानी की उपलब्धता से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में राजस्थान, पश्चिम बंगाल और असम शीर्ष पायदान पर हैं.
पर्यावरण मंत्रालय की मदद से केंद्रीय एजेंसी ‘एकीकृत प्रबंधन सूचना प्रणाली’ (आईएमआईएस) द्वारा देश में पानी की गुणवत्ता को लेकर तैयार किये गये आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान की सर्वाधिक 19657 बस्तियां और इनमें रहने वाले 77.70 लाख लोग दूषित जल से प्रभावित हैं. आईएमआईएस द्वारा पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय को सौंपे गये आंकड़ों के मुताबिक, पूरे देश में 70736 बस्तियां फ्लोराइड, आर्सेनिक, लौह तत्व और नाइट्रेट सहित अन्य लवण एवं भारी धातुओं के मिश्रण वाले दूषित जल से प्रभावित हैं.
फ्लोराइड, आर्सेनिक, नाइट्रेट व लवणयुक्त भूजल का प्रकोप ज्यादा
इस पानी की उपलब्धता के दायरे में 47.41 करोड़ आबादी आ गयी है. राजस्थान में फ्लोराइड, नाइट्रेट और लवणता युक्त भूजल का प्रकोप सबसे ज्यादा है. राज्य में 5996 बस्तियों के 40.94 लाख लोग फ्लोराइड के, 12606 बस्तियों में रहने वाले 28.53 लाख लोग लवणता युक्त पानी के और 1050 बस्तियों के 8.18 लाख लोग नाइट्रेट मिश्रित पानी के इस्तेमाल को विवश हैं. आर्सेनिक युक्त पानी की उपलब्धता से असम सर्वाधित प्रभावित है.
राज्य की 4514 बस्तियों में रहने वाली 17 लाख की आबादी को आर्सेनिक युक्त पानी मिल रहा है. पश्चिम बंगाल इन सभी हानिकारक तत्वों के मिश्रण वाले पानी की उपलब्धता के मामले में दूसरा सबसे प्रभावित राज्य है. राज्य की 17650 बस्तियों के 1.70 करोड़ लोग इस समस्या के घेरे में आ गये हैं. दूषित जल की उपलब्धता से प्रभावित आबादी के मामले में पश्चिम बंगाल अव्वल है. जबकि गोवा, गुजरात और हिमाचल प्रदेश के अलावा पूर्वोत्तर राज्य में मणिपुर, मिजोरम तथा सिक्किम एवं केंद्र शासित क्षेत्र पुदुच्चेरी में एक भी बस्ती किसी भी प्रकार के दूषित जल से प्रभावित नहीं है.
पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि खतरनाक रासायनिक तत्वों के मिश्रण वाले पानी से प्रभावित इलाकों में ग्रामीण क्षेत्रों की हिस्सेदारी ज्यादा है. केंद्र सरकार ने आर्सेनिक और फ्लोराइड मिश्रित पानी की समस्या से प्रभावित 28 हजार बस्तियों सहित पूरे देश में राष्ट्रीय जल गुणवत्ता अभियान गत वर्ष मार्च में शुरू किया था. इन बस्तियों को चार साल के भीतर इस समस्या से निजात दिलाने का लक्ष्य रखा गया है. साथ ही केंद्र सरकार राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना के तहत राज्य सरकारों को पानी की गुणवत्ता सुधारने के लिये तकनीकी एवं वित्तीय मदद मुहैया करा रही है.
दूषित जल से होती हैं ये बीमारियां
जल संरक्षण के क्षेत्र में कार्यरत विशेषज्ञ मनोज मिश्रा ने बताया कि पानी में फ्लोराइड की अधिकता से फ्लूरोसिस, नाइट्रेट की अधिकता से श्वांस संबंधी बीमारियां, लौह एवं लवणयुक्त पानी से ओस्टियोपोरोसिस, अर्थराइटिस और आर्सेनिक युक्त दूषितजल से कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा होता है.
समस्या के समाधान के बारे में मिश्रा ने बताया कि प्रभावित इलाकों में सरकार को तत्काल पेयजल के रूप में दूषित पानी का प्रयोग रोक कर वैकल्पिक स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराते हुये इन इलाकों में पानी को माइक्रो ट्रीटमेंट तकनीक से साफ करना चाहिए. साथ ही भूजल को दूषित कर रही औद्योगिक इकाईयों को तत्काल बंद करने के उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन भी सुनिश्चित कराना जरूरी है.