सब कुछ इस बात पर निर्भर है कि मोदी कैसी टीम बनाते हैं

एनडीटीवी 24×7 के साथ पिछले दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी की इंडियन एक्सप्रेस के प्रधान संपादक शेखर गुप्ता के साथ खास बातचीत हुई थी. इस बातचीत में अरुण शौरी ने बताया था कि अगर भाजपा की सरकार बनती है तो उसके सामने क्या चुनौतियां होंगी और गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 18, 2014 12:45 PM

एनडीटीवी 24×7 के साथ पिछले दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी की इंडियन एक्सप्रेस के प्रधान संपादक शेखर गुप्ता के साथ खास बातचीत हुई थी. इस बातचीत में अरुण शौरी ने बताया था कि अगर भाजपा की सरकार बनती है तो उसके सामने क्या चुनौतियां होंगी और गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी के काम करने का क्या तरीका है. उन्हें कैसे काम करना चाहिए. अब जबकि मोदी की सरकार बनने जा रही है तो यह साक्षात्कार खासा मौजू प्रतीत होता है.

इन चुनावों को देश के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव माना जा रहा है, क्या आप सहमत हैं कि देश के हर चुनाव के बारे में ऐसा ही कहा जाता है?

यह चुनाव इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि आप इसमें न सिर्फ पार्टी या गठबंधन में बदलाव देख रहे हैं, बल्कि चरित्र, तेवर, स्टाइल और विचारधारा में भी परिवर्तन देख सकते हैं. यह बदलाव इस तरह का है कि आप इसे प्रेसिडेंशियल इलेक्शन के तौर पर महसूस कर सकते हैं. पहले लोगों की दिलचस्पी स्थानीय उम्मीदवारों और पार्टियों में होती थी.

मगर इस बार सिर्फ एक व्यक्ति महत्वपूर्ण नजर आ रहा है.. उसके आलोचकों ने उसका निर्माण किया है, और मोदी के अपने तरह के अभियान ने.. या तो लोग मोदी के पक्ष में वोट कर रहे हैं या उनके खिलाफ. और मोदी का व्यक्तित्व डॉ. मनमोहन सिंह से उलट है और दूसरे, जिनकों हम देख चुके हैं. इसलिए प्रशासन का तरीका पूरी तरह बदल जायेगा. मुङो लगता है सारी चीजें प्रधानमंत्री कार्यालय, उनके द्वारा नियुक्त 30 सचिवों वाली कैबिनेट सचिवालय के आसपास केंद्रित हो जायेगी और सरकार वहां से संचालित होगी. मैंने 2007 में लिखा था, जब गुजरात में नतीजे आने वाले थे कि मोदी आरएसएस के खिलाफ नहीं जायेंगे. मेरा मानना है कि वाजपेयी भी खिलाफ नहीं गये थे, वह उन्होंने मैनेज कर लिया था. जहां तक मोदी का मामला है, मुङो लगता है उनके बेहतरीन तालमेल है, आरएसएस एमपी और मंत्रियों की निगरानी करता है और नीति बनाने का काम सरकार पर छोड़ देता है. संभवत: मोदी यह सुनिश्चित करेंगे.

क्या आप इसे पीएमओ के स्तर में गिरावट के तौर पर पारिभाषित करते हैं?

दरअसल, यह गिरावट खुद प्रधानमंत्री की है. मैंने महसूस किया है कि उनकी ओर से हमेशा सोनिया गांधी को ब्लेम करने की कोशिश की जाती रही है. जबकि मैं यह कल्पना भी नहीं कर सकता हूं कि सोनिया इस तरह हर छोटे-छोटे मामले में हस्तक्षेप करती होंगी. आप इस लिहाज से आरएसएस और वाजपेयी का केस देख सकते हैं. आरएसएस सोनिया से कहीं अधिक पावरफुल था, मगर वाजपेयी ने सरकार चलायी. जब आरएसएस ने ब्रजेश मिश्र और एनके सिंह को हटाने की बात कही तो वाजपेयी ने कहा, मेरा सिर काट लो, वे मेरे साथ ही रहेंगे. याद कीजिये, हर कोई यशवंत सिंहा के खिलाफ था, मगर वे वाजपेयी ही थे जो उनके साथ खड़े थे. इसलिए पीएमओ का मजबूत रहना जरूरी है, हालांकि साथ-साथ और भी चीजें होनी चाहिये. जैसे एक ओर वाणिज्य मंत्री कहते हैं कि हम सौ फीसदी एफडीआई लायेंगे, 80 फीसदी एफडीआई लायेंगे. तो दूसरी ओर सरकार ने इनकम टैक्स अफसरों को टारगेट दे दिया और वे निर्यातकों को परेशान करने लगे. ऐसे में कैसे पैसा आयेगा. हालात तो ये हो गये थे कि निवेशक भारत से पैसा खींचकर वियतनाम ले जाने लगे थे. यह सब इस वजह से हुआ कि मनमोहन सिंह ने सरकार की जिम्मेदारी नहीं ली और बदले में हर कोई अपनी सरकार चलाने लगा. और हालात ये हो गये कि लोग कहने लगे, पता नहीं कल क्या होगा. मेरी समझ से अब ऐसी नौबत नहीं आयेगी.

वह एक बात है. दूसरी यह है कि ब्रिटेन के रहने वाले एक एनआरआइ कंसल्टेंट ने बताया कि नयी सरकार का काम यह होगा कि वह भारत में विकास विरोधी लॉबी को ध्वस्त करे. क्या आप उस लॉबी को परिभाषित कर सकते हैं.

यहां ऐसे लोग हैं जो कल्पना करते हैं कि बदलाव से क्या-क्या परेशानियां आयेंगी. एक गरीबवादी हैं, जो कहते हैं विकास गलत है. इससे असमानता बढ़ती है. अगर आप बड़े बांध बनाते हैं तो इससे परिवारों को विस्थापित करना पड़ेगा. एक अच्छे विस्थापन और पुनर्वास नीति की जरूर आवश्यकता है, मगर यहां लोग उन तीन परिवारों को फोकस करते हैं जिन्हें आज तक घर नहीं मिला. और इसके आधार पर कहते हैं कि सब कुछ गलत है. यहां एक्टिविस्ट मुद्दों की तलाश में भटकते रहते हैं. इसलिए भारत में अगर कोई नकारात्मक बात हो गयी तो उसे खूब उछाला जाता है.

मैंने एक पूर्व जनरल के मुंह से सुना कि हरियाणा में एक एटमिक पावर प्लांट लगने वाला है. उसके लिए एक नहर के पानी का इस्तेमाल ठंडा करने के लिए किया जायेगा, बाद में उस पानी से सिंचाई की जायेगी. उनका कहना था कि अगर ऐसा हुआ तो पूरी फसल पर रेडियेशन का असर आ जायेगा. यह तो साठ के दशक में मणीराम बागरी द्वारा कही गयी बात जैसी बात हो गयी. वे कहते थे कि भाखड़ा नांगल बांध से अगर बिजली निकाल ली तो उस पानी से गेहूं कैसे पैदा होगा. मुङो लगता है नयी सरकार को बड़े कठिन फैसले लेने होंगे. मैं प्रणब मुखर्जी के वक्त के कर्ज के आंकड़े को देखता हूं. क्या आप अंदाजा लगा सकता हैं कि अगले पांच साल में हमें कितना उधार चुकाना होगा. जितना हम आज चुका रहे हैं उसका लगभग तीन गुना.

ऐसे में आप व्यय पर, सब्सिडी पर क्या खर्च करेंगे, आप तो कैपिटल एक्सपेंडीचर को कम कर ही नहीं सकते. कम से कम एक अच्छी बात है कि आपके पास एक बेहतर आरबीआइ गवर्नर है. मेघनाथ देसाई ठीक कहते हैं, अगर आपने रघुराम राजन को हटा दिया तो आप एक पैसे का विदेशी निवेश हासिल नहीं कर सकते. आप बेहतर समझ सकते हैं कि एके एंटनी जैसे रक्षा मंत्री की वजह से देश की क्या दशा हुई. मैं उन्हें दूसरा बापू नादकर्नी मानता हूं. बापू के नाम क्रिकेट की दुनिया का एक अनूठा रिकार्ड है. 22 ओवरों तक लगातार मेडन बॉलिंग करने का. वे लगातार मेडन फेंकते रहे, मगर विकेट एक भी नहीं लिया. मेरे एक मित्र ने बताया कि सेना के बजट का 88 फीसदी रेवेन्यू एक्सपेंडीचर (राजस्व व्यय) पर जाता है, सिर्फ 12 फीसदी नये काम, हथियार और दूसरे मद में खर्च होता है. क्या इस तरह देश की रक्षा की जा सकती है..

हर सवाल का जवाब कमेटियों पर छोड़ दिया जाता है. चाहे जीओएम हो या इ-जीओएम, हर चीज के लिए एक और रेगुलेटर.. सेबी के प्रमुख ने मुङो बताया कि इस वक्त देश में 36 रेगुलेटर हैं. सिर्फ वित्तीय क्षेत्र में 9 रेगुलेटर हैं, शिक्षा के क्षेत्र में 13. इसी की बदौलत उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हमारी यह हालत है. 13 रेगुलेटरों का काम है अच्छे कॉलेज को काम करने नहीं दिया जाये.

इसलिए मोदी पर बड़ी जिम्मेदारियां हैं. जैसा कि आप कह रहे हैं कि उनके पास क्षमताएं हैं. जिस तरह उन्होंने चुनाव अभियान को संचालित किया है, वे सरकार का भी संचालन करेंगे. और आप यह महसूस कर रहे हैं कि प्रक्रिया शुरू हो चुकी है?

मुङो लगता है शुरुआत में कुछ लिस्ट बनाये गये थे, कुछ नोट्स भी लिये गये थे. मगर प्रचार अभियान की वजह से सबकुछ किनारे रख दिया गया है. मोदी ने अपनी ऊर्जा से सबको प्रभावित किया है. अपनी ऊर्जा से, अपने फोकस से. मगर भाजपा के दूसरे नेता उन्हें सामने आने नहीं देना चाह रहे थे. उनका मानना था कि गुजरात के बाहर उनकी अपील नहीं है, कि उनके बहाने कांग्रेस कोई ट्रिक खेल रही है. या वह ब्राह्मण नहीं है. हां, मणिशंकर अय्यर ने मोदी को चायवाला कह कर उन्हें फेमस कर दिया.

आप और मणिशंकर अय्यर एक ही कॉलेज से हैं और एक ही वक्त के.

हम एक ही क्लास में थे. उसकी जीवन में सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि उसने परीक्षा में मुझसे 4 फीसदी अधिक अंक अर्जित किये थे..

तो, मोदी को प्रतिभा की जरूरत है..

प्रतिभा ही नहीं कई और चीजों की भी जरूरत है, जो उन्होंने साबित किया है. हर मुद्दे को वह मिल बैठकर सुलझाना जानते हैं. जैसे मान लीजिये कोल के मुद्दे का समाधान चाहिये तो हर संबंधित व्यक्ति को वे एक टेबुल पर बिठाने की कोशिश करेंगे, चाहे आठ घंटे की बैठक हो वे मुद्दे को सुलझाने की कोशिश करेंगे. और उस बैठक में फैसला लेने की कोशिश करेंगे. यह काम करने का उनका तरीका है. यह ठीक है कि आप कोई काम करना चाहते हैं तो उसे परिणति तक पहुंचायें भी.

अगर आपसे कहा जाये कि आप मोदी को टु-डू लिस्ट और नॉट-टु -डू लिस्ट दें तो आप क्या सलाह देंगे?

लोगों की तलाश करें. सबकुछ लोगों पर ही निर्भर है जिसे आप चुनेंगे. कोई भी नियुक्ति कम महत्व की नहीं है, कभी सिंचाई का मसला महत्वपूर्ण हो जाता है तो कभी पावर (बिजली) का. दूसरा, लोगों के व्यवहार पर गौर करें, क्योंकि हर कोई देख रहा है. तीसरा, इस बात को महसूस करें कि आज हालात कितने जटिल हैं. अर्थव्यवस्था के मोरचे पर और सुरक्षा के मोरचे पर. चीन बेहतर प्रदर्शन कर रहा है. उसी तरह अमेरिकी जैसे अफगानिस्तान से बाहर जायेंगे पाकिस्तानी आतंकवादी भारत आने लगेंगे, उनसे निबटने की योजना बनायें. इसके अलावा विपक्षियों से परेशान न हों. मुख्यमंत्रियों को साझीदार बनायें और भारत को आगे बढ़ायें. चीन युद्ध के दौरान पंडित जी जब परेशान थे तो हर पंद्रह दिन पर देश के सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर नीतियों की जानकारी देते थे.

और क्या न करें?

किसी भी दागी या अक्षम व्यक्ति को सरकार का हिस्सा न बनायें. क्योंकि एक कमजोर कड़ी पूरी चेन को कमजोर कर सकती है. अपने द्वारा दिये गये हर आदेश का फॉलोअप करें. एक और चीज से बचें. मैंने यह राजीव गांधी और दूसरों के मामले में देखा है, वे सोचते थे कि अगर वे सदन का प्रबंधन कर लेते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि हर चीज उनकी मुट्ठी

में है. (साभार-एनडीटीवी)

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