नव उदारवाद एवं सांप्रदायिक नीतियों के खिलाफ प्रगतिशील लेखक संघ का प्रदर्शन
नयी दिल्ली : प्रगतिशील लेखक संघ ने 23 मई को देश के राज्यों की राजधानी में नव उदारवाद एवं सांप्रदायिक नीतियों के विरूद्ध जुलूस और प्रदर्शन करने का फैसला लिया है. इस अवसर पर प्रगतिशील लेखक संघ ने देश के सभी बुद्धिजीवियों, लेखकों एवं कलाकारों से इस प्रदर्शन में शामिल होने का अपील की है. […]
नयी दिल्ली : प्रगतिशील लेखक संघ ने 23 मई को देश के राज्यों की राजधानी में नव उदारवाद एवं सांप्रदायिक नीतियों के विरूद्ध जुलूस और प्रदर्शन करने का फैसला लिया है. इस अवसर पर प्रगतिशील लेखक संघ ने देश के सभी बुद्धिजीवियों, लेखकों एवं कलाकारों से इस प्रदर्शन में शामिल होने का अपील की है.
प्रलेस के मुताबिक भाजपा शासन के चार सालों में सांस्कृतिक पतन अपने चरम पर है. ऐसे हालत में लेखक बैठे नहीं रह सकते हैं. सहिष्णुता, सद्भाव आधारित भारतीय संस्कृति को सत्ता संरक्षित शक्तियों ने बेरहमी से कुचला है. प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव राजेन्द्र राजन ने कहा कि मौजूदा सरकार के रवैये का सर्वप्रथम विरोध लेखकों ने ही किया.
लेखक समुदाय ने कलम को बेचने से इंकार ही नहीं किया बल्कि चेतना जगाने का काम भी किया. कई लेखक साथियों की इसकी कीमत जान देकर चुकानी पड़ी. प्रगतिशील लेखक संघ ने लेखकों और बुद्धिजीवियों को आह्वान करते हुए कि भौतिक भागिदारी देकर हम इस अभियान को बढ़ाएंगे. लेखक आज राजनीति से अलग रह नहीं सकता है. हम भी एक राजनीतिक प्राणी है, हमारी चुप्पी या वाचलता के कारण फासीवादी खतरे और भयानक बनेगी.