नयी दिल्ली : नवजोत सिंह सिद्धू यानी हर हारी बाजी को जीतने वाली शख्सियत. कभी अपनी बातों तो कभी हरकतों की वजह से खुद अपने लिए मुश्किलें पैदा करने वाले सिद्धू इनसे निपटने के रास्ते भी तलाश लेते हैं और किस्मत इस मामले में उनका भरपूर साथ भी देती है.
उच्चतम न्यायालय के उनसे जुड़े रोडरेज के मामले में आज के फैसले से एक बार फिर यह बात साबित होती है. न्यायालय ने उन्हें इस मामले में जेल की सजा से छूट दे दी हालांकि 1000 रुपये का जुर्माना उन्हें अदा करना होगा.
कई गुना बढ़ गयी लोकप्रियता
भारतीय क्रिकेट टीम के ये पूर्व सलामी बल्लेबाज मैदान से हटने के बाद कमेंट्री के पिच से लेकर कॉमेडी शो के जज और मंझे हुए सियासतदां के तौर पर कई किरदारों को बेहद बखूबी से अंजाम दे रहे हैं. क्रिकेट प्रेमियों में वह अपने लंबे छक्कों की वजह से लोकप्रिय हुए तो वहीं कॉमेडी शो के जज के तौर पर उनके जुमला ‘छा गये गुरू’, ‘ठोको ताली’ और ‘चक दे फट्टे नप दे किल्ली’ आम लोगों की जुबान पर ऐसे चढ़े कि सिद्धू की लोकप्रियता कई गुना बढ़ गयी.
स्ट्रोकलेस वंडर
सियासत की पारी में भी सिद्धू का सितारा बुलंदी पर रहा और फिलहाल शायद ही कोई दिन होता हो जब पंजाब सरकार का यह 54 साल का मंत्री सुर्खियों से दूर रहता हो. अपने पग, पैग और सलवार के लिए मशहूर पंजाब के पटियाला शहर में 20 अक्तूबर 1963 को सिद्धू का जन्म हुआ. क्रिकेट में सिद्धू की शुरुआत बेहद साधारण रही और 1983 में उन्हें ‘स्ट्रोकलेस वंडर’ कहा गया, लेकिन 1987 के विश्चकप में चार अर्धशतकों के साथ उन्होंने अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज करायी.
खिलाड़ी, कमेंटेटरऔर एंटरटेनर
सिद्धू क्रिकेट के पिच पर जितने अप्रत्याशित रहते थे उतने ही खुद भी अप्रत्याशित थे. करीब दो दशक तक क्रिकेट के मैदान पर सक्रिय रहने के बाद उन्होंने मैदान के बाहर कमेंट्री में अपना हाथ आजमाया. यहां भी उन्होंने अपने शानदार हास्यबोध और जानदार उपमाओं से क्रिकेट कमेंट्री को बेहद रोचक अंदाज में पेश करने की अलग ही शैली विकसित की. टीवी पर स्टैंड अप कॉमेडी शो के दौरान जज के तौर पर उनकी भूमिका दर्शकों को कई बार प्रतिभागियों से ज्यादा हंसाती थी. उन्होंने कुछ पंजाबी और हिंदी फिल्मों में अतिथि भूमिका भी निभाई, लेकिन टीवी पर वह ज्यादा सहज नजर आये.
भाजपा से नाखुशी
इस दौरान अमृतसर लोकसभा सीट से भाजपा के सांसद रहे सिद्धू पर क्षेत्र में कम दिखने के भी आरोप लगते रहे. हालांकि इन आरोपों का उनकी लोकप्रियता पर असर पड़ता नहीं दिखा और उन्होंने 2004 के बाद 2009 में भी इस सीट पर कब्जा जमाया. वर्ष 2014 में भाजपा ने सिद्धू से अरुण जेटली के लिये यह सीट खाली करने को कहा. शुरू में सिद्धू ने दावा किया कि उन्हें इस पर कोई आपत्ति नहीं लेकिन जल्द ही उन्होंने इस फैसले पर अपनी नाखुशी जाहिर कर दी. भाजपा ने उन्हें 2016 में राज्यसभा सदस्य बनाया लेकिन पार्टी उन्हें पूरी तरह मनाने में नाकाम रही.
भाजपा छोड़ थामा कांग्रेस का दामन
सिद्धू ने 2017 में पंजाब विधानसभा चुनावों से ठीक पहले राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर कांग्रेस का दामन थाम लिया. सिद्धू के आम आदमी पार्टी के साथ जाने के कयास लग रहे थे और उन्होंने पूर्व हॉकी कप्तान परगट सिंह के साथ मिलकर एक पार्टी भी बनायी थी, लेकिन अंत में कांग्रेस के साथ जाने का फैसला किया. अमृतसर पूर्व विधानसभा सीट से विधायक चुने जाने के बाद अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में उन्हें पर्यटन और संस्कृति मंत्री बनाया गया.
विवादों से अछूते नहीं
कई तुनकमिजाज सार्वजनिक शख्सियतों की तरह सिद्धू भी विवादों से अछूते नहीं रहे. उनके जीवन का स्याह अध्याय 1988 का रोडरेज मामला है. सिद्धू पर अपने एक दोस्त के साथ मिलकर गुरनाम नाम के एक शख्स की पिटाई करने का आरोप है. गुरनाम ने बीच सड़क पर सिद्धू के गाड़ी खड़ी करने पर आपत्ति जतायी थी. अस्पताल में गुरनाम की मौत हो गयी थी. इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने सिद्धू को जानबूझकर पिटाई करने का दोषी मानते हुए उन पर 1000 रुपये का जुर्माना लगाया हालांकि कैद की सजा नहीं दी.