नयी दिल्ली: कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला सरकार बनाने का न्योता देने में उच्चतम न्यायालय के फैसलों को संज्ञान में ले सकते हैं. शीर्ष अदालत ने अपने फैसलों में कहा है कि खंडित जनादेश की स्थिति में सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने का न्योता दिया जाना चाहिए.ऐसाकानून के जानकारों का मानना है. हालांकि सर्वाधिक विधायकों वाली पार्टी का निर्धारण कैसे किया जाएगा इसको लेकर विधि विशेषज्ञों की राय बंटी नजरआ रही है. यह सबसे बड़ी पार्टी होगी या गठबंधन होगा इसपर स्थिति स्पष्ट नहीं दिखी.
पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी, वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी, अजीत कुमार सिन्हा और राजीव धवन तथा उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पीबी सावंत और संविधान विशेषज्ञ गोविंद गोयल की राय थी कि राज्यपाल क्या करेंगे इस बारे में अभी सोचना ‘ जल्दबाजी ‘ होगी. हालांकि, उनके पास सबसे बड़ी पार्टी या गठबंधन जिनके पास अधिक विधायक होंगे उन्हें सरकार बनाने का न्योता देने का विकल्प हैं.
रोहतगी ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि राज्यपाल को सबसे बड़ी पार्टी और यहां भाजपा को सरकार बनाने केलिए बुलाना चाहिए. लेकिन न्यायमूर्ति सावंत ने कहा कि संवैधानिक व्यवस्था में ऐसा कुछ भी नहीं है जो सरकार बनाने केलिए कांग्रेस – जद (एस) गठबंधन को बुलाने की राह में आड़े आएगा. उनसे अलग राय रखते हुए द्विवेदी और गोयल ने कहा कि इस समय राज्यपाल केलिए फैसला करना जल्दबाजी होगी. जब तक चुनाव आयोग अंतिम नतीजों की घोषणा नहीं करता है, तब तक इंतजार किया जानाचाहिए. धवन ने कहा कि सही तरीका है कि राज्यपाल को पहले सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने का न्योता देनाचाहिए और अगर वह बहुमत साबित करने में विफल रहती है तब राज्यपाल गठबंधन को आमंत्रित कर सकते हैं.
गोवा व मणीपुर का उदाहरण
गोवा और मणिपुर चुनावों का उल्लेख करते हुए धवन ने कहा कि इन दो राज्यों में गलती कीगयी थी क्योंकि सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को सरकार बनाने का न्योता नहीं दिया गया था. उनकी राय से गोयल ने सहमतिजतायी. उन्होंने कहा कि संवैधानिक परिपाटी के अनुसार सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए पहले बुलाया जाना चाहिए लेकिन मणिपुर और गोवा जैसे राज्यों में अतीत में कुछ गलतियां हुई हैं.
उन्होंने कहा कि राज्यपाल को इस बात की संभावना तलाशने के लिए सबसे बड़ी पार्टी को पहले बुलाना चाहिए कि वह सरकार बनाना चाहती है या नहीं. अगर वह मना कर देती है तो उन्हें कांग्रेस से सरकार बनाने का अवसर तलाशने का अनुरोध करने का अधिकार होगा. इसे और स्पष्ट करते हुए द्विवेदी ने कहा कि अंतिम नतीजे के बाद राज्यपाल केलिए अपने विवेक का इस्तेमाल करने केलिए स्थिति स्पष्ट होगी, जो भी राज्य में स्थिर सरकार प्रदान करने की स्थिति में होगा उसको ध्यान में रखकर राज्यपाल सबसे बड़ी पार्टी या गठबंधन को सरकार बनाने केलिए आमंत्रित कर सकते हैं.
एस आर बोम्मई (1994) और रामेश्वर प्रसादमामला
स्थिरता के कारक पर जोर देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता और भाजपा प्रवक्ता अमन सिन्हा ने एस आर बोम्मई (1994) और रामेश्वर प्रसाद मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसलों की ओर ध्यान आकर्षित किया. इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि राज्यपाल पर उस पार्टी को आमंत्रित करने की जिम्मेदारी है जो स्थिर और टिकाऊ सरकार प्रदान कर सकती है. उन्होंने कहा कि मौजूदा परिदृश्य में सिर्फ भाजपा स्थिर और टिकाऊ सरकार प्रदान करने की स्थिति में है और चूंकि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभर रही है और वह बहुमत से कुछ सीटों से दूर है इसलिए यह स्पष्ट संकेत है कि कर्नाटक में मतदाताओं ने भाजपा को चुना है.
गोयल ने हालांकि कहा कि बोम्मई मामले का मौजूदा परिदृश्य में कुछ खास महत्व नहीं है क्योंकि यह कर्नाटक में सत्तारूढ़ पार्टी को सदन में अपना बहुमत साबित करने का मौका दिये बिना राष्ट्रपति शासन लगाने से संबंधित था. उन्होंने कहा कि रामेश्वर प्रसाद मामले में 2005 के फैसले की मौजूदा संदर्भ में कुछ प्रासंगिकता है क्योंकि बिहार के तत्कालीन राज्यपाल ने सबसे बड़े चुनाव पूर्व गठबंधन को सरकार बनाने का न्योता नहीं दिया था और इस आधार पर राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की थी कि सरकार गठन के लिए विधायकों के खरीद फरोख्त की संभावना है. सावंत ने कहा कि कानूनी दृष्टि से ऐसा लगता है, ‘‘ राज्यपाल जद (एस) और कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए बुलाएंगे क्योंकि उनके विधायकों की संख्या भाजपा के विधायकों की संख्या से अधिक है. लेकिन उन्हें सदन में अपना बहुमत साबित करना होगा. सरकार चलाने केलिए मेरी राय में जद (एस) और कांग्रेस को बुलाया जाएगा. ‘ इसके विपरीत, रोहतगी ने कहा, ‘‘ यहां (कर्नाटक) में भाजपा भारी अंतर से आगे चल रही है. राज्यपाल भाजपा को आमंत्रित करने केलिए बाध्य हैं. सरकार गठन के लिए राज्यपाल को पार्टी को तर्कसंगत समय संभवत: एक सप्ताह का समय देना होगा और तब सदन के पटल पर बहुमत साबित करना होगा. ‘ हालांकि, सभी विधि विशेषज्ञों में एक बात पर आम सहमति थी कि कर्नाटक के जनादेश ने राज्यपाल को फैसला करने में अपने विवेक और विशेषाधिकार का इस्तेमाल करने की पूरी छूट दे दी है.