नयी दिल्ली: देश के सात राज्यों एवं एक केंद्र शासित प्रदेश में हिंदुओं को अल्पसंख्यक वर्ग का दर्जा दिए जाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से कुछ दिन पहले राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सैयद गैयरुल हसन रिजवी ने कहा कि मौजूदा कानूनी प्रावधानों के तहत इन प्रदेशों में हिंदुओं को धार्मिक अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया जा सकता क्योंकि अल्पसंख्यक वर्गों का निर्धारण राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में होता है. दरअसल, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, मिजोरम, मणिपुर, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और लक्षद्वीप के हिंदुओं को अल्पसंख्यक वर्ग का दर्जा दिए जाने की मांग वाले याचिका पर 14 जून को आयोग की तीन सदस्यीय उप समिति सुनवाई करेगी.
रिजवी ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय के कहने के बाद हमने उप समिति बनायी. यह उप समिति 14 जून को याचिकाकर्ता का पक्ष सुनेगी. उनका पक्ष सुनने के बाद हम अपनी रिपोर्ट शीर्ष अदालत को भेजेंगे.’ यह पूछे जाने पर कि क्या मौजूदा कानूनी प्रावधानों के तहत इन राज्यों में हिंदुओं को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देना संभव है, उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम-1992 के तहत पांच समुदायों-मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को धार्मिक अल्पसंख्यक कहा गया. 2014 में इसमें जैन समुदाय को भी शामिल किया गया. धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग का निर्धारण राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में होता है.’
उन्होंने कर्नाटक सरकार द्वारा हाल ही में लिंगायतों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने की अनुशंसा किए जाने का हवाला दिया और कहा, ‘‘मौजूदा कानूनी प्रावधान में संभव होता तो लिंगायतों को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा मिल गया होता.’ गौरतलब है कि भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने सर्वोच्च अदालत में अर्जी दाखिल कर आठ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने की मांग की थी. बाद में न्यायालय ने उनसे कहा था कि वह अल्पसंख्यक आयोग का रुख करें. उपाध्याय का कहना है कि इन आठ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, ऐसे में इन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यकों वाले अधिकार मिलने चाहिए.
गौरतलब है कि 2011 की जनगणना के अनुसार लक्षद्वीप में 2.5, मिजोरम में 2.75, नागालैंड में 8.75, मेघालय में 11.53, जम्मू-कश्मीर में 28.44, अरुणाचल प्रदेश में 29, मणिपुर में 31.39 और पंजाब में 38.40 प्रतिशत हिंदू हैं.