मिथिलेश झा @ रांची
कवियों और शायरों ने ‘इशारों’ पर बहुत-सी बातें कही हैं. शम्मी ‘कश्मीर की कली’ में ‘इशारों-इशारों में दिल लेने वाले…’ गीत ने उस जमाने में धूम मचा दी थी. आज भी लोगों को यह गीत बेहद पसंद है. यह बात फिल्मों की है. कवियों की है. आम लोगों के जीवन में आमतौर पर ऐसा होता नहीं. गुजरात के दो भाइयों की कोशिश पूरी तरह सफल रही, तो वह दिन दूर नहीं, जब आमलोगों को बात करने के लिए जुबान की जरूरत नहीं होगी.
जी हां. गुजरात के रहने वाले भरतभाई और शरद भाई ने इशारों में बात करने की कला विकसित की है. नृत्य करके अपनी बात लोगों को समझानेकी क्षमता उनमें है. पिछले साल राजस्थान के माउंट आबू में ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में आयोजित एक सम्मेलन के दौरान दोनों भाइयों ने अपनी इस क्षमता का प्रदर्शन किया. उनकी एक्युरेशी 100 फीसदी रही.
उनकी इस जुगलबंदी ने लोगों को दांतों तले अंगुलियां दबाने के लिए मजबूर कर दिया. शरद भाई और भरत भाई ने भीड़ से किसी व्यक्ति को स्टेज पर आने के लिए कहा. उनसे स्लेट पर कुछ भी लिखने को कहा. उसे शरद भाई को दिखाया गया. शरद भाई ने अपने चेहरे के हाव-भाव सेवहबात भरत भाई को समझायी. भरत भाई ने उसे राइटिंग पैड पर लिखा और दर्शकों को बताया कि दर्शक दीर्घा से आये व्यक्ति ने स्लेट पर शरद भाई को क्या लिखकर दिया था. जैसे ही भरत भाई बताते कि स्लेट पर क्या लिखा है, पूरा हॉल तालियों से गूंज उठता.
इसके बाद शरद भाई ने कहा कि वह नृत्य करके भरत भाई को बतायेंगे कि स्लेट पर क्या लिखा है. ऐसा ही हुआ. आश्चर्य की बात यह थी कि जो कुछ भी स्लेट पर लिखा था, उससे जुड़ा म्युजिक भी नहीं बज रहा था. लिखने वाले, बताने वाले, नृत्य करने वाले और म्युजिक बजाने वाले सभी अलग-अलग लोग थे. अपनी मर्जी से लिख और बजा रहे थे. लेकिन, शरद भाई ने जो कुछ भी बताया, भरत भाई ने उसे बराबर समझा.
शरद भाई और भरत भाई ने बताया कि उनके बीच संवादके आदान-प्रदान में कोई समस्या नहीं है. लेकिन, लोगों को इस विधा में पारंगत करने में उन्हें थोड़ा वक्त लगेगा और इस दिशा में दोनों काम कर रहे हैं.