प्रणब मुखर्जी : कांग्रेस के पूर्व मार्गदर्शक अब आरएसएस के स्वयंसेवकों का कैसा मार्गदर्शन करेंगे?
नयी दिल्ली : देश में इस बात पर विवाद छिड़ा हुआ है कि पूर्व राष्ट्रपति व कांग्रेस के मार्गदर्शक रह चुके प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में जाना चाहिए या नहीं. मुखर्जी को संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सात जून को अपने संगठन के मुख्यालय नागपुर आमंत्रित किया है, जहां उन्हें संघ […]
नयी दिल्ली : देश में इस बात पर विवाद छिड़ा हुआ है कि पूर्व राष्ट्रपति व कांग्रेस के मार्गदर्शक रह चुके प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में जाना चाहिए या नहीं. मुखर्जी को संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सात जून को अपने संगठन के मुख्यालय नागपुर आमंत्रित किया है, जहां उन्हें संघ के तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण पूरा करने वाले स्वयंसेवकों को समापन संबोधन देना है. संघ में चार स्तरपर चरणबद्ध रूप से प्रशिक्षण कार्यक्रम होता है, प्राथमिक वर्ग, प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष और तृतीय वर्ष. यानी तृतीय वर्ष संघ की सर्वोच्च शैक्षणिक या प्रशिक्षण की इकाई है, जहां से निकलने के बाद ज्यादातर स्वयंसेवक प्रचारक बनते हैं या कम से कम कुछ वर्ष पूर्ण कालिक कार्यकर्ता के बतौर काम करते हैं और बाद में गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी संगठन की अहम जिम्मेवारियां निभाते हैं. ऐसे में यह भी बड़ा सवाल है कि प्रणब मुखर्जी संघ के इन स्वयंसेवकों का अब किस रूप में मार्गदर्शन करेंगे?
आरएसएस के‘भविष्य की रीढ़‘के बीच होंगे प्रणब
संघ ने अपने सामान्य स्वयंसेवकों को संबोधित करने के लिए प्रणब मुखर्जी को नहीं बुलाया है, बल्कि ये वैसे स्वयंसेवक हैं जो आने वाले सालों में संगठन की रीढ़ बनने वाले होते हैं. ऐसे में इनके बीच प्रणब मुखर्जी की मौजूदगी संघ की सिर्फ स्वीकार्यता के लिए ही नहीं भावी दिशा के लिए भी अहम है. यह भी देखना दिलचस्प होगा कि प्रणब मुखर्जी संघ को सिर्फ सराहते हैं या उस पर सवाल भी उठाते हैं और उसे इतिहास से सीख लेते हुए आगे के लिए मार्ग प्रशस्त करने को कहते हैं या नहीं.संघने अतीतमें भी भिन्नविचार रखने वालीबड़ी हस्तियों केसंपर्क व संसर्ग से खुद के आगे की राह तय की है और बड़ी कुशलता से अपनी मंजिलों को हासिल किया है.
प्रणब मुखर्जी ने पूर्व में संघ के निमंत्रणों को ठुकरा चुके हैं और जब उन्होंने इसे स्वीकार किया है तो जाहिर है कि उन्होंने इसके हर पहलू पर अच्छे से विचार किया होगा. प्रणब की समझ को तो उनके बड़े से बड़े विरोधी भी कम कर नहीं आंक सकते हैं. खुद के इस कार्यक्रम पर लगातार उठ रहे सवाल, मुलाकातियों के आग्रह और पत्रों को बाद उन्होंने शनिवार को एक बांग्ला अखबार के माध्यम से चुप्पी तोड़ी और कहा कि वे नागपुर में ही सात जून को सारे सवालों का जवाब देंगे. उनके इस सधे बयान से यह स्पष्ट है कि उनके मन में क्या है और वे क्या कुछ बोलेंगे इसको लेकर वे बहुत स्पष्ट और ठोस हैं.
मोहन भागवत से मुलाकातों का सिलसिला…
प्रणब मुखर्जी से मोहन भागवत की पिछले दो साल में चार मुलाकातें हुई हैं. दो मुलाकात उनके राष्ट्रपति पद पर रहते हुए और दो मुलाकात राष्ट्रपति पद से हटने के बाद 10 राजाजी मार्ग स्थित उनके आवास पर हुई. जाहिर है, इन मुलाकातों में दोनों के बीच एक समझ बनी होगी. प्रणब मुखर्जी ने इसी साल जनवरी में नवीन पटनायक के घर पर लालकृष्ण आडवाणी, एचडी देवेगौड़ा व सीताराम येचुरी के साथ एक भोज में हिस्सा लिया था. प्रणब मुखर्जी का भारतीय राजनीति में बहुत सम्मान है और उन्होंने वैचारिक सीमाओं को मानने वाले नेता की जगह मूल्यों को मानने वाले नेता की छवि बनायी है.
ऐसे में यह संभव है कि वे लोकतंत्र,समृद्धइतिहास,व्यक्ति पूजा, संविधान, समानता-सद्भाव, बंधुत्व, सौहार्द्र व सामाजिक न्याय जैसे अहम बिंदुओं पर अपना नजरिया रखें. अतीत में संघ के ऐसे शिक्षा वर्ग में सीबीआइ चीफ रहे जोगिंदर सिंह व एयर चीफ मार्शल एवाइ चिटनिस संबोधित कर चुके हैं. लेकिन यह पहला मौका है, जब देश के सर्वोच्च पद पर रहा शख्स और जिसका दीर्घकाल तक भारतीय राजनीति में सशक्त हस्तक्षेप रहा है – भले वह प्रधानमंत्री न बन पाये हों – जैसे बड़े राजनीतिक कद का शख्स संघ के शिक्षा वर्ग के प्रशिक्षुओं को संबोधित करेगा.
संघ की स्वीकार्यता का मुद्दा
संघ अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए खुद की तारीफ में वैसे बड़े नेताओं की पंक्तियों का प्रमुखता से उपयोग करता रहा है, जिनका उसके संगठन से संबंध नहीं रहा हो. जेपी जैसे नेता इसके उदाहरण है. अतीत में अलग-अलग मुद्दों पर संघ ने विरोधी विचारधाराओं के नेताओं से तालमेल बनाया है.
प्रणब मुखर्जी के नागपुर दौरे पर जयराम रमेश ने उन्हें पत्र लिख कर ऐसा न करने का आग्रह भी किया है. हालांकि इस मामले में एक विरोधी नेता के रूप में सबसे सधा बयान पी चिदंबरम ने दिया, उन्होंने कहा कि अगरप्रणब मुखर्जी ने नागपुर जाना तय कर लिया है तो उन्हें वहां जाकर बताना चाहिए कि उनकी विचारधारा में क्या गलत है. वहीं, इस पूरे मामले में गैर कांग्रेसी विपक्षी पार्टियों ने अभी चुप रहना उचित समझा है.
बहरहाल, सात जून को प्रणब मुखर्जी क्या बोलेंगे इस पर सबकी निगाह टिकी है. यह भारतीय राजनीति की एक बड़ी घटना बनने जा रही है. और जब संघ के मंच से प्रणब बोलेंगे तो उसमें न सिर्फ आरएसएस व भाजपा के लिए बल्कि कांग्रेस, समाजवादियों व वामपंथियों सबके लिए संदेश हो सकते हैं…देश के आम नागरिकों के लिए भी.