नयी दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने कहा है कि किसी बच्चे को उसके पिता से मिलने वाला गुजारा भत्ता रोजाना सिर्फ दो जून की रोटी तक सीमित नहीं होता है, बल्कि यह उन लाभों के आधार पर तय होना चाहिए जो उसे तब मिलते जब वह अपने माता – पिता के साथ रह रहा होता. अदालत ने एक व्यक्ति को आठ वर्षीय बेटे की परवरिश केलिए हर महीने पत्नी को 12,000 रुपये का गुजारा भत्ता देने का आदेश देते हुए यह टिप्पणी की. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संजीव जैन ने मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश के खिलाफ दायर व्यक्ति की अर्जी खारिज कर दी. मजिस्ट्रेट अदालत ने व्यक्ति को आदेश दिया था कि वह हर महीने बच्चे के लिए 12,000 रुपये और पत्नी के लिए 6,000 रुपये का गुजारा भत्ता दे. मामला घरेलू हिंसा का है.
न्यायाधीश ने कहा कि पिता से मिलने वाला गुजारा भत्ता बच्चे को सिर्फ प्रतिदिन केवल दो वक्त की रोटी के हिसाब से नहीं बल्कि अपने माता – पिता के साथ रहने के दौरान वह जिस सुविधा, हैसियत और धन का हकदार होता, उसी के अनुरूप मिलनी चाहिए. अदालत ने पति पर लगाये महिला के आरोपों को सही माना. महिला ने पति पर आरोप लगाया था कि विवाह के छह वर्ष बाद उसके घरेलू सहायिका से अवैध संबंध हो गए थे. महिला ने पति पर उसे पीटने और प्रताड़ित करने का आरोप भी लगाया था.