प्रणब दा की नागपुर यात्रा पर आरएसएस ने कांग्रेस से पूछा – क्या आपको उन पर विश्वास नहीं है?
लंबे आलेख में डॉ मनमोहन वैद्य ने कई संदर्भ दिये हैं और वामपंथी विचारकों पर हमला बोला है राजनीतिक दलों के पास स्वतंत्र वैचारिक चिंतक नहीं होने का भी उल्लेख किया नागपुर : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के जाने पर देश में छिड़े राजनीतिक विवाद पर संघ के वरिष्ठ […]
लंबे आलेख में डॉ मनमोहन वैद्य ने कई संदर्भ दिये हैं और वामपंथी विचारकों पर हमला बोला है
राजनीतिक दलों के पास स्वतंत्र वैचारिक चिंतक नहीं होने का भी उल्लेख किया
नागपुर : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के जाने पर देश में छिड़े राजनीतिक विवाद पर संघ के वरिष्ठ नेता व सह सर कार्यवाह डॉ मनमोहन वैद्य ने एक लंबा आलेख लिखकर संगठन का पक्ष रखा व वामपंथ पर हमला किया है. डॉ वैद्य ने पूछा है कि क्या कांग्रेस के लोगों को प्रणब दा जैसे बेदाग, कद्दावर ( Towering ) नेता पर विश्वास नहीं हैं? स्वयं दागदार चरित्र के और प्रणब दा की तुलना में कांग्रेस में कम अनुभवी लोग पूर्व राष्ट्रपति जैसे परिपक्व और अनुभवी नेता को नसीहत क्यों दे रहे हैं?
संघ के प्रवक्ता की भी जिम्मेवारी निभाने वाले डॉ मनमोहन वैद्य ने पूछा है कि संघ के किसी स्वयंसेवक ने यह क्यों नहीं पूछा कि इतने पुराने कांग्रेसी नेता को हमने क्यों बुलाया है? उन्होंने लिखा है कि संघ की वैचारिक उदारता और संघ आलोचकों की सोच में वैचारिक संकुचितता, असहिष्णुता और अलोकतांत्रिकता का यही फर्क है.
डॉ वैद्य ने लिखा है कि भिन्न विचार के लोगों से मिलकर विचार-विमर्श होना यह भारतीय परंपरा है और इस तरह की वैचारिक छुआछूत रखना और विचारों के आदान-प्रदान का विरोध करना अभारतीय है. उन्होंने लिखा है कि प्रणब मुखर्जी एक अनुभवी और परिपक्व राजनेता हैं. अनेक सामाजिक और राष्ट्रीय विषयों के बारे में उनके निश्चित विचार हैं. संघ ने उनके अनुभव और परिपक्वता को ध्यान में रख कर ही उन्हें अपने विचार स्वयंसेवकों के सम्मुख रखने के लिए आमंत्रित किया है. वहां वे भी संघ के विचार सुनेंगे, शिक्षार्थियों से भी उनका प्रत्यक्ष मिलना होगा. इससे उन्हें भी संघ को सीधे समझने का एक मौका मिलेगा.
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डॉ मनमोहन वैद्य ने लिखा है कि फिर इस बात का इतना विरोध क्यों हो रहा है? यदि विरोध करनेवालों का वैचारिक मूल, उनकी लीक और लामबंदियों देखेंगे तो इस विरोध पर आश्चर्य नहीं होगा. भारत का बौद्धिक विश्व साम्यवादी विचारों के ‘कुल’ और ‘मूल’ के लोगों द्वारा प्रभावित था जो एक पूर्णतया अभारतीय विचार है. इसीलिए उनमें अत्यंत असहिष्णुता है और हिंसा का रास्ता लेने की प्रवृत्ति है.
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संघ नेता ने अपने आलेख में सर्वोदयी विचारक डॉ. अभय बंग का उदाहरण दिया है, जब उन्हें संघ के ऐसे ही आयोजन में शामिल होने पर व्यापक विरोध का सामना करना पड़ा. इसी तरह पूर्व संघ प्रमुख दिवंगत रज्जू भैय्या का उल्लेख करते हुए बिना नाम का उल्लेख किये हुए उत्तरप्रदेश के कांग्रेस के एक बड़े नेता का जिक्र किया गया है, जो विरोध के भय से इच्छा होने के बावजूद संघ के कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए थे. उन्होंने आलेख में एक वामपंथी संपादक द्वारा स्वयं का उपेक्षा किये जाने का भी उल्लेख किया है.
उन्होंने लिखा है कि इस पर रज्जू भैय्या ने उन्हें कहा हमारे संघ में एकदम अलग सोच होती है. यदि कोई स्वयंसेवक मुझे आपके साथ देख लेगा तो वह मेरे बारे में शंका नहीं करेगा. इससे विपरीत वह सोचेगा की रज्जू भैय्या उन्हें संघ समझा रहे होंगे.
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