नयी दिल्ली : ओड़िशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में ‘सेवकों’ द्वारा श्रद्धालुओं का कथित शोषण किये जाने को गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सालाना रथ यात्रा के आयोजन से ठीक एक महीने पहले शुक्रवार को ऐसी गड़बड़ियां और कुप्रबंध रोने के लिए अनेक निर्देश जारी किये. शीर्ष अदालत ने कहा कि सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि सारे श्रद्धालु बगैर किसी विध्न-बाधा के मंदिर में दर्शन कर सकें और उनके द्वारा दिये गये चढ़ावे का दुरुपयोग नहीं हो.
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न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अवकाशकालीन पीठ ने ओड़िशा सरकार को निर्देश दिया कि वह जम्मू-कश्मीर में वैष्णो देवी, गुजरात में सोमनाथ मंदिर, पंजाब में स्वर्ण मंदिर, आंध्र प्रदेश में तिरूपति बालाजी मंदिर और कर्नाटक में धर्मस्थल मंदिर जैसे धार्मिक स्थलों की प्रबंधन योजनाओं का अध्ययन करे. पीठ ने कहा कि देश में तीर्थयात्रा केंद्रों का सही तरीके से प्रबंधन जनहित का मसला है.
पीठ मृणालिनी पाधी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इसमें कहा गया है कि पुरी में जगन्नाथ मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है और मंदिर के सेवकों द्वारा उनका शोषण किया जाता है. याचिका में यह भी कहा गया है कि मंदिर का वातावरण अपेक्षा के अनुरूप स्वच्छ नहीं है और इसके परिसर में अतिक्रमण है. याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि इस धर्मस्थल के प्रबंधन में खामियां हैं और यहां होने वाले धार्मिक क्रियाकलापों का व्यवसायीकरण हो गया है.
पीठ ने इस याचिका पर केंद्र, ओड़िशा सरकार और मंदिर की प्रबंध समिति से जवाब मांगा है. पीठ ने कहा कि याचिका में उठाये गये मुद्दे संविधान के अनुच्छेद 25 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों और संविधान के निर्देशित सिद्धांतों से जुड़े हैं. पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि अत्यधिक महत्व के इन तीर्थ केंद्रों का समुचित प्रबंधन जनहित का मामला है. निस्संदेह ये केंद्र धार्मिक, सामाजिक और वास्तुशिल्प की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं और ये हमारी सांस्कृतिक धरोहर का प्रतिनिधित्व करते हैं.
शीर्ष अदालत ने कहा कि इन केंद्रों पर लाखों व्यक्ति सिर्फ पर्यटन के लिए ही नहीं, बल्कि धार्मिक मूल्यों और अपने कल्याण के लिए आते हैं और ऐसे मूल्यों के प्रसार के लिए बहुत अधिक चढ़ावा तथा दान भी देते हैं. पीठ ने निर्देश दिया कि सेवकों को उचित पारिश्रमिक देकर उनकी क्षतिपूर्ति की जानी चाहिए. इस पारिश्रमिक का निर्धारण संबंधित प्राधिकार को करना चाहिए.
पीठ ने कहा कि अतिक्रमण रोकने पर विचार किया जाये और शोषण की प्रवृत्ति पर समय से अंकुश पाया जाये. पीठ ने 1997 के शीर्ष अदालत के एक फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि श्री जगन्नाथ मंदिर कानून, 1954 के अंतर्गत मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं द्वारा दिये जाने वाले चढ़ावे और दान को स्वीकार करने के लिए ‘हुंडी’ रखने की आवश्यकता पर जोर दिया गया था.
न्यायालय ने पुरी के जिला न्यायाधीश को निर्देश दिया कि मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं के सामने आ रही दिक्कतों, शोषण की प्रवृत्ति और प्रबंधन में खामी, यदि कोई हो, के बारे में 30 जून तक अंतरिम रिपोर्ट पेश की जाये. यही नहीं, न्यायालय ने मंदिर के प्रशासक को जगह-जगह लगाये गये सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्था की समीक्षा करने का निर्देश दिया और कहा कि इन कैमरों की फुटेज एक स्वतंत्र समिति को देखनी चाहिए.
न्यायालय ने राज्य सरकार को तत्काल एक समिति गठित करने का निर्देश दिया, जो दूसरे धार्मिक स्थलों की प्रबंधन योजनाओं का अध्ययन करके इसमें उचित बदलाव करने के सुझाव दे. पीठ ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार द्वारा गठित की जाने वाली समिति 30 जून तक अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंपेगी.
न्यायालय ने केंद्र को भी प्रमुख धर्मस्थलों के बारे में सूचनाएं एकत्र करने के लिए एक समिति गठित करने का निर्देश दिया, ताकि सभी आगंतुकों के लाभ के लिए प्रबंधन व्यवस्था की समीक्षा की जा सके. पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सु्ब्रमणियम को इस मामले में न्यायालय की मदद के लिए न्याय मित्र नियुक्त किया और उन्हें विभिन्न समितियों से सारी रिपोर्ट एकत्र करके उन पर अपने सुझाव देने का निर्देश दिया.