कौन थे आतंकियों की गोली के शिकार बने राइजिंग कश्मीर के संपादक शुजात बुखारी?
एक पत्रकार जो आलाेचना व बुलेट के से कभी भयभीत नहीं हुआ श्रीनगर : कश्मीर के अखबार राइजिंग कश्मीर के प्रधान संपादक शुजात बुखारी की गुरुवार शाम सात बजे के करीब उनके दफ्तर के बाहर आतंकियों ने गोली मार कर हत्या कर दी. उनके साथ उनके दो सुरक्षा कर्मियों हामिद चौधरी और मुमताज को भी […]
एक पत्रकार जो आलाेचना व बुलेट के से कभी भयभीत नहीं हुआ
श्रीनगर : कश्मीर के अखबार राइजिंग कश्मीर के प्रधान संपादक शुजात बुखारी की गुरुवार शाम सात बजे के करीब उनके दफ्तर के बाहर आतंकियों ने गोली मार कर हत्या कर दी. उनके साथ उनके दो सुरक्षा कर्मियों हामिद चौधरी और मुमताज को भी गोली लगी थी और उनकी भी मौत हो गयी. लगभग 50 साल की उम्र के शुजात बुखारी उत्तर कश्मीर के बारामुला जिले के क्रीरी तहसील के रहने वाले थे, जबकि उनके दोनों सुरक्षाकर्मी कुपवाड़ा जिले केे एक ही इलाके करनाह के रहने वाले थे. इनकी हत्या का संदेह आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा पर है.
शुजात बुखारी निर्भीक और मूल्यों की बात करने वाले पत्रकार थे, जो कश्मीर में अमन-चैन के लिए प्रयासरत थे और यह बात आतंकियों को नागवार थी. शुजात की हत्या की उस समय की गयी जब वे एक इफ्तार पार्टी में शामिल होने जा रहे थे. वे अपने माता-पिता,पत्नी और दो छोटे बच्चों एक बेटा व एक बेटी के साथ रहते थे. उनके एक भाई राज्य की महबूबा मुफ्ती सरकार में मंत्री हैं.
शुजात बुखारी राइजिंग कश्मीर के संपादक बनने से पहले द हिंदू अखबार के जम्मू कश्मीर संवाददाता व ब्यूरो चीफ थे. उन्होंने इस रूप में लगभग 15 साल काम किया था. शुजात कश्मीर मीडिया हाउस द्वारा प्रकाशित किए जाने वाले अंग्रेजी अखबार द राइजिंग कश्मीर के अलावा, उर्दू डेली बुलंद कश्मीर और कश्मीर डेली संगरमल के संपादक भी थे.
#GlobalEditorsSummit 2018 #Lisbon pic.twitter.com/U4VyrSxrMU
— Shujaat Bukhari (@bukharishujaat) May 31, 2018
शुजात की पहचान दुनिया के बौद्धिक जगत में घाटी के हालात के विशेषज्ञ के रूप में थी और घाटी की परिस्थितियों की बेहतर समझ के कारण उन्हें कश्मीर मुद्दे पर दुनिया भर के प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों के लिए लिखने का मौका मिलता था. वे अदबी मरकज कमराज के अध्यक्ष भी थे. यह घाटी में संस्कृति व साहित्य के लिए काम करने वाली सबसे पुरानी व प्रतिष्ठित संस्था है. शुजात बुखारी स्थानीय भाषाओं के संरक्षण के लिए भी अभियान चलाते थे.
शुजात बुखारी ने मनिला यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में मास्टर डिग्री हासिल किया था. वे सिंगापुर के एशियन सेंटर ऑफ जर्नलिज्म के फेलो भी थे. उन्हें वर्ल्ड प्रेस इन्स्टीट्यूट, यूएसए से और सिंगापुर स्थित एशियन सेंटर ऑफ जर्नलिज्म से भी फेलोशिप मिल चुका था. शुजात बुखारी अमेरिका के हवाई स्थित ईस्ट वेस्ट सेंटरके फेलोभी थे.
शुजात की हत्याकरनेकापूर्व में तीन बार प्रयास हुआ था. एक बार तो वेबंदूकजाम रहने की वजह से बचगये थे. इसके बावजूदउनकीनिर्भीकता कम नहीं हुई. 2000मेंउनपरहुए आतंकी हमले के बाद वे सुरक्षा के साथ रहते थे.उनकीपत्रकारिताकेकारण कई बारराइजिंगकश्मीरकोसरकारके सेंसरशिप का सामना भी करना पड़ा. वे मानवाधिकारों की रक्षा के पक्षधर थे.
शुजात बुखारी भारत पाकिस्तान के साथ ट्रैक – 2 वार्ता के डेलिगेशन के सदस्य थे. ट्रैक – 2 वार्ता उसे कहते हैं जो सरकार व अधिकारियों से इतर कूटनीतिक रूप से दो पक्षों के बीच की जाती है. 2017 में इसके लिए वे दुबई में हुई वार्ता में शामिल भी हुए थे.
यह संयोग ही है कि जिस दिन वे आतंकियों की गोली के शिकार हुए उस दिन मीडिया में कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट का मामला गर्म था. यूएन की रिपोर्ट में कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन के लिए भारत-पाकिस्तान को जिम्मेवार बताया गया था. बुखारी ने यह रिपोर्ट अपने ट्विटर पर डाली थी, जिसके लिए उन्हें दिल्ली बेस्ड पत्रकारों की आलोचना झेलनी पड़ी. हालांकि, बुखारी भारत के इस पर कड़ी आपत्ति वाली खबर को रि ट्वीट किया. वे लिस्बन में वर्ल्ड एडिटर सम्मिट में पिछले महीने शामिल होने गये थे और इसकी तसवीर ही उनके ट्विटर हैंडल पर पीन की हुई है.