नयी दिल्ली : जलियांवाला बाग कांड जैसी हिंसक घटना के पीछे के अमर संदेश को याद करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कहा कि हिंसा और क्रूरता से कभी किसी समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता. जीत हमेशा शांति और अहिंसा की होती है, त्याग और बलिदान की होती है.
मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में जलियांवाला बाग हत्याकांड को याद करते हुए मोदी ने कहा, ‘भारत की आजादी का संघर्ष बहुत लंबा है, बहुत व्यापक है, बहुत गहरा है, अनगिनत शहादतों से भरा हुआ है. पंजाब से जुड़ा एक और इतिहास है. 2019 में जलियांवाला बाग की उस भयावह घटना के भी 100 साल पूरे हो रहे हैं जिसने पूरी मानवता को शर्मसार कर दिया था.’ उन्होंने कहा, ‘13 अप्रैल, 1919 का वो काला दिन कौन भूल सकता है जब शक्ति का दुरुपयोग करते हुए क्रूरता की सारी हदें पारकर निर्दोष, निहत्थे और मासूम लोगों पर गोलियां चलायी गयी थीं. इस घटना के 100 वर्ष पूरे होनेवाले हैं. इसे हम कैसे स्मरण करें, हम सब इस पर सोच सकते हैं, लेकिन इस घटना ने जो अमर संदेश दिया, उसे हम हमेशा याद रखें. ये हिंसा और क्रूरता से कभी किसी समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता. जीत हमेशा शांति और अहिंसा की होती है, त्याग और बलिदान की होती है.
‘हिंसा से अहिंसा की ओर जाते हुए मोदी ने संत कबीर और गुरु नानक तथा उनके उपदेशों का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा, ‘सच्चा पीर संत वही है जो दूसरो की पीड़ा को जानता और समझता है, जो दूसरे के दुख को नहीं जानते वे निष्ठुर हैं. कबीरदास जी ने सामाजिक समरसता पर विशेष जोर दिया था. वे अपने समय से बहुत आगे सोचते थे.’ उन्होंने करीब का दोहा भी पढ़ा-‘जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय।। यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय.’ कबीर और नानक हमेशा जातिवाद के खिलाफ रहे यह रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि कबीर कहते हैं ‘जाति न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान। गुरु नानक के बारे में वह कहते हैं, ‘जगतगुरु गुरु नानक देव ने कोटि-कोटि लोगों को सन्मार्ग दिखाया, सदियों से प्रेरणा देते रहे. गुरु नानक देव ने समाज में जातिगत भेदभाव को खत्म करने और पूरे मानवजाति को एक मानते हुए उन्हें गले लगाने की शिक्षा दी.’
उन्होंने कहा, ‘2019 में गुरु नानक देव जी का 550वां प्रकाश पर्व मनाया जायेगा. मैं चाहता हूं हम सब लोग उत्साह और उमंग के साथ इससे जुड़ें. इस प्रकाश पर्व को प्रेरणा पर्व मनायें.’ अपनी आगामी मगहर यात्रा का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि कबीर ने इस धारणा को तोड़ा कि मगहर में देह त्याग करनेवाले स्वर्ग नहीं जाते. यह सवाल करते हुए कि क्या आप जानते हैं कि कबीर मगहर क्यों गये थे. उन्होंने कहा, ‘उस समय एक धारणा थी कि मगहर में जिसकी मृत्यु होती है, वह स्वर्ग नहीं जाता. इसके उलट काशी में जो शरीर त्याग करता है, वो स्वर्ग जाता है. मगहर को अपवित्र माना जाता था, लेकिन संत कबीरदास इस पर विश्वास नहीं करते थे. अपने समय की कुरीतियों और अंधविश्वासों को तोड़ने के लिए वह मगहर गये और वहीं समाधि ली.’
‘मन की बात’ में मोदी ने भारतीय जन संघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की उपलब्धियों का भी जिक्र किया. छह जुलाई को उनके जन्मदिन से पहले मोदी ने कहा, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी शिक्षा, प्रशासन और संसदीय मामलों सहित विभिन्न क्षेत्रों से करीब से जुड़े रहे. वह महज 33 वर्ष की आयु में कोलकाता विश्वविद्यालय के सबसे कम उम्र के कुलपति बने. उन्होंने कहा, ‘सिर्फ इतना ही नहीं 1937 में डॉ मुखर्जी के निमंत्रण पर श्री गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने कोलकाता विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह को बांग्ला भाषा में संबोधित किया था. अंग्रेजों के जमाने में बांग्ला में दीक्षांत समारोह को संबोधित करने का यह पहला अवसर था.’ मोदी ने कहा, ‘डॉ मुखर्जी भारत के पहले उद्योग मंत्री रहे. उन्होंने भारत का औद्योगिक विकास का मज़बूत शिलान्यास किया था, मजबूत नींव तैयार की, एक मजबूत मंच तैयार किया था. 1948 में आयी स्वतंत्र भारत की पहली औद्योगिक नीति उनके विचारों और दृष्टिकोण की छाप लेकर के आयी थी.’ उन्होंने कहा, ‘डॉ मुखर्जी का सपना था भारत हर क्षेत्र में औद्योगिक रूप से आत्मनिर्भर हो, कुशल और समृद्ध हो. वे चाहते थे कि भारत बड़े उद्योगों को विकसित करे और साथ ही लघु, कुटीर एवं मध्यम उपक्रम, हथकरघा, वस्त्र और कुटीर उद्योग पर भी पूरा ध्यान दे.’
मोदी ने कहा, ‘डॉ मुखर्जी का भारत के रक्षा उत्पादन के स्वदेशीकरण पर भी विशेष जोर था. चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स फैक्टरी, हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट फैक्टरी, सिंदरी का खाद कारखाना और दामोदर घाटी निगम, ये चार सबसे सफल और बड़ी परियोजना थी. नदी घाटी परियोजना की स्थापना में भी उनका बहुत बड़ा योगदान था.’ प्रधानमंत्री ने कहा, ‘आइये! हम हमेशा डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के एकता के संदेश को याद रखें, सद्भाव और भाईचारे की भावना के साथ, भारत की प्रगति के लिए जी-जान से जुटे रहें.’