अक्टूबर से चांद पर दुनिया को 250 साल तक रोशन वाली चीज खोजेगा इसरो, जानें क्या…?
नयी दिल्ली : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अक्टूबर में एक ऐसा रोवर और जांच (प्रोब) मिशन लॉन्च करने की तैयारी में जुटा है, जिससे चांद की अछूती सतर पर मिट्टी और पानी के नमूनों को एकत्र करेगा और फिर इसे विस्तृत विश्लेषण और अनुसंधान के लिए वापस लाया जायेगा. वैज्ञानिकों के हवाले से मीडिया […]
नयी दिल्ली : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अक्टूबर में एक ऐसा रोवर और जांच (प्रोब) मिशन लॉन्च करने की तैयारी में जुटा है, जिससे चांद की अछूती सतर पर मिट्टी और पानी के नमूनों को एकत्र करेगा और फिर इसे विस्तृत विश्लेषण और अनुसंधान के लिए वापस लाया जायेगा. वैज्ञानिकों के हवाले से मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, यदि इसरो अपने इस मिशन में सफल हो जाता है, तो चांद पर मिलने वाले हीलियम-3 के खनन का रास्ता साफ हो जायेगा और यदि ऐसा हो जाता है, तो आने वाले करीब 250 सालों तक दुनिया को बिजली के उत्पादन के लिए प्रचूर मात्रा में हीलियम-3 नामक पदार्थ मिलता रहेगा.
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मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, करीब एक साल पहले चंद्रमा पर हीलियम खोजने की खबर को लेकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) सुर्खियों में आया था. उस समय यह चर्चा जोरों पर थी कि इसरो भारत की ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए चंद्रमा पर हीलियम-3 की तालाश करेगा. हालांकि, बाद में इसरो ने इसका खंडन किया था, लेकिन एक बार फिर यह मामला सुर्खियों में है. इसरो अक्टूबर में एक रोवर और जांच (प्रोब) मिशन लॉन्च करेगा, जो चांद की अछूती सतह पर मिट्टी और पानी के नमूनों को एकत्र करेगा, फिर इसे विस्तृत विश्लेषण और अनुसंधान के लिए वापस लाया जायेगा.
सबसे साफ और कीमती ईंधन है हीलियम-3
वैज्ञानिकों के अनुसार, हीलियम-3 कथित तौर पर ‘स्वच्छतर’ परमाणु संलयन के लिए एक कीमती ईंधन है. ऐसे में इसरो ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए चंद्रमा पर हीलियम-3 के खनन संबंधी संभावना तलाशने जा रहा है. इसमें कोई शक नहीं कि यदि हीलियम-3 का पर्याप्त मात्रा में खनन और किफायती दरों पर परिवहन किया जा सके, तो यह फ्यूजन एक आकर्षक विकल्प भी हो सकता है.
दुनिया के कई संगठन दिखा रहे हैं हीलियम-3 के खनन में दिलचस्पी
चंद्रमा पर हीलियम-3 दुनियाभर के कई निजी और सार्वजनिक अंतरिक्ष संगठन भी चांद पर खनन को लेकर दिलचस्पी दिखा रहे हैं, जो एक उपयुक्त रिएक्टर बनने तक हीलियम-3 और चांद पर मौजूद पानी के भंडारण के लिए खनन संबधी संभावना तलाश रहे हैं. हालांकि, जानकार कहते हैं कि दुनियाभर में कहीं भी ऊर्जा के उत्पादन में हीलियम-3 के इस्तेमाल की कोई तकनीक मौजूद नहीं है.
जो देश पहले करेगा हीलियम-3 की खोज, उसका होगा चांद पर वर्चस्व
इसरो अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव डॉक्टर के सिवन का कहना है कि जिस किसी भी देश में चांद से इस स्रोत को लाने की क्षमता होगी, वे ही इस प्रक्रिया पर अपना वर्चस्व कायम रख सकेंगे. उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि भारत इस प्रक्रिया का हिस्सा ही न हो, बल्कि इसका नेतृत्व भी करे, हम पूरी तरह से इस मिशन के लिए तैयार हैं. भारत का यह मिशन अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के इसी तरह के चलाए जा रहे अभियान से काफी किफायती है, जिसमें लगभग 800 करोड़ की लागत आयेगी.
चांद पर 10 लाख मिट्रिक टन हीलियम-3 होने का अनुमान
नासा के सलाहकार मंडल के सदस्य गेराल्ड कुसिंसकी की मानें, तो चांद पर 10 लाख मिट्रिक टन हीलियम-3 उपलब्ध है, जिसका एक चौथाई हिस्सा धरती पर लाया जा सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि चांद पर हीलियम-3 प्रचुर मात्रा में है. इससे 250 सालों तक वैश्विक ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सकता है. असीमित नाभिकीय ऊर्जा से परिपूर्ण हीलियम का यह आइसोटोप पृथ्वी पर सीमित मात्रा में उपलब्ध है, क्योंकि यह सूर्य के द्वारा उसकी सौर वायु में उत्सर्जित होता है.
हीलियम की क्या है खासियत
हीलियम का यह आइसोटोप पृथ्वी पर उपलब्ध नहीं है, क्योंकि यह सूर्य के द्वारा उसकी सौर वायु में उत्सर्जित होता है. हमारा चुंबकीय क्षेत्र इसे पृथ्वी की सतह तक पहुंचने से रोकता है, चंद्रमा की ऐसी कोई ढाल नहीं है. इसलिए माना जाता है कि इसकी सतह सदियों से हीलियम-3 अवशोषित कर रही है. चंद्रमा पर हीलियम-3 होने की पुष्टि विख्यात भूविज्ञानी हैरिसन श्मिट ने 1972 में अपोलो 17 मिशन से चांद से लौटने के बाद की थी. हीलियम-3 नाभकीय संलयन के लिए एक मूल्यवान और स्वच्छतर ईंधन है, जिसे धरती पर प्राप्त नहीं किया जा सका है.