नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय द्वारा दिल्ली के उपराज्यपाल को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार नहीं होने का फैसला सुनाये जाने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कैबिनेट की बैठक बुलायी.
बैठक में उन्होंने अफसरों को राशन की घरों पर आपूर्ति और सीसीटीवी कैमरे लगाने जैसी परियोजनाओं की रफ्तार तेज करने का निर्देश दिया. दिल्ली सरकार ने नौकरशाहों के तबादलों और तैनातियों के लिए भी एक नयी प्रणाली शुरू की जिसके लिए मंजूरी देने का अधिकार मुख्यमंत्री केजरीवाल को दिया गया है.
उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने करीब आठ मिनट तक चली मंत्रिमंडल की बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अधिकारियों को उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार काम करने का निर्देश दिया गया है.
सिसोदिया ने कहा कि केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच सत्ता संघर्ष पर शीर्ष अदालत के फैसले के बाद आप सरकार को अपने हर निर्णय को उपराज्यपाल अनिल बैजल से मंजूर कराने की जरूरत नहीं है.
इसे भी पढ़ें…
AAP ने SC के फैसले को ‘बड़ी जीत’ बताया, भाजपा ने दी पूर्ण राज्य का हठ छोड़ने नसीहत
उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता लेकिन यह भी कहा कि उपराज्यपाल को स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार नहीं है. केजरीवाल ने बैठक के बाद ट्वीट किया , दिल्ली सरकार के सभी अधिकारियों को निर्देश दिया कि माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार कामकाज करें.
अब राशन की घरों पर आपूर्ति और सीसीटीवी लगाने के प्रस्तावों पर भी तेजी लाने का निर्देश दिया है. उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद दिल्ली सरकार ने नौकरशाहों के तबादलों और तैनातियों के लिए भी एक नयी प्रणाली शुरू की जिसके लिए मंजूरी देने का अधिकार मुख्यमंत्री केजरीवाल को दिया गया है.
अभी तक आईएएस और दानिक्स (दिल्ली , अंडमान निकोबार द्वीपसमूह सिविल सेवा) अधिकारियों के तबादलों और तैनातियों के लिए मंजूरी देने का अधिकार उपराज्यपाल के पास रहा है. हालांकि दिल्ली सरकार में कार्यरत वरिष्ठ नौकरशाहों ने दावा किया कि ‘ सेवा संबंधी मामले ‘ अब भी उपराज्यपाल के कार्यालय के अधिकार क्षेत्र में आते हैं क्योंकि दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश है.
एक शीर्ष अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा कि उच्चतम न्यायालय की यथोचित नियमित पीठ सेवा संबंधी मामलों और अन्य मुद्दों पर अंतिम निर्णय करेगी.
एक अन्य अधिकारी ने दावा किया कि शीर्ष अदालत ने गृह मंत्रालय की मई , 2015 की अधिसूचना को रद्द नहीं किया है जिसके मुताबिक सेवा संबंधी मामले उपराज्यपाल के अधीन आते हैं.