#InternationalTigerDay : ‘टाइगर स्टेट’ बनेगा शिवराज का मध्यप्रदेश!
भोपाल : मध्यप्रदेश को एक बार फिर टाइगर स्टेट का दर्जा मिल सकता है. घने जंगलों और उनमें बसे बाघों के लिए इतराने वाले मध्यप्रदेश से चार बरस पहले यह दर्जा छिन गया था. तब यह रुतबा कर्नाटक को मिल गया था. मध्यप्रदेश सरकार के एक अनुसंधान संस्थान के आकलन के अनुसार, पिछले कुछ सालों […]
भोपाल : मध्यप्रदेश को एक बार फिर टाइगर स्टेट का दर्जा मिल सकता है. घने जंगलों और उनमें बसे बाघों के लिए इतराने वाले मध्यप्रदेश से चार बरस पहले यह दर्जा छिन गया था. तब यह रुतबा कर्नाटक को मिल गया था. मध्यप्रदेश सरकार के एक अनुसंधान संस्थान के आकलन के अनुसार, पिछले कुछ सालों में बाघों के पुनर्वास के लिए किये कार्यों के चलते प्रदेश में बाघों की संख्या में अच्छा-खासा इजाफा होने की उम्मीद है.
एक समय था, जब देश में मध्यप्रदेश की पहचान घने जंगलों और उसमें रहने वाले बाघों के कारण होती थी, लेकिन अब बाघों की संख्या के लिहाज से वह कर्नाटक और उत्तराखंड के बाद तीसरे स्थान पर है. यही वजह है कि वर्ष 2014 में कर्नाटक को ‘टाइगर स्टेट’ का दर्जा दिया गया.
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मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) शहबाज अहमद ने बताया, ‘राज्य वन अनुसंधान संस्थान (एसएफआरआइ) के ताजा आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश के वनों में बाघों की मौजूदगी वाली जंगल की बीटों (वन के छोटे क्षेत्र) की संख्या में वर्ष 2014 की तुलना में दोगुनी बढ़ोत्तरी हुई है.’ अहमद ने कहा कि इन बीटों की तादाद बढ़ने से, अगली गणना में बाघों की संख्या खासी बढ़ने की उम्मीद है.
मालूम हो किकेंद्र सरकार की संस्था वाइल्डलाइफ आॅफ इंडिया हर चार साल में देश में बाघों की गणना करती है. वन विभाग के उप वन संरक्षक (वन्यजीव) रजनीश सिंह ने बताया, ‘देश में बाघों की गणना लगभग दो साल तक चलने वाली एक लंबी प्रक्रिया है. यह तीन चरणों में पूरी होती है. पहला चरण इस वर्ष फरवरी-मार्च में पूरा हुआ है. हालांकि, इधर बाघों की संख्या का आकलन करने वाली मध्यप्रदेश की संस्था एसएफआरआइ ने प्रदेश में बाघों की संख्या में उल्लेखनीय सकारात्मक बदलाव दर्ज किये हैं.’
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उन्होंनेबताया कि पहले चरण के आकलन के बाद एसएफआरआइ द्वारा दिये गये आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में बाघों की मौजूदगी वाली बीटों की संख्या वर्ष 2018 में बढ़कर 1432 हो गयी है, जबकि वर्ष 2014 में यह 717 ही थी. पहले चरण का आकलन प्रारंभिक स्तर पर उपलब्ध साक्ष्य और अन्य आधार पर किया जाता है.’
उन्होंने बताया कि पिछले 7-8 वर्षों के मुकाबले बाघों द्वारा मवेशियों के शिकार के मामलों में भी तीन गुना बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी है. उन्होंने बताया, ‘टाइगर रिजर्व के बफर जोन में मवेशी बाघ का पसंदीदा शिकार होतेहैं. वर्ष 2009-10 में जहां 1,000 मवेशियों का शिकार बाघों ने किया, वहीं वर्ष 2017-18 में यह शिकार बढ़कर 3,000 हो गये.’
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उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार मवेशी का शिकार होने पर मवेशी के मालिक को मुआवजा देती है. इन सब उपलब्ध तथ्यों से बाघों की संख्या में इजाफा होने की उम्मीद है. वर्ष 2014 की देश में हुई बाघों की अंतिम गणना के मुताबिक, मध्यप्रदेश में 308 बाघ हैं, जबकि कर्नाटक 406 और उत्तराखंड 340 बाघों की संख्या के साथ देश में क्रमश: पहले और दूसरे पायदान पर हैं.
हालांकि, सिंह ने दावा किया कि वर्ष 2014 की गणना के दौरान कर्नाटक और उत्तराखंड की तुलना में मध्यप्रदेश में कैमरे में अधिक बाघ पकड़े गये. उन्होंने बताया कि वर्ष 2014 की बाघों की गणना में मध्यप्रदेश के जंगलों में 286 बाघ कैमरे में पकड़े गये, जबकि कर्नाटक और उत्तराखंड में क्रमश: 260 और 276 बाघ कैमरे की जद में आये. लेकिन, कर्नाटक और उत्तराखंड अंतिम गणना में आगे निकल गये.
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सिंह ने कहा कि जंगलों से बाघों की मौत की बुरी खबरें भी आती रहती हैं. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 में देश में 98 बाघों की मौत दर्ज की गयी. इनमें से 26 बाघ मध्यप्रदेश के थे. मध्यप्रदेश वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 में प्रदेश में 33 बाघों की मौत विभिन्न कारणों से हुई.