लखनऊ : अटल बिहारी वाजपेयी और उनके पिता कभी एक ही कक्षा में पढ़ते थे. बात हैरत की है और उस समय के शिक्षकों और अन्य छात्रों के लिए भी ये कौतूहल का विषय था.
कानपुर के डीएवी काॅलेज के प्राध्यापक अमित कुमार श्रीवास्तव ने 2002-03 के दौरान काॅलेज की पत्रिका में वाजपेयी के एक लेख का हवाला देते हुए बताया, शुरुआत में अटल जी और उनके पिता एक ही सेक्शन में थे. वे विधि अध्ययन कर रहे थे. बाद में हालांकि सेक्शन बदल दिया गया.
अटल जी ने पत्रिका में लिखा था कि क्या आपने कभी ऐसा काॅलेज देखा या सुना है, जहां पिता पुत्र दोनों ही साथ पढ़ते हों और वह भी एक ही कक्षा में. वाजपेयी ने आगे लिखा है कि यह 1945-46 की बात है.
उन्होंने ग्वालियर के विक्टोरिया काॅलेज से बीए किया और अपने भविष्य को लेकर वह चिन्तित थे. सवाल यह था कि उच्च शिक्षा ली जाए या नहीं. उससे भी बड़ा सवाल था कि अगर आगे पढूं तो कैसे? पिता जी सरकारी सेवा से रिटायर हो चुके थे. दो बहनें शादी के लायक हो गयी थीं.
स्नातकोत्तर के लिए संसाधन कहां से जुटाउंगा. अटल जी लिखते हैं कि एक समय लगा कि भविष्य के सभी दरवाजे लगभग बंद हैं. लेकिन उसी समय ईश्वर ने एक खिड़की खोली.
ग्वालियर के महाराजा श्रीमंत जीवाजी राव सिंधिया मुझे छात्र के रूप में अच्छी तरह जानते थे. उन्होंने मुझे 75 रुपये मासिक छात्रवृत्ति देने का फैसला किया, जो आज (2002-03) के 200 रुपये के बराबर था.
उन्होंने लेख में लिखा था कि मित्रों के बधाई संदेश मिलने लगे. पिता के चेहरे से तनाव की लकीरें धीरे-धीरे समाप्त होने लगीं. परिवार ने राहत की सांस ली. मैं भी भविष्य के सुखमय सपनों में डूब गया.
वाजपेयी ने लेख में लिखा कि अचानक उनके पिता ने उच्च शिक्षा ग्रहण करने का फैसला किया. हम सभी आश्चर्यचकित रह गये. वह शिक्षा के क्षेत्र में 30 वर्ष तक योगदान के बाद रिटायर हुए थे.
जब देखा कि मैं कानपुर से एमए और विधि की पढ़ाई करने जा रहा हूं तो पिता ने भी मेरे साथ कानपुर जाकर विधि की पढ़ाई करने का फैसला किया. खबर पूरे काॅलेज में फैल गयी.
हाॅस्टल में, जहां हम पिता-पुत्र रहते थे, छात्रों की भीड़ हमें देखने आती थी. पूर्व प्रधानमंत्री ने लिखा था कि डीएवी काॅलेज में बिताये गये दो वर्ष कभी भुलाये नहीं जा सकते.