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केरल बाढ़ : यूएइ से 700 करोड़ रुपये की मदद स्वीकार करने से भारत को क्यों है परहेज?

नयी दिल्ली : भारत के दक्षिणी राज्य केरल में आयी अबतक की सबसे बड़ी बाढ़ के बाद देश के साथ विदेश से भी मदद के हाथ बढ़े हैं. संयुक्त अरब अमीरात (यूएइ) ने केरल बाढ़ के लिए 700 करोड़ रुपये मदद की पेशकश की. केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन के मुताबिक, ऐसा प्रस्ताव वहां के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 22, 2018 9:47 AM

नयी दिल्ली : भारत के दक्षिणी राज्य केरल में आयी अबतक की सबसे बड़ी बाढ़ के बाद देश के साथ विदेश से भी मदद के हाथ बढ़े हैं. संयुक्त अरब अमीरात (यूएइ) ने केरल बाढ़ के लिए 700 करोड़ रुपये मदद की पेशकश की. केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन के मुताबिक, ऐसा प्रस्ताव वहां के शासक ने दिया है, जिस पर आधिकारिक रूप से भारत सरकार या विदेश मंत्रालय की कोई प्रतिक्रिया नहीं है. हालांकि सरकार ने यह संकेत दिया है कि वह इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगी और देश अपने संसाधनों से केरल के पुनर्निमाण के लिए सक्षम है. विजयन ने भी केंद्र से नया केरल बनाने की मांग की है और अपनी ओर से यूएइ से मिलने वाली इतनी बड़ी मदद को स्वीकार करने के लिए कोई दबाव केंद्र पर बनाने का संकेत नहीं दिया है.

भारत इस मामले में अपनी पुरानी नीति पर ही चल रहा है. दिसंबर 2004 में आयी सूनामी से भी भारत केदक्षिणी तटीय इलाकों में व्यापक क्षति हुई थी, लेकिन उस वक्त भी भारत की डॉ मनमोहन सिंह सरकार ने विदेश की मदद अस्वीकार कर दी थी. उस समय अमेरिका में भारत के राजदूत रहे रोनेन सेन ने कहा था कि भारत ने सूनामी प्रभावित इलाकों के लिए मदद के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है.

फिर उत्तराखंड में 2013 में आयी भयंकर प्राकृतिक आपदा व बाढ़ के दौरान भी भारत नेविदेशी मदद के प्रस्ताव को अस्वीकार किया था. उस दौरान विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैय्यद अकबरुद्दीन (वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में भारत के विशेष प्रतिनिधि) ने प्रस्तावाें को खारिज किया था. उस समय सरकार ने यह संकेत दिया था कि भारत अपने संसाधनों से एेसी स्थिति से निबटने में सक्षम है. भारत में एक मुहावरा है कि सरकारें बदल जाती हैं नीतियां नहीं. भारत संस्थानिक रूप से अन्य विकासशील देशों की तुलना में अधिक मजबूत है, इस वजह से बहुत हद तक अगली सरकारें भी पूर्व की सरकारों की मौलिक नीतियों को अपनाती हैं.

कूटनीतिक जानकारों का कहना है कि विदेश सहायता स्वीकार करने या अस्वीकार करने को लेकर कोई हार्ड एंड फास्ट रूल नहीं है.इससे संबंधित निर्णय कैबिनेट की सुरक्षा मामलों की समिति लेती है. प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए डॉ मनमोहन सिंह ने एक बार कहा था कि भारत अपने संसाधनों के बल पर चुनौतियों से निबटने में सक्षम है.

विदेश मंत्रालय ही इस मामले में अधिकारिक रूप से कुछ कहने के लिए उत्तरदायी है, लेकिन उसने अबतक कोई बयान नहीं दिया है. संयुक्त अरब अमीरात के अलावा सऊदी अरब, कतर व मालदीव ने भी भारत को केरल बाढ़ से निबटने के लिए मदद की पेशकश की है.

केरल में बाढ़ से एक सप्ताह से कुछ अधिक समय में सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 223 लोगों की मौत हुई है. करीब 22 हजार करोड़ रुपये की क्षति हुई. बाढ़ के कारण 10 हजार किलोमीटर सड़कों को नुकसान हुआ है, जिसका या तो पुनर्निमाण कराना होगा या मरम्मत करानी होगी. विभिन्न राज्य केरल की मदद के लिए आगे आये हैं.

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