कुलदीप नैयर लौट जाना चाहते थे पाकिस्तान, मजबूरी में बन गये पत्रकार, जानें जीवन यात्रा

नयी दिल्ली : प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैयरका बुधवार देर रात दिल्ली के एक निजी अस्पताल में 95 साल की उम्र में निधन हो गया. उनके निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ काेविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह सहित विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी. प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें उनके निर्भीक विचारों के लिए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 23, 2018 1:53 PM

नयी दिल्ली : प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैयरका बुधवार देर रात दिल्ली के एक निजी अस्पताल में 95 साल की उम्र में निधन हो गया. उनके निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ काेविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह सहित विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी. प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें उनके निर्भीक विचारों के लिए हमेशा याद किया जाएगा. नैयर ने भारत बंटवारा व नये आजाद बनते भारत को करीब से देखा. पिछले 71 साल में एक पत्रकार के रूप में उन्होंने आजाद भारत को संभवत: सबसे करीब से देखा और अपने कलम से आलेख व पुस्तक के रूप में उसका विवरण पेश किया.

कुलदीप नैयर का जन्म 14 अगस्त 1923 को सियालकोट में हुआ था, जो अब पाकिस्तानी पंजाब में पड़ता है. नैयर मजबूरन पत्रकार बने. विभाजन के बाद हालात इतने बिगड़ गये कि नैयर के परिवार को अपना शहर सियालकोट छोड़ना पड़ा. नैयर अमृतसर आ गये और मन में यह इच्छा रही कि जब हालात सुधरेंगे तो फिर अपने शहर लौट जाएंगे. लेकिन, हालात कभी सुधरे ही नहीं. नैयर एलएलबी थे और चाहते थे कि वे अपने गृहनगर में रह कर वकालत करें. अपनी जमीन, अपने शहर से यह प्यार स्वाभाविक था, लेकिन जब धर्म के आधार पर ही दो मुल्क बने हों तो वहां रहना कितना सहज था?

नैयर को एक उर्दू अखबार अंजाम के मालिक ने हिंदू होने व उर्दू जानने के कारण काम करने का मौका दिया और शुरुआत में ही उन्हें सह संपादक जैसा पद बस इस वजह से दिया ताकि इससे वे रूतबे वाले लगें और पुनर्वास मंत्रालय में अासानी से आ-जा सकें और पाकिस्तान में उनके भाई की संपत्ति दिलाने में मदद करें. बहरहाल, मशहूर शायद हसरत मोहानी ने उन्हें अंग्रेजी अखबारों में किस्मत अजमाने की सलाह दी. मोहानी की नजर में हिंदुस्तान में उर्दू का भविष्य नहीं था. उनकी सलाह केबाद नैयर ने अमेरिका जाने का निर्णय लिया.

नैयर ने खुद लिखा है – उन दिनों वीजा मिलना आसान था और समुद्री जहाज का सफर आसान था. अमेरिका के शिकागो के निकट उन्होंने ईवान्सटन स्थित नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में एमएससी की डिग्री ली और स्वेदश लौट आये. अमेरिका में अपना खर्च चलाने के लिए उन्होंने खिड़कियों की धुलाई से लेकर लॉन की कटाई व भोजन परोसने तक का काम किया.

बाद में वे भारत लौटकरभारत सरकारकेसूचना विभाग पीआइबी से जुड़ गये और अपने समय के बड़े नेताओं गोविंदवल्लभ पंत व लालबहादुर शास्त्री के सूचना अधिकारी के रूप में काम किया. वे पंत के निधन के बाद शास्त्री से जुड़े थे और ताशकंद में शास्त्री के निधन के बाद वे सक्रिय पत्रकारिता में आ गये, जहां उन्होंने पर्दे के पीछे छीपी खबरों की तलाश में दो दशक लगाये. इमरजेंसी के दौर में इंदिरा गांधी ने उन्हें बिना मुकदमा चलाये हिरासत में रखा था. नैयर ने इसकी वजह इंदिरा को लिखे उस पत्र को बताया था जिसमें उन्होंने कहा था कि सेंसरशिप लोकतंत्र के खिलाफ है.

नैयर ने कई किताबें लिखी हैं. उन्होंने द डे लुक्स ओल्ड नाम से अपनी आत्मकथा भी लिखी है. उन्होंने बिटवीन द लाइंस, डिस्टेंट नेवर : ए टेल ऑफ द सब कान्टिनेंट, इंडिया ऑफ्टर नेहरू, वाल एट वाघा, इंडिया पाकिस्तान रिलेशनशिप, इंडिया हाउस जैसी पुस्तकें लिखी.

प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैयर का 95 वर्ष की उम्र में निधन, राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री ने जताया दु:ख

जर्मनी में राहुल के भाषण पर भाजपा का पलटवार, आप पढ़कर नहीं आते…

Next Article

Exit mobile version