नेशनल कंटेंट सेल
-कर्नाटक में भी दिखा बारिश और बाढ़ का कहर, पूरा गांव हो गया तबाह
देश के दक्षिणी प्रांत केरल में आयी बाढ़ ने तबाही का ऐसा मंजर दिखाया कि सरकार तक को इसे देश की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा घोषित करनी पड़ी. इसमें दस लाख से भी ज्यादा लोग विस्थापित हुए. हजारों की संख्या में सेना के जवानों को वहां मदद के लिए भेजा गया. बचाव एवं राहत कार्य जोरों पर जारी है. लेकिन, इन सबके बीच कर्नाटक के एक गांव हेब्बेटाकेरी की ओर किसी का ध्यान नहीं गया. कुछ दिन पहले तक यह गांव खुशी व खुशहाल था. 500 लोगों के इस गांव में लगभग 100 घर थे. लेकिन, भारी बारिश और बाढ़ ने इस गांव से सबकुछ छीन लिया.
पूरा गांव ही तबाह और बर्बाद हो गया. आज स्थिति यह है कि गांव में सिर्फ एक शख्स रह गया है. 100 घरों में से सिर्फ 35 घर बचे हैं और उनमें से भी अधिकतर घर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गये हैं. गांव में बचे एकमात्र शख्स हैं सीए गनपति. बाढ़ के बारे बताते हुए वह कहते हैं कि गांव की सबसे बड़ी सड़क जहां दोनों तरफ दुकानें थीं. अब हर तरफ पानी में भीगा, सड़ा हुआ अनाज और दूसरा सामान बिखरा हुआ है. हर चीज कीचड़ से भरी है और हर तरफ ढेरों घास-फूस और दूसरा कचरा फैल गया है. बाढ़ की बेबसी गनपति के चेहरे पर साफ झलकती है. एक तरफ जहां केरल में लोगों की मदद को देश-विदेश से लोग आगे आ रहे हैं, वहीं हेब्बेटाकेरी में अब तक प्रशासनिक मदद भी नहीं पहुंच पाया है. गनपति को भी लोगों की मदद का इंतजार है.
पश्चिमी घाट पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील : विजयन ने सिफारिशों को पूरी तरह से लागू करने की वकालत करते हुए कहा कि मुख्य सुझाव पश्चिमी घाट को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र के रूप में संरक्षित करना था. पश्चिमी घाटों की रक्षा और संरक्षण संभव नहीं था क्योंकि हमें विकास की भी आवश्यकता है.
2011 में पेश हुई थी समिति की सिफारिश
एक पर्यावरणविद ने कहा है कि अगर सरकार ने पश्चिमी घाटों के संरक्षण संबंधी गाडगिल समिति की रिपोर्ट में की सिफारिशों को लागू करने के लिए पहल की होती तो केरल में बारिश और बाढ़ के कारण इतनी तबाही नहीं होती. राज्य जैव-विविधता बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष प्रो वीएस विजयन के अनुसार पारिस्थितिकी विशेषज्ञ माधव गाडगिल की रिपोर्ट में खनन पर रोक, पहाड़ी ढलानों पर सालाना खेती को हतोत्साहित करने और वहां फलदार वृक्ष लगाये जाने तथा क्षेत्र में निर्माण पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया गया था. उस समिति के सदस्य रहे विजयन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक वास्तविकता है और भारी वर्षा के कारण बाढ़ तथा सूखे की स्थिति भविष्य में भी बनेगी. उन्होंने कहा कि समिति की सिफारिशें 2011 में प्रस्तुत की गयी थीं और यदि सरकार ने इसे लागू करना शुरू कर दिया होता तो अभी जो नुकसान हुआ है, उसके 50 प्रतिशत से भी कम नुकसान होता.