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ऑनलाइन प्राथमिकी की जा सकती है दर्ज, गृह मंत्रालय ने विधि आयोग से पूछा

नयी दिल्ली : गृह मंत्रालय ने विधि आयोग से पूछा है कि क्या लोगों को अपने घर से ऑनलाइन प्राथमिकी या ई-एफआइआर दर्ज कराने की अनुमति दी जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट के नवंबर, 2013 के आदेश के अनुसार सीआरपीसी की धारा 154 के तहत अगर किसी संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है और ऐसी […]

नयी दिल्ली : गृह मंत्रालय ने विधि आयोग से पूछा है कि क्या लोगों को अपने घर से ऑनलाइन प्राथमिकी या ई-एफआइआर दर्ज कराने की अनुमति दी जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट के नवंबर, 2013 के आदेश के अनुसार सीआरपीसी की धारा 154 के तहत अगर किसी संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है और ऐसी स्थिति में प्रारंभिक जांच की अनुमति नहीं है, तो प्राथमिकी दर्ज किया जाना अनिवार्य है. विधि आयोग को मुद्दे पर विचार करने के दौरान कई सुझाव मिले हैं.

इन सुझावों में कहा गया है कि अगर सीआरपीसी में संशोधन करके लोगों को ऑनलाइन प्राथमिकी दर्ज कराने की अनुमति दी जाती है, तो इसका यह परिणाम हो सकता है कि कुछ लोग दूसरों की छवि धूमिल करने के लिए इस सुविधा का इस्तेमाल कर सकते हैं. विधि आयोग के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि हां, लोग प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए थाने जाना मुश्किल पाते हैं. लोगों के लिए घर से प्राथमिकी दर्ज कराना काफी आसान हो जायेगा. हालांकि, ज्यादातर लोगों को पुलिस के समक्ष झूठ बोलने में कठिनाई होती है. पुलिसकर्मी शिकायतकर्ता के आचरण को समझते हैं.

आयोग सिफारिश करेगा,तो ऑनलाइन होगा केस

नाम जाहिर नहीं किये जाने की शर्त पर पूर्व विधि सचिव ने कहा कि अगर विधि आयोग सिफारिश करता है, तो ऑनलाइन प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है. उसे कानूनी ढांचा मुहैया कराना होगा कि कैसे इसपर आगे बढ़ें. कानून के अनुसार, प्राथमिकी संज्ञेय अपराध के लिए अनिवार्य है, लेकिन उसे सुझाव देना होगा कि इसके दुरुपयोग को कैसे रोका जाये.

एक साल में 2.6 % बढ़ा अपराध

एनसीआरबी के अनुसार, 2016 में 48,31,515 संज्ञेय अपराध हुए. इसमें से 29,75,711 सीआरपीसी के तहत तथा 18,55, 804 विशेष एवं स्थानीय कानूनों के तहत अपराध हुए. 2015 की तुलना में इसमें 2.6% की वृद्धि हुई है.

धारा 154 में संशोधन पर मांगा गया है सुझाव

इसी साल जनवरी में डीजीपी/आइजीपी के सम्मेलन के दौरान यह सुझाव दिया गया कि सीआरपीसी की धारा 154 में संशोधन होना चाहिए, ताकि ऑनलाइन प्राथमिकी दर्ज किया जाना संभव हो सके. तब से विधि आयोग से अपराध कानूनों की उसके द्वारा की जा रही व्यापक समीक्षा के दौरान सुझाव पर विचार करने का अनुरोध करने का फैसला किया गया है.

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