भोपाल : कांग्रेस की वरिष्ठ नेता एवं राज्यसभा सदस्य कुमारी शैलजा ने मंगलवार को आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा नीत सरकार ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे में ‘देशहित’ एवं ‘देश की सुरक्षा’ को दांव में लगाकर एक निजी कंपनी को फायदा पहुंचाया. शैलजा ने यहां संवाददाताओं को बताया कि मोदी सरकार ने राफेल सौदे में ‘देशहित’ एवं ‘देश की सुरक्षा’ को दांव पर लगाने का अक्षम्य अपराध किया है.
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उन्होंने कहा कि 30,000 करोड़ रूपये का फायदा तो केवल एक निजी कंपनी को ही पहुंचाया है. उन्होंने मांग की कि राफेल घोटाला मामले की जांच तत्काल संयुक्त संसदीय समित (जेपीसी) को सौंपी जाये. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने बोफोर्स घोटाले की जांच जेपीसी से करायी थी, तो मोदी सरकार राफेल घोटाले की जांच करवाने से क्यों कतरा रही है.
शैलजा ने कहा कि भारतीय वायुसेना को कम से कम 126 ऑपरेशनल लड़ाकू विमानों की जरूरत है. कांग्रेस की वर्ष 2012 की तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा जारी ‘रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल’ का आधार यही है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने वायु सेना के लिए खरीदे जाने वाले लड़ाकू विमानों की संख्या 126 से घटाकर 36 कर दी. उन्होंने कहा कि लड़ाकू विमानों की संख्या घटाने के बारे में मोदी ने वायु सेना से परामर्श नहीं लिया.
शैलजा ने बताया कि अप्रैल, 2015 में मोदी ने दावा किया था कि उन्होंने 36 राफेल लड़ाकू विमानों की इमरजेंसी खरीद की है, लेकिन 36 राफेल विमानों में से पहला हवाई जहाज सितंबर, 2019 तक नहीं आयेगा. सारे 36 विमान वर्ष 2022 तक ही भारत पहुंचेंगे. यानी अप्रैल, 2015 में लड़ाकू विमान खरीदने का सौदा होने के आठ साल बाद ये विमान वायु सेना को मिलेंगे. फिर इमरजेंसी खरीद किस बात की.
शैलजा ने कहा कि मोदी ने 126 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के कांग्रेस सरकार के अंतरराष्ट्रीय टेंडर को खारिज कर दिया और नियमों को ताक पर रखकर बिना कोई टेंडर जारी किये 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का एकतरफा निर्णय ले डाला. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा 12 दिसंबर, 2012 को खुली अंतरराष्ट्रीय बोली के अनुसार प्रत्येक राफेल लड़ाकू विमान का मूल्य 526.10 करोड़ रूपये था. यानी 36 विमानों का मूल्य 18,940 करोड़ रुपये होता, लेकिन मोदी सरकार इस अंतरराष्ट्रीय सौदे को निरस्त कर 10 अप्रैल, 2015 को 36 राफेल लड़ाकू विमान 7.5 बिलियन यूरो (1670.70 करोड़ रुपये प्रति विमान) में खरीदेगी, यानी 36 विमानों के लिए 60,145 करोड़ रुपये.
उन्होंने कहा कि भारत सरकार की कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने 13 मार्च 2014 को राफेल डसॉल्ट एविएशन के साथ 36,000 करोड़ रुपये के ‘ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट’ के लिए वर्क शेयर एग्रीमेंट किया था. इसके बाद भी एचएएल से यह ‘ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट’ छीनकर निजी कंपनी रिलायंस डिफेंस को यह ‘ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट’ 30,000 करोड़ में दे दिया गया, जिसे लड़ाकू विमान बनाने का अनुभव नहीं है.
शैलजा ने बताया कि मोदी सरकार ने रिलायंस कंपनी को एक लाख करोड़ रुपये का ‘लाइफ साइकल कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट’ भी दिया है, जिसे इस कंपनी की वेबसाइट आरइन्फ्रा ने मिलने का दावा किया है.